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वनाग्नि: असल चुनौतियां अभी बाकी, 1300 हेक्टेयर से अधिक जंगल आग की भेंट चढ़े

उत्तराखंड के जंगलों में बेकाबू हुई आग को बुझाने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. वायुसेना के हेलीकॉप्टर को आग बुझाने के अभियान में लगा दिया गया है. एयरफोर्स बांबी बकेट से आग बुझाने में जुटी हुई है. उत्तराखंड में बीते 24 घंटे में आग की 85 घटनाएं सामने आईं हैं.

Uttarakhand Forest Fire
उत्तराखंड के जंगल में आग.
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Published : Apr 5, 2021, 8:46 PM IST

Updated : Apr 6, 2021, 2:04 PM IST

देहरादून: गर्मियां आते ही उत्तराखंड के जंगल एक बार फिर से धधक उठे हैं. आग की इतनी तेजी से आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं कि जंगल के आसपास रहने वाले लोग दहशत में हैं. उत्तराखंड में 5 अप्रैल तक 1300 हेक्टेयर से अधिक जंगल इस सीजन में आग की भेंट चढ़ चुके हैं.

उत्तराखंड सरकार के अनुरोध पर अब एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर आग बुझाने में जुट गए हैं. भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर ने टिहरी गढ़वाल के मठियानी और अडियानी के धधकते जंगलों में आग बुझाने का प्रयास किया. एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर बांबी बकेट के जरिए टिहरी झील से पानी उठाकर आग पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं. बता दें कि इससे पहले वर्ष 2016 में जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए सेना के हेलीकाप्टरों की मदद ली गई थी.

वनाग्नि को लेकर असल चुनौतियां अभी बाकी.

उत्तराखंड में एक हजार जगहों पर लगी है आग

राज्य में एक हजार से अधिक जगहों पर आग लगी हुई है. मौसम ने हालात को और ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना दिया है. 12 हजार से वनकर्मी जंगलों की आग बुझाने में जुटे हुए हैं. जंगलों में आग लगने की वजह से गर्मी जेनरेट होती है उसकी वजह से जीव जंतुओं के निवास स्थान बर्बाद हो जाते हैं. मिट्टी की गुणवत्ता खत्म हो जाती है. या उनके जैविक मिश्रण में बदलाव आ जाता है.

Uttarakhand Forest Fire
उत्तराखंड में जंगलों में लगी आग के आंकड़े.

वहीं, सीएम तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट करते हुए लिखा कि 'राज्य सरकार वनाग्नि को बुझाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, परंतु जनता का भी यह कर्तव्य है कि वे वनाग्नि की रोकथाम में सहयोग करें. मेरा अनुरोध है कि वनों में जलती बीड़ी, सिगरेट या माचिस की तीली न फेंकें साथ ही खेत-खलिहानों में अपशिष्ट जलाते समय भी विशेष सावधानी बरतें. जंगल में आग से वन्य जीव ही नहीं, जनजीवन भी प्रभावित होता है. यदि आपको वनाग्नि दिखाई देती है तो तुरंत निकटतम वन चौकी या क्रू स्टेशन पर सूचित करें. टोल फ्री नं. 1800-180-4141 पर भी इसकी सूचना दे सकते हैं.

24 घंटे में 85 जगहों पर लगी आग

उत्तराखंड के जंगल बड़ी तेजी के साथ जल रहे हैं. 24 घंटे में ही 85 जगहों पर जंगली आग की खबर आई है. राज्य सरकार के मुताबिक बीते 24 घंटे में गढ़वाल मंडल में 74, कुमाऊं मंडल में 9 घटनाएं और वन्य जीव संगठन क्षेत्र में दो आग की घटनाएं सामने आई हैं. गढ़वाल मंडल में 151 हेक्टेयर और कुमाऊं मंडल में आग से 12.6 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गए हैं. वहीं, आग से 1.5 हेक्टेयर वन्य जीव संगठन क्षेत्र भी जलकर खाक हो गया है. 24 घंटे में आग से 2 लाख 98 हजार 913 रुपए का नुकसान उत्तराखंड को हुआ है.

Uttarakhand Forest Fire
जंगलों में आग लगने का पिछले 10 सालों का आंकड़ा.

बांबी बकेट क्या होता है?

हेलीकॉप्टर से नीच लटकते विशेष प्रकार के बाल्टी को 'बांबी बकेट' कहते हैं. जो एक विशेष प्रकार से निर्मित की गई बड़े आकार की बाल्टी होती है. इस बाल्टी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि हेलीकॉप्टर इस बाल्टी में उड़ते हुए भी पानी भर सकता है. हेलीकॉप्टर इस बकेट को आग लगने वाले क्षेत्र में लटकाकर उड़ता है और आग पर पानी गिराकर काबू पाता है.

Uttarakhand Forest Fire
बांबी बकेट से बुझाई जा रही आग.

बांबी बकेट का डिजाइन इस तरह का होता है कि इसमें पानी किसी नदी, तालाब या झरने से पानी इसमें भरा जा सकता है. इस बकेट में एक बार में 300 लीटर से 10 हजार लीटर पानी तक भरा जा सकता है.

ऐसे होता है पानी का छिड़काव

इस बकेट में पानी भरने के बाद हेलीकॉप्टर उन जगहों की भी आग बुझा सकता है, जहां पर दमकल की गाड़ियां नहीं पहुंच पाती हैं. इस तकनीकी से आग बुझाना बेहद आसान होता है.

प्रत्येक बांबी बकेट की तलहटी में नीचे पानी छोड़ने वाला एक 'रिलीज वॉल्व' होता है. जिसे हेलीकॉप्टर के पायलट द्वारा नियंत्रित किया जाता है. जब हेलीकॉप्टर आग वाले क्षेत्र के ठीक ऊपर उड़ रहा होता है तो पायलट पानी के वॉल्व को खोल देता है. पानी आग वाले क्षेत्र के ऊपर ही गिरता है, इससे पानी बेकार नहीं जाता और आग पर जल्दी ही काबू पा लिया जाता है.

लो-विजिबिलिटी के चलते उड़ान नहीं भर सका हेलीकॉप्टर

नैनीताल, भीमताल समेत आसपास के क्षेत्रों में धुंए के गुबार के चलते विजिबिलिटी लो हो गई है. जिसकी वजह से एयरफोर्स का हेलीकॉप्टर आग बुझाने का काम शुरू नहीं हो पाया है. अधिकारियों के मुताबिक कुमाऊं रीजन में मंगलवार से आग बुझाने का काम शुरू किया जाएगा.

ये भी पढ़ें: तेजी से धधक रहे उत्तराखंड के जंगल, हेलीकॉप्टर से बुझेगी आग

कुमाऊं के जंगलों की आग बुझाने के लिए उपलब्ध करवाया गया एयरफोर्स का हेलीकॉप्टर पंतनगर नहीं पहुंच सका है. डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि पंतनगर और आसपास के इलाके में धुंए के कारण विजिबिलिटी काफी कम है. जिससे हेलीकॉप्टर बरेसी से उड़ान नहीं भर पाया है. ऐसे में अब मंगलवार सुबह हेलीकॉप्टर के आने की उम्मीद है.

वनाग्नि को लेकर असल चुनौतियां अभी बाकी

ईटीवी भारत से खास बातचीत में उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने कहा कि वन विभाग के सामने चुनौतियां बेहद बड़ी है और आने वाले दिनों में यह चुनौतियों के बढ़ने की संभावना है. मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि अगले कुछ दिनों में उत्तराखंड के कई इलाकों में बारिश होने की संभावना है. जिससे जंगल की आग में थोड़ा राहत मिल सकती है. लेकिन इन सबके बीच 12 हजार से अधिक वनकर्मी जंगल की आग बुझाने में जुटे हुए हैं और सरकार आग बुझाने के लिए हर जरूरी कदम उठा रही है.

Uttarakhand Forest Fire
आग से होने वाला नुकसान.

जंगल की आग का मॉनसून कनेक्शन

अप्रैल और मई का महीना ऐसे होता है जब पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से जंगल में आग लगने की खबरें आती हैं. लेकिन उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं सर्दियों में सामने आती है. उत्तराखंड में 24,303 वर्ग किलोमीटर यानी राज्य के क्षेत्रफल का 45 फीसदी हिस्सा जंगल है. ये जंगल देहरादून, हरिद्वार, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल, उधमसिंहनगर, चंपावत जिलों में हैं. इन सभी जंगलों में आग लगने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है.

उत्तराखंड में मिट्टी में नमी कम है. साल 2019 और 2020 में उत्तराखंड में बारिश क्रमशः 18 फीसदी और 20 फीसदी कम हुई है. लेकिन वन विभाग की मानें तो जंगल की आग इंसानों द्वारा ही लगाई जाती है. कई बात तो जानबूझकर. कई बार लोग जलती हुई सिगरेट जंगल में छोड़ देते हैं. जंगल की आग को बुझाना एक बहुत बड़ा काम होता है. ये बेहद कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है. पीक सीजन में वन विभाग, NDRF और अग्निशमन विभागों में स्टाफ की कमी आग बुझाने में बड़ा रोड़ा बन जाते हैं.

देहरादून: गर्मियां आते ही उत्तराखंड के जंगल एक बार फिर से धधक उठे हैं. आग की इतनी तेजी से आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं कि जंगल के आसपास रहने वाले लोग दहशत में हैं. उत्तराखंड में 5 अप्रैल तक 1300 हेक्टेयर से अधिक जंगल इस सीजन में आग की भेंट चढ़ चुके हैं.

उत्तराखंड सरकार के अनुरोध पर अब एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर आग बुझाने में जुट गए हैं. भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर ने टिहरी गढ़वाल के मठियानी और अडियानी के धधकते जंगलों में आग बुझाने का प्रयास किया. एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर बांबी बकेट के जरिए टिहरी झील से पानी उठाकर आग पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं. बता दें कि इससे पहले वर्ष 2016 में जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए सेना के हेलीकाप्टरों की मदद ली गई थी.

वनाग्नि को लेकर असल चुनौतियां अभी बाकी.

उत्तराखंड में एक हजार जगहों पर लगी है आग

राज्य में एक हजार से अधिक जगहों पर आग लगी हुई है. मौसम ने हालात को और ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना दिया है. 12 हजार से वनकर्मी जंगलों की आग बुझाने में जुटे हुए हैं. जंगलों में आग लगने की वजह से गर्मी जेनरेट होती है उसकी वजह से जीव जंतुओं के निवास स्थान बर्बाद हो जाते हैं. मिट्टी की गुणवत्ता खत्म हो जाती है. या उनके जैविक मिश्रण में बदलाव आ जाता है.

Uttarakhand Forest Fire
उत्तराखंड में जंगलों में लगी आग के आंकड़े.

वहीं, सीएम तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट करते हुए लिखा कि 'राज्य सरकार वनाग्नि को बुझाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है, परंतु जनता का भी यह कर्तव्य है कि वे वनाग्नि की रोकथाम में सहयोग करें. मेरा अनुरोध है कि वनों में जलती बीड़ी, सिगरेट या माचिस की तीली न फेंकें साथ ही खेत-खलिहानों में अपशिष्ट जलाते समय भी विशेष सावधानी बरतें. जंगल में आग से वन्य जीव ही नहीं, जनजीवन भी प्रभावित होता है. यदि आपको वनाग्नि दिखाई देती है तो तुरंत निकटतम वन चौकी या क्रू स्टेशन पर सूचित करें. टोल फ्री नं. 1800-180-4141 पर भी इसकी सूचना दे सकते हैं.

24 घंटे में 85 जगहों पर लगी आग

उत्तराखंड के जंगल बड़ी तेजी के साथ जल रहे हैं. 24 घंटे में ही 85 जगहों पर जंगली आग की खबर आई है. राज्य सरकार के मुताबिक बीते 24 घंटे में गढ़वाल मंडल में 74, कुमाऊं मंडल में 9 घटनाएं और वन्य जीव संगठन क्षेत्र में दो आग की घटनाएं सामने आई हैं. गढ़वाल मंडल में 151 हेक्टेयर और कुमाऊं मंडल में आग से 12.6 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गए हैं. वहीं, आग से 1.5 हेक्टेयर वन्य जीव संगठन क्षेत्र भी जलकर खाक हो गया है. 24 घंटे में आग से 2 लाख 98 हजार 913 रुपए का नुकसान उत्तराखंड को हुआ है.

Uttarakhand Forest Fire
जंगलों में आग लगने का पिछले 10 सालों का आंकड़ा.

बांबी बकेट क्या होता है?

हेलीकॉप्टर से नीच लटकते विशेष प्रकार के बाल्टी को 'बांबी बकेट' कहते हैं. जो एक विशेष प्रकार से निर्मित की गई बड़े आकार की बाल्टी होती है. इस बाल्टी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि हेलीकॉप्टर इस बाल्टी में उड़ते हुए भी पानी भर सकता है. हेलीकॉप्टर इस बकेट को आग लगने वाले क्षेत्र में लटकाकर उड़ता है और आग पर पानी गिराकर काबू पाता है.

Uttarakhand Forest Fire
बांबी बकेट से बुझाई जा रही आग.

बांबी बकेट का डिजाइन इस तरह का होता है कि इसमें पानी किसी नदी, तालाब या झरने से पानी इसमें भरा जा सकता है. इस बकेट में एक बार में 300 लीटर से 10 हजार लीटर पानी तक भरा जा सकता है.

ऐसे होता है पानी का छिड़काव

इस बकेट में पानी भरने के बाद हेलीकॉप्टर उन जगहों की भी आग बुझा सकता है, जहां पर दमकल की गाड़ियां नहीं पहुंच पाती हैं. इस तकनीकी से आग बुझाना बेहद आसान होता है.

प्रत्येक बांबी बकेट की तलहटी में नीचे पानी छोड़ने वाला एक 'रिलीज वॉल्व' होता है. जिसे हेलीकॉप्टर के पायलट द्वारा नियंत्रित किया जाता है. जब हेलीकॉप्टर आग वाले क्षेत्र के ठीक ऊपर उड़ रहा होता है तो पायलट पानी के वॉल्व को खोल देता है. पानी आग वाले क्षेत्र के ऊपर ही गिरता है, इससे पानी बेकार नहीं जाता और आग पर जल्दी ही काबू पा लिया जाता है.

लो-विजिबिलिटी के चलते उड़ान नहीं भर सका हेलीकॉप्टर

नैनीताल, भीमताल समेत आसपास के क्षेत्रों में धुंए के गुबार के चलते विजिबिलिटी लो हो गई है. जिसकी वजह से एयरफोर्स का हेलीकॉप्टर आग बुझाने का काम शुरू नहीं हो पाया है. अधिकारियों के मुताबिक कुमाऊं रीजन में मंगलवार से आग बुझाने का काम शुरू किया जाएगा.

ये भी पढ़ें: तेजी से धधक रहे उत्तराखंड के जंगल, हेलीकॉप्टर से बुझेगी आग

कुमाऊं के जंगलों की आग बुझाने के लिए उपलब्ध करवाया गया एयरफोर्स का हेलीकॉप्टर पंतनगर नहीं पहुंच सका है. डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि पंतनगर और आसपास के इलाके में धुंए के कारण विजिबिलिटी काफी कम है. जिससे हेलीकॉप्टर बरेसी से उड़ान नहीं भर पाया है. ऐसे में अब मंगलवार सुबह हेलीकॉप्टर के आने की उम्मीद है.

वनाग्नि को लेकर असल चुनौतियां अभी बाकी

ईटीवी भारत से खास बातचीत में उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने कहा कि वन विभाग के सामने चुनौतियां बेहद बड़ी है और आने वाले दिनों में यह चुनौतियों के बढ़ने की संभावना है. मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि अगले कुछ दिनों में उत्तराखंड के कई इलाकों में बारिश होने की संभावना है. जिससे जंगल की आग में थोड़ा राहत मिल सकती है. लेकिन इन सबके बीच 12 हजार से अधिक वनकर्मी जंगल की आग बुझाने में जुटे हुए हैं और सरकार आग बुझाने के लिए हर जरूरी कदम उठा रही है.

Uttarakhand Forest Fire
आग से होने वाला नुकसान.

जंगल की आग का मॉनसून कनेक्शन

अप्रैल और मई का महीना ऐसे होता है जब पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से जंगल में आग लगने की खबरें आती हैं. लेकिन उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं सर्दियों में सामने आती है. उत्तराखंड में 24,303 वर्ग किलोमीटर यानी राज्य के क्षेत्रफल का 45 फीसदी हिस्सा जंगल है. ये जंगल देहरादून, हरिद्वार, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल, उधमसिंहनगर, चंपावत जिलों में हैं. इन सभी जंगलों में आग लगने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है.

उत्तराखंड में मिट्टी में नमी कम है. साल 2019 और 2020 में उत्तराखंड में बारिश क्रमशः 18 फीसदी और 20 फीसदी कम हुई है. लेकिन वन विभाग की मानें तो जंगल की आग इंसानों द्वारा ही लगाई जाती है. कई बात तो जानबूझकर. कई बार लोग जलती हुई सिगरेट जंगल में छोड़ देते हैं. जंगल की आग को बुझाना एक बहुत बड़ा काम होता है. ये बेहद कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है. पीक सीजन में वन विभाग, NDRF और अग्निशमन विभागों में स्टाफ की कमी आग बुझाने में बड़ा रोड़ा बन जाते हैं.

Last Updated : Apr 6, 2021, 2:04 PM IST
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