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राउंडअप: कांग्रेस के मुकाबले 20 रही बीजेपी, जीती हर चुनावी बाजी

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Published : Dec 22, 2019, 6:33 AM IST

Updated : Jan 3, 2020, 1:00 PM IST

वर्ष 2019 समाप्त होने को है. राज्य में सत्तारूढ़ त्रिवेंद्र सरकार के लिए 2019 कई लिहाज से महत्वपूर्ण रहा. त्रिवेंद्र सरकार के करीब 3 सालों में हुए सभी चुनाव भाजपा के पक्ष में रहे हैं. विपक्ष की कोई भी रणनीति सरकार के सामने चुनौती पेश नहीं कर सकी. परिणामों ने साबित कर दिया कि वक्त भाजपा के साथ ही है.

त्रिवेंद्र सरकार
त्रिवेंद्र सरकार

देहरादूनः उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार के लिए वर्ष 2019 चुनावी चुनौतियों से भरा रहा. इसी साल लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव लड़े गए, लेकिन परिणामों ने साबित कर दिया कि वक्त भाजपा के साथ ही है और फिलहाल त्रिवेंद्र सरकार की अभेद रणनीति का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं. देखिये ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट.

त्रिवेद्र सरकार के नाम रहा वर्ष 2019.

राजनीतिक दलों के लिए चुनाव परीक्षा के तौर पर देखे जाते हैं. जितने बड़े चुनाव उतनी ही बड़ी परीक्षा. इस साल ऐसी ही कई परीक्षाओं से राजनीतिक दलों को गुजरना पड़ा. राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण इन्हें जीतने का सबसे बड़ा दबाव त्रिवेंद्र सरकार पर ही रहा. बहरहाल, जब लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव हुए तो इसका असर भी चुनाव परिणाम पर दिखा और अधिकतर चुनावों में भाजपा ने जीत का स्वाद चखा और कांग्रेस को पछाड़ दिया. इस साल बल्कि त्रिवेंद्र सरकार के करीब 3 सालों में हुए सभी चुनाव भाजपा के पक्ष में रहे हैं और सभी छोटे-बड़े चुनाव को भाजपा जीतने में कामयाब रही है.

राज्य में चुनावी नतीजे कई बार कांग्रेस के पक्ष में भी दिखाई दिए, लेकिन औसतन भाजपा अधिकतर सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही. जानिए वो चुनाव जो इस साल राजनीतिक दलों के लिए बेहद खास रहे और खास तौर पर कांग्रेस और भाजपा ने इन चुनावों के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगाया.

साल की चुनौतियां- बीजेपी रही आगे

  • सहकारी संस्थाओं के चुनाव में सभी 10 जिला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी संघ, राज्य सहकारी बैंक, रेशम फेडरेशन और गन्ना समितियों के चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल करते हुए सहकारी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया.
  • मई महीने में लोकसभा के चुनाव हुए, जिनमें भाजपा ने राज्य की सभी पांचों सीट जीतकर क्लीन स्वीप किया. इसमें टिहरी से माला राज्य लक्ष्मी शाह, पौड़ी से तीरथ सिंह, हरिद्वार से डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक, अल्मोड़ा से अजय टम्टा और नैनीताल से अजय भट्ट ने जीत हासिल की.
  • हालांकि, जुलाई महीने बीजेपी के लिये कुछ खास नहीं रहा. नगर निकाय के चुनाव में श्रीनगर और बाजपुर में भाजपा को तगड़ा झटका लगा. श्रीनगर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर कांग्रेस की पूनम तिवारी ने भाजपा प्रत्याशी को 638 वोटों से हराया जबकि बाजपुर सीट पर चेयरमैन पद के लिए कांग्रेस के गुरजीत सिंह 2,290 वोटों से जीते.
  • इसके बाद अक्टूबर में पंचायत चुनाव हुए जिसमें बीजेपी ने कमबैक किया. 12 जिलों में से 10 जिलों पर बीजेपी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए.
  • नवंबर महीने में स्वर्गीय प्रकाश पंत के निधन पर खाली हुई सीट पिथौरागढ़ पर चुनाव हुआ जहां भाजपा ने प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को मैदान में उतारा और जीत भी हासिल की. यहां बीजेपी प्रत्याशी चंद्रा पंत ने कांग्रेस की अंजू लुण्ठी को 3,267 वोटों से हराया.
  • इस दौरान रुड़की नगर निगम के लिए भी चुनाव हुआ. इसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों को तगड़ा झटका लगा. मेयर पद पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की. हालांकि, भाजपा ने यहां भी बाजी मारते हुए निर्दलीय प्रत्याशी का समर्थन लेने में कामयाबी हासिल कर ली.

यह भी पढ़ेंः 2019: उत्तराखंड का राजनीतिक सफरनामा, BJP अर्श और कांग्रेस फर्श पर

कुल मिलाकर देखा जाए तो साल 2019 में हुए चुनाव भाजपा के ही नाम रहे. हालांकि बाजपुर और श्रीनगर सीट पर भाजपा को कुछ मायूसी जरूर हाथ लगी लेकिन देखा जाए तो त्रिवेंद्र सरकार के दौरान राज्य में हुए चुनाव में पिछले करीब 3 सालों में अधिकतर चुनावों और सीटों पर भाजपा ही जीती है. उधर, कांग्रेस का कहना है कि भाजपा सत्ता का दुरुपयोग कर चुनाव जीती है, लेकिन फिर भी कांग्रेस ने अपने प्रयास से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश की है. उत्तराखंड में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और सटीक रणनीति की छवि ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं और चुनाव के दौरान भाजपा को इसका फायदा भी मिला है. उधर भाजपा का मजबूत संगठन भी भाजपा की जीत का बड़ा आधार बना है.

देहरादूनः उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार के लिए वर्ष 2019 चुनावी चुनौतियों से भरा रहा. इसी साल लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव लड़े गए, लेकिन परिणामों ने साबित कर दिया कि वक्त भाजपा के साथ ही है और फिलहाल त्रिवेंद्र सरकार की अभेद रणनीति का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं. देखिये ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट.

त्रिवेद्र सरकार के नाम रहा वर्ष 2019.

राजनीतिक दलों के लिए चुनाव परीक्षा के तौर पर देखे जाते हैं. जितने बड़े चुनाव उतनी ही बड़ी परीक्षा. इस साल ऐसी ही कई परीक्षाओं से राजनीतिक दलों को गुजरना पड़ा. राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण इन्हें जीतने का सबसे बड़ा दबाव त्रिवेंद्र सरकार पर ही रहा. बहरहाल, जब लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव हुए तो इसका असर भी चुनाव परिणाम पर दिखा और अधिकतर चुनावों में भाजपा ने जीत का स्वाद चखा और कांग्रेस को पछाड़ दिया. इस साल बल्कि त्रिवेंद्र सरकार के करीब 3 सालों में हुए सभी चुनाव भाजपा के पक्ष में रहे हैं और सभी छोटे-बड़े चुनाव को भाजपा जीतने में कामयाब रही है.

राज्य में चुनावी नतीजे कई बार कांग्रेस के पक्ष में भी दिखाई दिए, लेकिन औसतन भाजपा अधिकतर सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही. जानिए वो चुनाव जो इस साल राजनीतिक दलों के लिए बेहद खास रहे और खास तौर पर कांग्रेस और भाजपा ने इन चुनावों के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगाया.

साल की चुनौतियां- बीजेपी रही आगे

  • सहकारी संस्थाओं के चुनाव में सभी 10 जिला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी संघ, राज्य सहकारी बैंक, रेशम फेडरेशन और गन्ना समितियों के चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल करते हुए सहकारी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया.
  • मई महीने में लोकसभा के चुनाव हुए, जिनमें भाजपा ने राज्य की सभी पांचों सीट जीतकर क्लीन स्वीप किया. इसमें टिहरी से माला राज्य लक्ष्मी शाह, पौड़ी से तीरथ सिंह, हरिद्वार से डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक, अल्मोड़ा से अजय टम्टा और नैनीताल से अजय भट्ट ने जीत हासिल की.
  • हालांकि, जुलाई महीने बीजेपी के लिये कुछ खास नहीं रहा. नगर निकाय के चुनाव में श्रीनगर और बाजपुर में भाजपा को तगड़ा झटका लगा. श्रीनगर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर कांग्रेस की पूनम तिवारी ने भाजपा प्रत्याशी को 638 वोटों से हराया जबकि बाजपुर सीट पर चेयरमैन पद के लिए कांग्रेस के गुरजीत सिंह 2,290 वोटों से जीते.
  • इसके बाद अक्टूबर में पंचायत चुनाव हुए जिसमें बीजेपी ने कमबैक किया. 12 जिलों में से 10 जिलों पर बीजेपी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए.
  • नवंबर महीने में स्वर्गीय प्रकाश पंत के निधन पर खाली हुई सीट पिथौरागढ़ पर चुनाव हुआ जहां भाजपा ने प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को मैदान में उतारा और जीत भी हासिल की. यहां बीजेपी प्रत्याशी चंद्रा पंत ने कांग्रेस की अंजू लुण्ठी को 3,267 वोटों से हराया.
  • इस दौरान रुड़की नगर निगम के लिए भी चुनाव हुआ. इसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों को तगड़ा झटका लगा. मेयर पद पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की. हालांकि, भाजपा ने यहां भी बाजी मारते हुए निर्दलीय प्रत्याशी का समर्थन लेने में कामयाबी हासिल कर ली.

यह भी पढ़ेंः 2019: उत्तराखंड का राजनीतिक सफरनामा, BJP अर्श और कांग्रेस फर्श पर

कुल मिलाकर देखा जाए तो साल 2019 में हुए चुनाव भाजपा के ही नाम रहे. हालांकि बाजपुर और श्रीनगर सीट पर भाजपा को कुछ मायूसी जरूर हाथ लगी लेकिन देखा जाए तो त्रिवेंद्र सरकार के दौरान राज्य में हुए चुनाव में पिछले करीब 3 सालों में अधिकतर चुनावों और सीटों पर भाजपा ही जीती है. उधर, कांग्रेस का कहना है कि भाजपा सत्ता का दुरुपयोग कर चुनाव जीती है, लेकिन फिर भी कांग्रेस ने अपने प्रयास से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश की है. उत्तराखंड में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और सटीक रणनीति की छवि ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं और चुनाव के दौरान भाजपा को इसका फायदा भी मिला है. उधर भाजपा का मजबूत संगठन भी भाजपा की जीत का बड़ा आधार बना है.

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Summary- उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार के लिए ये साल चुनावी चुनौतियों से भरा रहा.. इसी साल लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव लड़े गए..लेकिन परिणामों ने साबित कर दिया कि वक्त भाजपा के साथ ही है, और फिलहाल त्रिवेंद्र सरकार की अभेद रणनीति का कांग्रेस के पास कोई जवाब नही...देखिये etv bharat की ये स्पेशल रिपोर्ट...



Body:राजनीतिक दलों के लिए चुनाव परीक्षा के तौर पर देखे जाते हैं...जितने बड़े चुनाव उतनी ही बड़ी परीक्षा..इस साल ऐसी ही कई परीक्षाओं से राजनीतिक दलों को गुजरना पड़ा..राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण इन्हें जीतने का सबसे बड़ा दबाव त्रिवेंद्र सरकार पर ही रहा...बहरहाल जब लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव हुए तो इसका असर भी चुनाव परिणाम पर दिखा..और अधिकतर चुनावों में भाजपा ने जीत का स्वाद कांग्रेस को पछाड़ दिया... इस पर भाजपा नेताओं की मानें तो न केवल इस साल बल्कि त्रिवेंद्र सरकार के करीब 3 सालों में हुए सभी चुनाव भाजपा के पक्ष में रहे हैं और सभी छोटे-बड़े चुनाव को भाजपा जीतने में कामयाब रही है।


बाइट देवेंद्र भसीन मीडिया प्रभारी उत्तराखंड भाजपा


राज्य में चुनावी नतीजे कई बार कांग्रेस के पक्ष में भी दिखाई दिए.. लेकिन औसतन भाजपा अधिकतर सीटों को कब्जा करने में कामयाब रही.. जानिए वो चुनाव जो इस साल राजनीतिक दलों के लिए बेहद खास रहे और खास तौर पर कांग्रेस और भाजपा ने इन चुनावों के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगाया...


साल की पहली चुनौती सहकारी संस्थाओं के चुनाव के रूप में शुरू हुई.. जिसमें सभी 10 जिला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी संघ, राज्य सहकारी बैंक, रेशम फेडरेशन और गन्ना समितियों के चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल करते हुए सहकारी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया...


मई माह में लोकसभा के चुनाव हुए, जिनमें भाजपा ने राज्य की सभी पांचों सीट का जीतकर क्लीन स्वीप किया... इसमें टिहरी से माला राज्य लक्ष्मी शाह, पौड़ी से तीरथ सिंह, हरिद्वार से डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, अल्मोड़ा से अजय टम्टा और नैनीताल से अजय भट्ट ने जीत हासिल की।


जुलाई महीने में श्रीनगर और बाजपुर नगर निकाय के चुनाव हुए.. इन दोनों ही चुनाव में भाजपा को तगड़ा झटका लगा और श्रीनगर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर कांग्रेस की पूनम तिवारी ने भाजपा प्रत्याशी को 638 वोटों से हरा दिया, जबकि बाजपुर सीट पर चेयरमैन पद के लिए कांग्रेस के गुरजीत सिंह ने भाजपा प्रत्याशी को 2290 वोट से हराया..


इसके बाद अक्टूबर में पंचायत चुनाव हुए जिसमें 12 जिलों में से 10 जिलों पर बीजेपी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए... इस तरह पंचायतों में भी भाजपा ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया...


नवंबर महीने में स्वर्गीय प्रकाश पंत के निधन पर खाली हुई सीट पिथौरागढ़ पर चुनाव हुआ, जहां भाजपा ने प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत को मैदान में उतारा और जीत भी हासिल की.. यहां बीजेपी प्रत्याशी चंद्रा पंत ने कांग्रेस की अंजू को 3267 वोटों से हराया..


इस दौरान रुड़की नगर निगम के लिए भी चुनाव हुए जहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों को तगड़ा झटका लगा और मेयर पद पर निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की।।। हालांकि भाजपा ने यह भी बाजी मारते हुए निर्दलीय प्रत्याशी का समर्थन लेने में कामयाबी हासिल की है।


साल 2019 में हुए चुनाव भाजपा के ही नाम रहे, हालांकि बाजपुर और श्रीनगर सीट पर भाजपा को कुछ मायूसी जरूर हाथ लगी.. देखा जाए तो त्रिवेल सरकार के दौरान राज्य में हुए चुनाव में पिछले करीब 3 सालों में अधिकतर सीटों पर और चुनावों में भाजपा ही जीती है... उधर कांग्रेस नेताओं की मानें तो भाजपा सत्ता का दुरुपयोग कर चुनाव जीती है लेकिन फिर भी कांग्रेस ने अपने प्रयास से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश की है।।


बाइट गरिमा दसौनी, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस




Conclusion:उत्तराखंड में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और सटीक रणनीति की कवि ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी की है और चुनाव के दौरान भाजपा को इसका फायदा भी मिला है... उधर भाजपा का मजबूत संगठन भी भाजपा की जीत का बड़ा आधार बना है...

नवीन उनियाल देहरादून
Last Updated : Jan 3, 2020, 1:00 PM IST
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