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पुरानी संस्कृति के आधार पर जीते तो कोरोना संक्रमण छू नहीं पाताः नंदलाल भारती

लोक कलाकार नंदलाल भारती ने पौराणिक लोक संस्कृति पर आधारित जौनसारीयत गीत 'स्वर्ग से आच्छो मेरो बांको जौनसार' लिखा है. इसमें पुराने तौर तरीकों को बखूबी पेश किया गया है. भारती का कहना है कि लोग पुरानी संस्कृति के आधार पर जीते तो कोरोना संक्रमण छू भी नहीं पाता.

nand lal bharti
नंदलाल भारती
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Published : Aug 13, 2021, 4:49 PM IST

Updated : Aug 13, 2021, 6:40 PM IST

विकासनगरः जौनसार बावर के लोक कलाकार नंदलाल भारती की ओर से रचित पौराणिक संस्कृति पर आधारित जौनसारीयत गीत इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर धमाल मचा रहा है. लोग इस गीत 'स्वर्ग से आच्छो मेरो बांको जौनसार' को खूब पसंद भी कर रहे हैं. नंदलाल भारती का कहना है कि आज जौनसार की संस्कृति गौण होती जा रही है. कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से लोग जूझ रहे हैं, लेकिन पुरानी संस्कृति के आधार पर जीते तो हमें कोरोना संक्रमण नहीं छू पाता.

दरअसल, लोक कला मंच चकराता के अध्यक्ष और लोक कलाकार नंदलाल भारती ने जौनसार बावर की पुरानी संस्कृति के संकलन पर आधारित जौनसारीयत गीत लिखा है. इसमें जौनसार बावर की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, महिला सम्मान, गांव का भाईचारा, कुटुम्ब परिवार, पंचों की न्याय व्यवस्था, खेती-किसानी, पशुपालन, वेशभूषा-परिधान, देवी देवता, परियों की पूजा-अर्चना, प्राकृतिक सौंदर्य का जिक्र किया गया है.

लोक कलाकार नंदलाल भारती से खास बातचीत.

ये भी पढ़ेंः 100 बसंत देख चुकीं दुर्गा देवी को मिली भिटौली, अपनों को भी नहीं पहचान पाईं आंखें

रचनाकार ने 18 पंक्तियों के गीत में देश-प्रदेश में रह रहे जौनसारी मूल के लोगों के मन को झकझोर कर अपनी थाती-माटी की याद दिलाई है. इस गीत में जौनसार बावर की पुरानी परंपरा को शब्दों के जरिए लोगों को अपनी संस्कृति से रूबरू कराया है. देश-विदेश में नौकरी पेशा कर रहे लोगों को यह गीत काफी पसंद आ रहा है.

नंदलाल भारती बताते हैं कि जौनसारीयत अपने आप में एक ऐसा नाम है, जो हर मानव जाति के लिए इंसानियत शब्द का प्रयोग करती है. इसी आधार पर जौनसारीयत गीत लिया गया है. उन्होंने कहा कि जौनसार बावर की लोक संस्कृति अनूठी है. जो पितरों से पूर्वजों से पुरखों से सशक्त संस्कृति के रूप में मिला है. जिसके आधार पर आज हम गौरव भी करते हैं.

ये भी पढ़ेंः पाइंता पर्वः दो कन्याओं के श्राप के बाद यहां लोग गागली के डंठल से करते हैं युद्ध, ये है परंपरा

उन्होंने कहा कि आज देश-दुनिया कोरोना संक्रमण से जूझ रही है. ऐसे में हम लोग पुरानी संस्कृति रीति-रिवाजों और खानपान के अनरूप चलते तो आज हम निरोग रहते. वे बतातें हैं कि बदलाव प्रकृति का नियम है. अगर हम 50 साल पीछे जाएं तो हमारी संस्कृति में संस्कार, एकता, भाईचारा आदि देखने को मिलता था.

वहीं, नंदलाल भारती बताते हैं कि आज पहाड़ के लोग रोजी-रोटी और थोड़ी आरामदायक जिंदगी जीने के लिए शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन अपने पीछे लोक संस्कृति को छोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि आज हमने वो माहौल लगभग खो दिया है, जो हमें अपने पितरों, पूर्वजों और बुजुर्गों से मिला था. ऐसे में सभी को अपनी लोक संस्कृति को संरक्षित करने की जरूरत है.

बता दें कि जौनसारीयत गीत को भारुवा भारती, श्याम कुंवर और महेंद्र राठौर ने स्वर दिया है. इस गीत के पोस्टर का विमोचन बीते 31 जुलाई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया था. हालांकि, गीत को एक महीने पहले ही रिलीज किया गया था, लेकिन कोविड के चलते इसका विमोचन देर से किया गया. वहीं, गीत को सुरेंद्र नेगी ने अपने संगीत से संजोया है.

विकासनगरः जौनसार बावर के लोक कलाकार नंदलाल भारती की ओर से रचित पौराणिक संस्कृति पर आधारित जौनसारीयत गीत इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर धमाल मचा रहा है. लोग इस गीत 'स्वर्ग से आच्छो मेरो बांको जौनसार' को खूब पसंद भी कर रहे हैं. नंदलाल भारती का कहना है कि आज जौनसार की संस्कृति गौण होती जा रही है. कोरोना वायरस जैसे संक्रमण से लोग जूझ रहे हैं, लेकिन पुरानी संस्कृति के आधार पर जीते तो हमें कोरोना संक्रमण नहीं छू पाता.

दरअसल, लोक कला मंच चकराता के अध्यक्ष और लोक कलाकार नंदलाल भारती ने जौनसार बावर की पुरानी संस्कृति के संकलन पर आधारित जौनसारीयत गीत लिखा है. इसमें जौनसार बावर की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, महिला सम्मान, गांव का भाईचारा, कुटुम्ब परिवार, पंचों की न्याय व्यवस्था, खेती-किसानी, पशुपालन, वेशभूषा-परिधान, देवी देवता, परियों की पूजा-अर्चना, प्राकृतिक सौंदर्य का जिक्र किया गया है.

लोक कलाकार नंदलाल भारती से खास बातचीत.

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रचनाकार ने 18 पंक्तियों के गीत में देश-प्रदेश में रह रहे जौनसारी मूल के लोगों के मन को झकझोर कर अपनी थाती-माटी की याद दिलाई है. इस गीत में जौनसार बावर की पुरानी परंपरा को शब्दों के जरिए लोगों को अपनी संस्कृति से रूबरू कराया है. देश-विदेश में नौकरी पेशा कर रहे लोगों को यह गीत काफी पसंद आ रहा है.

नंदलाल भारती बताते हैं कि जौनसारीयत अपने आप में एक ऐसा नाम है, जो हर मानव जाति के लिए इंसानियत शब्द का प्रयोग करती है. इसी आधार पर जौनसारीयत गीत लिया गया है. उन्होंने कहा कि जौनसार बावर की लोक संस्कृति अनूठी है. जो पितरों से पूर्वजों से पुरखों से सशक्त संस्कृति के रूप में मिला है. जिसके आधार पर आज हम गौरव भी करते हैं.

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उन्होंने कहा कि आज देश-दुनिया कोरोना संक्रमण से जूझ रही है. ऐसे में हम लोग पुरानी संस्कृति रीति-रिवाजों और खानपान के अनरूप चलते तो आज हम निरोग रहते. वे बतातें हैं कि बदलाव प्रकृति का नियम है. अगर हम 50 साल पीछे जाएं तो हमारी संस्कृति में संस्कार, एकता, भाईचारा आदि देखने को मिलता था.

वहीं, नंदलाल भारती बताते हैं कि आज पहाड़ के लोग रोजी-रोटी और थोड़ी आरामदायक जिंदगी जीने के लिए शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन अपने पीछे लोक संस्कृति को छोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि आज हमने वो माहौल लगभग खो दिया है, जो हमें अपने पितरों, पूर्वजों और बुजुर्गों से मिला था. ऐसे में सभी को अपनी लोक संस्कृति को संरक्षित करने की जरूरत है.

बता दें कि जौनसारीयत गीत को भारुवा भारती, श्याम कुंवर और महेंद्र राठौर ने स्वर दिया है. इस गीत के पोस्टर का विमोचन बीते 31 जुलाई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया था. हालांकि, गीत को एक महीने पहले ही रिलीज किया गया था, लेकिन कोविड के चलते इसका विमोचन देर से किया गया. वहीं, गीत को सुरेंद्र नेगी ने अपने संगीत से संजोया है.

Last Updated : Aug 13, 2021, 6:40 PM IST
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