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धामी के हाथ फिर आई उत्तराखंड की कमान, टूटा 'मुखिया' रिपीट से लेकर CM आवास का मिथक

उत्तराखंड की सियासत में सीएम फेस को लेकर मची उथल-पुथल खत्म हो गई है. पुष्कर सिंह धामी के हाथ एक बार फिर प्रदेश की भागदौड़ की कमान आ गई है. इस बीच मुख्यमंत्री आवास एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है. 30 करोड़ रुपये की लागत से बने इस सरकारी आवास में अब तक जितने भी मुख्यमंत्री रहे, वह अपना कार्यकाल पूरा ही नहीं कर पाए. साथ ही सीएम आवास पर रहने वाला मुख्यमंत्री दोबारा सत्ता हासिल नहीं कर पाया. लेकिन अब ये सभी मिथक टूट गए हैं.

Uttarakhand Legislative Assembly
उत्तराखंड विधानसभा
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Published : Mar 21, 2022, 8:09 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में भाजपा ने इतिहास रचते हुए लगातार मिथक पर मिथक तोड़ते जा रही है. उत्तराखंड में जो अब तक नहीं हुआ, वो इस चुनाव में हो गया है. यहां भाजपा ने इतिहास रच दिया है. पहली बार कोई सरकार सत्ता में दोबारा आने का मिथक तोड़ने में कामयाब हुई. चुनाव में शिक्षा मंत्री को लेकर चला आ रहा मिथक भी टूट गया. इस बार धामी सरकार में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने जीत हासिल करके पिछले चुनाव से चले आ रहे मिथक को तोड़ डाला.

मुख्यमंत्री आवास का मिथक टूटा: प्रदेश में एक और मिथक मुख्यमंत्री आवास को लेकर भी है. वह यह कि जो भी इस आवास में रहता है, वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता या चुनाव नहीं जीतता. क्योंकि चार साल मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और इस चुनाव में पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनने के बाद खटीमा से चुनाव हार गए. हालांकि, बीजेपी ने प्रदेश में शानदार प्रदर्शन के चलते पुष्कर सिंह धामी को दोबारा प्रदेश की सत्ता का कमान सौंप दिया है, जिससे सीएम आवास से जुड़ा मिथक टूट गया है.

बेहद शानदार है सरकारी आवास: देहरादून राजधानी में मुख्यमंत्री का आवास बेहद शानदार क्षेत्र में बना हुआ है. घर के दो बड़े दरवाजे हैं, जिन्हें पहाड़ी शैली से बनाया गया है. मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही बड़ा सा बगीचा है. बगीचे में तरह-तरह के महंगे पेड़ पौधे लगाए हुए हैं.

पहाड़ी शैली में निर्मित: पहाड़ी शैली से मुख्य दरवाजे के बाद मुख्य बिल्डिंग बनी हुई है. महंगी लकड़ियों से खिड़की और दरवाजे बनाए गए हैं. पहाड़ी शैली में डिजाइन किया गया 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था. इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन, सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं.

अंदर दाखिल होते हुए राजस्थानी पत्थरों से किए गए काम नजर आते हैं. मुख्यमंत्री के दफ्तर को बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है. दफ्तर के अलावा मुख्यमंत्री के घर में भी दो बड़े-बड़े ऑफिस हैं, जहां पर बैठकर मुख्यमंत्री अपने काम देखते हैं. पब्लिक के लिए एक बड़ा हॉल है, जहां पर सोफे और कुर्सियां रखी हुई हैं. घर के बैक साइड में ही मुख्यमंत्री का दफ्तर है.
ये भी पढ़ेंः धामी के दोबारा CM बनने पर कार्यकर्ता मनाया रहे उत्सव, कर्मभूमि से जन्मभूमि तक जीत का जश्न

एनडी तिवारी के कार्यकाल में बना था आवास: गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता, उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली.

खंडूड़ी ने अधूरे बंगले का पूरा निर्माण करवाया. मुख्यमंत्री के तौर पर खंडूड़ी ने ही इस बंगले का उद्घाटन किया, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और ढाई साल बाद ही उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. उसके बाद तो जैसे मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का सिलसिला ही चल पड़ा.

ऐसे उड़ी अफवाहें: पूर्व सीएम निशंक और बाद में विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटा दिया गया था. जिसके बाद इस आवास के अपशकुनी होने की चर्चाएं होने लगीं. पूर्व सीएम हरीश रावत भी इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया. साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बंगले में शिफ्ट हुए और बाद में उन्हें भी सीएम पद से हटा दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत यहां नहीं रहे पर तब भी उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा.

देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में भाजपा ने इतिहास रचते हुए लगातार मिथक पर मिथक तोड़ते जा रही है. उत्तराखंड में जो अब तक नहीं हुआ, वो इस चुनाव में हो गया है. यहां भाजपा ने इतिहास रच दिया है. पहली बार कोई सरकार सत्ता में दोबारा आने का मिथक तोड़ने में कामयाब हुई. चुनाव में शिक्षा मंत्री को लेकर चला आ रहा मिथक भी टूट गया. इस बार धामी सरकार में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने जीत हासिल करके पिछले चुनाव से चले आ रहे मिथक को तोड़ डाला.

मुख्यमंत्री आवास का मिथक टूटा: प्रदेश में एक और मिथक मुख्यमंत्री आवास को लेकर भी है. वह यह कि जो भी इस आवास में रहता है, वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता या चुनाव नहीं जीतता. क्योंकि चार साल मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और इस चुनाव में पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनने के बाद खटीमा से चुनाव हार गए. हालांकि, बीजेपी ने प्रदेश में शानदार प्रदर्शन के चलते पुष्कर सिंह धामी को दोबारा प्रदेश की सत्ता का कमान सौंप दिया है, जिससे सीएम आवास से जुड़ा मिथक टूट गया है.

बेहद शानदार है सरकारी आवास: देहरादून राजधानी में मुख्यमंत्री का आवास बेहद शानदार क्षेत्र में बना हुआ है. घर के दो बड़े दरवाजे हैं, जिन्हें पहाड़ी शैली से बनाया गया है. मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही बड़ा सा बगीचा है. बगीचे में तरह-तरह के महंगे पेड़ पौधे लगाए हुए हैं.

पहाड़ी शैली में निर्मित: पहाड़ी शैली से मुख्य दरवाजे के बाद मुख्य बिल्डिंग बनी हुई है. महंगी लकड़ियों से खिड़की और दरवाजे बनाए गए हैं. पहाड़ी शैली में डिजाइन किया गया 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था. इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन, सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं.

अंदर दाखिल होते हुए राजस्थानी पत्थरों से किए गए काम नजर आते हैं. मुख्यमंत्री के दफ्तर को बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है. दफ्तर के अलावा मुख्यमंत्री के घर में भी दो बड़े-बड़े ऑफिस हैं, जहां पर बैठकर मुख्यमंत्री अपने काम देखते हैं. पब्लिक के लिए एक बड़ा हॉल है, जहां पर सोफे और कुर्सियां रखी हुई हैं. घर के बैक साइड में ही मुख्यमंत्री का दफ्तर है.
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एनडी तिवारी के कार्यकाल में बना था आवास: गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता, उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली.

खंडूड़ी ने अधूरे बंगले का पूरा निर्माण करवाया. मुख्यमंत्री के तौर पर खंडूड़ी ने ही इस बंगले का उद्घाटन किया, लेकिन वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और ढाई साल बाद ही उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. उसके बाद तो जैसे मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का सिलसिला ही चल पड़ा.

ऐसे उड़ी अफवाहें: पूर्व सीएम निशंक और बाद में विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटा दिया गया था. जिसके बाद इस आवास के अपशकुनी होने की चर्चाएं होने लगीं. पूर्व सीएम हरीश रावत भी इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया. साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बंगले में शिफ्ट हुए और बाद में उन्हें भी सीएम पद से हटा दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत यहां नहीं रहे पर तब भी उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा.

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