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यादों में इंदिरा: इन बयानबाजी के बीच चर्चाओं में रहीं इंदिरा हृदयेश

नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का दिल का दौरा पड़ने से दिल्ली निधन हो गया है. इंदिरा हृदयेश का पूरा जीवन राजनीति को समर्पित रहा. इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो उत्तराखंड में वर्तमान समय में ऐसा कोई नेता नहीं है. जो इंदिरा हृदयेश की कमी को पूरा कर सके. बावजूद इसके अन्य लोगों के बयानबाजी की वजह से वो चर्चाओं में रहा करती थीं.

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Published : Jun 13, 2021, 5:35 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड राजनीति की आयरन लेडी डॉ. इंदिरा हृदयेश ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. लेकिन डॉ. इंदिरा हृदयेश उन राजनेताओं में शुमार थीं, जो कम शब्दों में अपनी बात को जाहिर करते हैं. उत्तराखंड राजनीति के इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो उत्तराखंड में वर्तमान समय में ऐसा कोई नेता नहीं है. जो इंदिरा हृदयेश की कमी को पूरा कर सके.

डॉ. इंदिरा हृदयेश अपनी राजनीतिक तरीके से काफी मशहूर थीं. जनता की सुविधाओं के लिए सरकार से लड़ना. सरकार की नीतियों के द्वारा हो रहे गलत कार्यों का सरकार को अहसास कराना. अपने क्षेत्र के साथ-साथ प्रदेश की जनता के लिए सड़क से सदन तक हमेशा खड़ा रहना उनका व्यक्तित्व था. यही वजह है कि डॉ. इंदिरा हृदयेश को आयरन लेडी भी कहा जाता है. डॉ. इंदिरा हृदयेश अपने बयानों को बहुत नापतोल और सूझबूझ से साथ दिया करती थीं. बावजूद इसके अन्य लोगों के बयानबाजी की वजह से वो चर्चाओं में रहीं.

कांग्रेसी नेताओं के साथ इंदिरा के विवाद

पिछले कुछ सालों में तमाम बयानबाजी के बीच डॉ. इंदिरा हृदयेश चर्चाओं में शामिल रही. डॉ. इंदिरा हृदयेश का उनके ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ एक लंबा विवाद रहा है. हालांकि, खुलकर उन्होंने कभी इसका विरोध नहीं जताया. लेकिन पार्टी के अंदरखाने अमूमन तौर पर यह विरोध देखा गया. डॉ. इंदिरा हृदयेश का पूर्व सीएम हरीश रावत के बीच साइलेंट विवाद रहा है. राज्य गठन के बाद पहली विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस सरकार में डॉ. इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच टकराव चर्चाओं में रही थी.

ये भी पढ़ेंः नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का हार्ट अटैक से निधन, सोमवार को चित्रशिला घाट पर होगा अंतिम संस्कार

विजय बहुगुणा के सीएम बनने पर इंदिरा हुईं मुखर

साल 2012 में कांग्रेस की सत्ता पर दोबारा वापसी हुई. विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया. इस दौरान डॉ. इंदिरा हृदयेश हरीश रावत के साथ मिलकर विजय बहुगुणा के खिलाफ मुखर दिखाई दीं. जिसकी मुख्य वजह यह थी कि डॉ. इंदिरा हृदयेश खुद मुख्यमंत्री बनना चाहती थीं. लेकिन आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री ना बनाकर विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया. हालांकि, विजय बहुगुणा जब तक मुख्यमंत्री रहे तब तक डॉ. इंदिरा हृदयेश मुखर ही दिखाई दीं. जिसका नतीजा यह हुआ कि विजय बहुगुणा ने साल 2016 में कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

हरीश रावत के सीएम बनने पर बढ़ा तकरार

साल 2014 में विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद डॉ. इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच विवाद और बढ़ गया. हालांकि, खुले मंच पर दोनों ने एक-दूसरे का विरोध नहीं किया. लेकिन अंदरखाने दोनों लोगों का विरोध साफ तौर पर देखा जा रहा था. यही नहीं, जब हरीश रावत ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात कही थी तो उस दौरान भी डॉ. इंदिरा हृदयेश ने ऑब्जेक्शन उठाया था. कुल मिलाकर देखें तो डॉ. इंदिरा हृदयेश का राज्य गठन के बाद से ही हरीश रावत से राजनीतिक विवाद रहा.

कांग्रेसी विधायकों का इंदिरा के खिलाफ मोर्चा

साल 2020 में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश और धारचूला विधायक हरीश धामी के बीच बड़ा विवाद देखा गया. हालांकि, उस दौरान डॉ. इंदिरा हृदयेश के खिलाफ विधायक हरीश धामी समेत अन्य विधायकों ने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की. मामला प्रदेश कांग्रेस कमेटी के गठन को लेकर था. जिसमें हरीश धामी को कोई जिम्मेदारी ना दिए जाने पर हरीश धामी ने विवाद खड़ा कर दिया था. यही नहीं, उस समय उपनेता प्रतिपक्ष करन माहरा ने भी डॉ. इंदिरा हृदयेश को लेकर बड़ा बयान दिया था. करन माहरा ने कहा था कि डॉ. इंदिरा हृदयेश को हरीश नाम से पता नहीं क्यों काफी चिढ़ है. क्योंकि पहले हरीश रावत से डॉ. इंदिरा हृदयेश चिढ़ी हुई हैं. तो अब हरीश धामी से भी उनका चिढ़ना नजर आ रहा है.

ये भी पढ़ेंः इंटरनेशनल स्टेडियम निर्माण को लेकर हरदा से भिड़ गई थीं 'इंदिरा', जानें पूरी कहानी

इलाज के लिए इंदिरा को देहरादून में नहीं मिला बेड

सितंबर साल 2020 में डॉ. इंदिरा हृदयेश की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां डॉ. इंदिरा में कोरोना की पुष्टि होने के साथ ही निमोनिया होने की भी पुष्टि हुई थी. जिसके चलते डॉ. इंदिरा हृदयेश को देहरादून के मैक्स अस्पताल में लाया गया. लेकिन घंटों इंतजार करने के बाद भी उन्हें मैक्स अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया. हालांकि बाद में इंदिरा को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल ले जाया गया. जिसके बाद ही उत्तराखंड की राजनीति में सवाल खड़े होने लगे. हालांकि उस दौरान यह भी सवाल खड़े हो रहे थे कि विपक्ष में होने की वजह से इंदिरा हृदयेश को देहरादून के अस्पताल में इलाज नहीं मिला.

चेहरा घोषित करने पर हरीश-इंदिरा के बीच विवाद

आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित के मामले पर डॉ. इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच काफी टकराव देखा गया. एक तरफ हरीश रावत लगातार आलाकमान से इस बात पर जोर दे रहे थे कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में नेतृत्व का चेहरा घोषित किया जाए. तो दूसरी तरफ डॉ. इंदिरा हृदयेश लगातार टिप्पणी करती नजर आ रही थीं. वह हमेशा से ही चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के खिलाफ रहीं. हालांकि पूर्व सीएम हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के बीच लंबे समय तक इस मामले को लेकर बयानबाजी चलती रही.

ये भी पढ़ेंः 'आयरन लेडी' का सफरनामा, जो कह दिया वो पत्थर की लकीर!

इंदिरा के बयान से आया सियासी भूचाल

साल 2020 में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश ने एक बयान देकर उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा भूचाल ला दिया था. डॉ. इंदिरा हृदयेश ने बयान दिया था कि 2021 में नए साल के मौके पर भाजपा से तमाम विधायक टूटकर कांग्रेस में आने वाले हैं. जिसमें कुछ कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं. यही नहीं, डॉ. इंदिरा हृदयेश ने साल 2016 का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार फिर से राज्य के भीतर साल 2016 जैसा राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिलेगी.

बंशीधर भगत की डॉ. इंदिरा पर अमर्यादित टिप्पणी

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने डॉ. इंदिरा हृदयेश को लेकर विवादित टिप्पणी दी थी. जनवरी 2021 में तत्कालीन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने भीमताल विधानसभा क्षेत्र में आयोजित बीजेपी कार्यकर्ता सम्मेलन में डॉ. इंदिरा हृदयेश को 'बुढ़िया' और 'डूबता हुआ जहाज' कहा था. हालांकि, इस बयान के बाद काफी समय तक विवाद चलता रहा. जिसके बाद खुद तत्कालिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डॉ. इंदिरा हृदयेश से माफी मांगी थी.

देहरादूनः उत्तराखंड राजनीति की आयरन लेडी डॉ. इंदिरा हृदयेश ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. लेकिन डॉ. इंदिरा हृदयेश उन राजनेताओं में शुमार थीं, जो कम शब्दों में अपनी बात को जाहिर करते हैं. उत्तराखंड राजनीति के इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो उत्तराखंड में वर्तमान समय में ऐसा कोई नेता नहीं है. जो इंदिरा हृदयेश की कमी को पूरा कर सके.

डॉ. इंदिरा हृदयेश अपनी राजनीतिक तरीके से काफी मशहूर थीं. जनता की सुविधाओं के लिए सरकार से लड़ना. सरकार की नीतियों के द्वारा हो रहे गलत कार्यों का सरकार को अहसास कराना. अपने क्षेत्र के साथ-साथ प्रदेश की जनता के लिए सड़क से सदन तक हमेशा खड़ा रहना उनका व्यक्तित्व था. यही वजह है कि डॉ. इंदिरा हृदयेश को आयरन लेडी भी कहा जाता है. डॉ. इंदिरा हृदयेश अपने बयानों को बहुत नापतोल और सूझबूझ से साथ दिया करती थीं. बावजूद इसके अन्य लोगों के बयानबाजी की वजह से वो चर्चाओं में रहीं.

कांग्रेसी नेताओं के साथ इंदिरा के विवाद

पिछले कुछ सालों में तमाम बयानबाजी के बीच डॉ. इंदिरा हृदयेश चर्चाओं में शामिल रही. डॉ. इंदिरा हृदयेश का उनके ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ एक लंबा विवाद रहा है. हालांकि, खुलकर उन्होंने कभी इसका विरोध नहीं जताया. लेकिन पार्टी के अंदरखाने अमूमन तौर पर यह विरोध देखा गया. डॉ. इंदिरा हृदयेश का पूर्व सीएम हरीश रावत के बीच साइलेंट विवाद रहा है. राज्य गठन के बाद पहली विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस सरकार में डॉ. इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच टकराव चर्चाओं में रही थी.

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विजय बहुगुणा के सीएम बनने पर इंदिरा हुईं मुखर

साल 2012 में कांग्रेस की सत्ता पर दोबारा वापसी हुई. विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया. इस दौरान डॉ. इंदिरा हृदयेश हरीश रावत के साथ मिलकर विजय बहुगुणा के खिलाफ मुखर दिखाई दीं. जिसकी मुख्य वजह यह थी कि डॉ. इंदिरा हृदयेश खुद मुख्यमंत्री बनना चाहती थीं. लेकिन आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री ना बनाकर विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया. हालांकि, विजय बहुगुणा जब तक मुख्यमंत्री रहे तब तक डॉ. इंदिरा हृदयेश मुखर ही दिखाई दीं. जिसका नतीजा यह हुआ कि विजय बहुगुणा ने साल 2016 में कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया.

हरीश रावत के सीएम बनने पर बढ़ा तकरार

साल 2014 में विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद डॉ. इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच विवाद और बढ़ गया. हालांकि, खुले मंच पर दोनों ने एक-दूसरे का विरोध नहीं किया. लेकिन अंदरखाने दोनों लोगों का विरोध साफ तौर पर देखा जा रहा था. यही नहीं, जब हरीश रावत ने गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात कही थी तो उस दौरान भी डॉ. इंदिरा हृदयेश ने ऑब्जेक्शन उठाया था. कुल मिलाकर देखें तो डॉ. इंदिरा हृदयेश का राज्य गठन के बाद से ही हरीश रावत से राजनीतिक विवाद रहा.

कांग्रेसी विधायकों का इंदिरा के खिलाफ मोर्चा

साल 2020 में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश और धारचूला विधायक हरीश धामी के बीच बड़ा विवाद देखा गया. हालांकि, उस दौरान डॉ. इंदिरा हृदयेश के खिलाफ विधायक हरीश धामी समेत अन्य विधायकों ने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की. मामला प्रदेश कांग्रेस कमेटी के गठन को लेकर था. जिसमें हरीश धामी को कोई जिम्मेदारी ना दिए जाने पर हरीश धामी ने विवाद खड़ा कर दिया था. यही नहीं, उस समय उपनेता प्रतिपक्ष करन माहरा ने भी डॉ. इंदिरा हृदयेश को लेकर बड़ा बयान दिया था. करन माहरा ने कहा था कि डॉ. इंदिरा हृदयेश को हरीश नाम से पता नहीं क्यों काफी चिढ़ है. क्योंकि पहले हरीश रावत से डॉ. इंदिरा हृदयेश चिढ़ी हुई हैं. तो अब हरीश धामी से भी उनका चिढ़ना नजर आ रहा है.

ये भी पढ़ेंः इंटरनेशनल स्टेडियम निर्माण को लेकर हरदा से भिड़ गई थीं 'इंदिरा', जानें पूरी कहानी

इलाज के लिए इंदिरा को देहरादून में नहीं मिला बेड

सितंबर साल 2020 में डॉ. इंदिरा हृदयेश की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां डॉ. इंदिरा में कोरोना की पुष्टि होने के साथ ही निमोनिया होने की भी पुष्टि हुई थी. जिसके चलते डॉ. इंदिरा हृदयेश को देहरादून के मैक्स अस्पताल में लाया गया. लेकिन घंटों इंतजार करने के बाद भी उन्हें मैक्स अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया. हालांकि बाद में इंदिरा को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल ले जाया गया. जिसके बाद ही उत्तराखंड की राजनीति में सवाल खड़े होने लगे. हालांकि उस दौरान यह भी सवाल खड़े हो रहे थे कि विपक्ष में होने की वजह से इंदिरा हृदयेश को देहरादून के अस्पताल में इलाज नहीं मिला.

चेहरा घोषित करने पर हरीश-इंदिरा के बीच विवाद

आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित के मामले पर डॉ. इंदिरा हृदयेश और हरीश रावत के बीच काफी टकराव देखा गया. एक तरफ हरीश रावत लगातार आलाकमान से इस बात पर जोर दे रहे थे कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में नेतृत्व का चेहरा घोषित किया जाए. तो दूसरी तरफ डॉ. इंदिरा हृदयेश लगातार टिप्पणी करती नजर आ रही थीं. वह हमेशा से ही चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के खिलाफ रहीं. हालांकि पूर्व सीएम हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के बीच लंबे समय तक इस मामले को लेकर बयानबाजी चलती रही.

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इंदिरा के बयान से आया सियासी भूचाल

साल 2020 में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश ने एक बयान देकर उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा भूचाल ला दिया था. डॉ. इंदिरा हृदयेश ने बयान दिया था कि 2021 में नए साल के मौके पर भाजपा से तमाम विधायक टूटकर कांग्रेस में आने वाले हैं. जिसमें कुछ कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं. यही नहीं, डॉ. इंदिरा हृदयेश ने साल 2016 का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार फिर से राज्य के भीतर साल 2016 जैसा राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिलेगी.

बंशीधर भगत की डॉ. इंदिरा पर अमर्यादित टिप्पणी

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने डॉ. इंदिरा हृदयेश को लेकर विवादित टिप्पणी दी थी. जनवरी 2021 में तत्कालीन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने भीमताल विधानसभा क्षेत्र में आयोजित बीजेपी कार्यकर्ता सम्मेलन में डॉ. इंदिरा हृदयेश को 'बुढ़िया' और 'डूबता हुआ जहाज' कहा था. हालांकि, इस बयान के बाद काफी समय तक विवाद चलता रहा. जिसके बाद खुद तत्कालिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डॉ. इंदिरा हृदयेश से माफी मांगी थी.

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