देहरादून: उत्तराखंड राज्य की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है. लेकिन उत्तराखंड राज्य को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है. हालांकि, राज्य में ना सिर्फ खूबसूरत वादियां है बल्कि पानी का भंडार भी है. लेकिन जिस गति से विकास हो रहा है उसी गति से उत्तराखंड के नेचुरल रिसोर्सेज सूखते जा रहे हैं. यही नहीं, उत्तराखंड की कुछ नदियां सूख गई हैं तो कुछ नदियां अब नालों में तब्दील हो गईं हैं. ऐसे में इन नेचुरल वाटर रिसोर्सेज को संरक्षित करने को लेकर योजना का प्रस्ताव तैयार किया गया है.
गौर हो कि बीते दिनों ईटीवी भारत ने प्रदेश की सूख रही नेचुरल रिसोर्सेस को किस तरह से पुनर्जीवित करने की कवायद सिंचाई विभाग कर रहा इस पर विस्तृत स्टोरी बनाई थी. स्टोरी में इस बात पर जोर दिया गया था कि मानव जीवन के लिए नेचुरल रिसोर्सेज बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. लिहाजा, राज्य सरकार सूख रहे नेचुरल रिसोर्सेज और खत्म होने के कगार पर जो रिसोर्सेज हैं, उनको पुनर्जीवित करें.
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अब सिंचाई विभाग ने प्रदेश के 5000 चाल खाल और नालों को पुनर्जीवित करने की योजना का प्रस्ताव तैयार कर लिया है. अभी इस योजना के तहत स्थानीय कमेटीया भी बनाई जानी है. हालांकि, इन नेचुरल रिसोर्सेज को पुनर्जीवित करने के लिए मनरेगा के तहत कार्य किया जाएगा. इसके लिए प्रदेश के 5000 जल स्रोतों को भी चिन्हित कर लिया गया है और इन्हें जल स्रोतों पर मुख्य रूप से ना सिर्फ काम किया जाएगा बल्कि, पुनर्जीवित किए जाने के बाद कम से कम 2 साल तक निगरानी भी की जाएगी.
मिली जानकारी के अनुसार मनरेगा के लिए अभी तक 7 लाख श्रमिकों को जोड़ा जा चुका है. इसके साथ ही उत्तराखंड लौटे प्रवासियों में से करीब 1 लाख से अधिक श्रमिकों को भी मनरेगा के तहत काम दिया गया है. लिहाजा, अब मनरेगा के कामों के साथ ही मनरेगा के तहत प्रदेश के सुख रहे नेचुरल रिसोर्सेज को पुनर्जीवित करने का काम किया जाएगा. हालांकि, इसके लिए मनरेगा के नोडल अधिकारी ने एसओपी तैयार कर शासन को भेज दिया गया है और सहमति मिलने के बाद ही कार्य शुरू कर दिया जाएगा.