देहरादून: भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है. इसे दीपोत्सव भी कहते हैं. ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात- हे भगवान! मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए. यह उपनिषदों की आज्ञा है. इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं. जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं. सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है.
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे. अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था. श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए. कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दियों की रोशनी से जगमगा उठी. तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं. भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है. झूठ का नाश होता है. दिवाली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय.
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दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है. कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं. लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं. घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है. लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं. बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है. दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नजर आते हैं.