देहरादून: कोरोना वायरस की चल रही घातक दूसरी लहर में अब बच्चे भी गंभीर लक्षणों के साथ कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, जो अभिभावकों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. वहीं, दूसरी तरफ कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच बच्चों और बुजुर्गों की देखरेख के लिए लोग हर मुश्किल का सामना करने को तैयार हैं.
कोरोना वायरस का ये नया स्ट्रेन इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि ये युवाओं और छोटे बच्चों में तेजी से फैल रहा है. बीते दिनों रुद्रप्रयाग में एक सप्ताह में 40 नवजात कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. जिसके बाद से पूरे उत्तराखंड में हड़कंप मच गया था. विशेषज्ञों के मुताबिक पहली लहर के दौरान करीब 1% बच्चे ही संक्रमण की चपेट में आए थे. लेकिन दूसरी लहर के दौरान बीते दो महीनों के आंकड़ों के मुताबिक इस बार करीब 10 गुना ज्यादा बच्चे कोरोना संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं.
उत्तराखंड की बात करें तो यहां भी बच्चों में संक्रमण के मामले काफी ज्यादा दिखाई दिए. पहली लहर में संक्रमण तो कम था ही, इसके साथ ही बच्चों से जुड़े कम मामले ही अस्पताल पहुंचे थे. बाल रोग चिकित्सक डॉ. विशाल कौशिक कहते हैं कि इस बार मामले बढ़े हैं, और सबसे ज्यादा चिंता उन बच्चों को लेकर है, जिनकी उम्र 1 साल से कम है. प्रदेश में दूसरी लहर के दौरान गंभीर मामलों में 1 साल से कम उम्र के बच्चे ज्यादा रहे हैं. इसके लिए सभी लोग जिम्मेदार हैं, क्योंकि इस वक्त संक्रमण बच्चों तक माता-पिता या बड़ी उम्र वाले लोगों से ही फैल रहा है.
उत्तराखंड के कितने बच्चे हुए संक्रमित
आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में पहली लहर के दौरान करीब 500 बच्चे संक्रमित हुए. बच्चों में संक्रमण के दौरान मृत्यु दर लगभग जीरो रहा. लेकिन, दूसरी लहर में पिछले 2 महीनों में ही यह आंकड़ा करीब 100 पहुंच गया है. इस मामले पर प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज के बालरोग विशेषज्ञ और नोडल अधिकारी डॉ. अशोक कुमार कहते हैं कि दून मेडिकल कॉलेज में पहली लहर के दौरान 150 बच्चे अस्पताल में कोरोना संक्रमण के चलते भर्ती हुए थे. इनमें ऐसे बच्चे भी थे, जो घर पर सामान्य दवाओं से ठीक हो गए.
वहीं, दूसरी लहर के दौरान पिछले 2 महीने में ही करीब 15 बच्चे अस्पताल में भर्ती हो चुके हैं. जबकि एक बच्चे की मौत भी हो चुकी है. डॉ. अशोक कुमार कहते हैं कि इस बार गंभीर रूप से बीमार बच्चों के ज्यादा मामले आ रहे हैं और 2 महीने के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि पहली लहर के मुकाबले यह आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है.
बरतें एहतियात
बाल रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि बच्चों को इस महामारी से बचाना है तो इसके लिए खास एहतियात जरूरी हैं. डॉ. विशाल कौशिक के मुताबिक जिन घरों में बच्चे हैं, वहां पर लोगों को घर से बाहर जाने से बचना चाहिए और यदि घर से बाहर निकलना बेहद जरूरी है तो भी लोगों को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि वह घर में आकर छोटे बच्चों के संपर्क में ना आएं. इतना ही नहीं घर के भीतर आने से पहले खुद को सैनिटाइज करते हुए पूरे कपड़े बदलने चाहिए. इसके अलावा बच्चों को पकड़ना, उन्हें गले लगाना जैसी चीजों से बचना चाहिए. विशेषज्ञ डॉक्टर बच्चों को कोविड-19 से बचाने का यही एकमात्र रास्ता मानते हैं.
युवा और बुजुर्गों के मुकाबले बच्चों के कम संक्रमित होने की वजह
डॉ. विशाल कौशिक कहते हैं कि मौजूदा समय में स्कूलों का बंद होना इसकी सबसे बड़ी वजह है. दरअसल बच्चे स्कूलों के बंद होने के कारण घरों में आइसोलेट हैं और वह सीधे तौर पर किसी के भी संपर्क में नहीं आ रहे हैं. यही वजह है कि बच्चों के आंकड़े संक्रमण को लेकर बेहद कम हैं. दूसरी वजह बच्चों का शरीर बेहद संवेदनशील होने के साथ ग्रोइंग होता है. इस दौरान बच्चों का शरीर बीमारी से मुकाबला तो कर पाता है, लेकिन यदि बच्चे को सही ट्रीटमेंट और सही समय पर अस्पताल या डॉक्टर की सुझाव के अनुसार उपचार दिया जाए तो वह ठीक हो सकते हैं. लेकिन यदि देरी हुई तो बच्चों के लिए दिक्कतें बढ़ सकती हैं.
बड़ों में जहां बुखार और खांसी संक्रमण के दौरान लक्षण दिखाई दे रहे हैं वहीं, छोटे बच्चों में डायरिया हल्का बुखार, लूज मोशन और टाइफाइड जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं. इसके अलावा बच्चों में बेहद ज्यादा अलग-अलग तरह के लक्षण दिखाई दे रहे हैं. कुछ दूसरी बीमारियों के होने की स्थिति में भी संक्रमण का बच्चों के अंदर पता चल पा रहा है.
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तीसरी लहर में वायरस का निशाना होंगे बच्चे
प्रदेश में तीसरी लहर के दौरान बच्चों को ही सबसे आसान निशाना माना जा रहा है. ऐसे में वैक्सीन की बच्चों को सबसे ज्यादा जरूरत होगी. हालांकि बच्चों के लिए अब तक कोई भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है और इसके कारण आने वाले दिनों में दिक्कतें बढ़ सकती हैं. इस लिहाज से रास्ता यही है कि बच्चों को आइसोलेट कर लिया जाए और वैक्सीन आने तक उन्हें दूसरे लोगों के संपर्क से भी दूर रखा जाए.
इन लक्षणों को न करें इग्नोर
डॉक्टरों के मुताबिक अभी तक बच्चे 103-104 डिग्री सेल्सियस से अधिक बुखार से प्रभावित हो रहे हैं, जो 5-6 दिनों तक बना रहता है. ऐसे भी कुछ मामले हैं, जिनमें निमोनिया भी देखा गया है. कुछ बच्चों में मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) जैसी अधिक गंभीर जटिलताएं भी देखी गई हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि अगर बुखार 5-6 दिनों तक रहता है, तो माता-पिता को अपने बच्चों के रक्तचाप की निगरानी करनी चाहिए. हालांकि, पल्स ऑक्सीमीटर के साथ उनके ऑक्सीजन के स्तर की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि उनमें ऑक्सीजन संबंधी दिक्कतों का सामना करने की ज्यादा संभावना नहीं है. बच्चों के लिए यह डिवाइस अनफिट है.
विशेषज्ञों ने कहा कि बच्चों में हल्के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और माता-पिता को बच्चों में संभावित डायरिया, सांस लेने में समस्या और सुस्ती जैसे लक्षणों पर ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने खासकर बुखार के साथ इस तरह के लक्षणों पर सतर्क रहने की सलाह दी. बच्चों में ऐसी समस्याओं को पहचानने में माता-पिता को सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि शुरुआती तौर पर एक्शन लेने से बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए क्या खिलाएं
उन्होंने कहा कि सबसे खतरे की बात ये है कि फिलहाल बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं है. ऐसे में बच्चों के संक्रमित होने पर उन्हें खतरा ज्यादा है. प्रोटीन के लिए सोयाबीन, अंडे, चने और दूध आदि का सेवन किया जा सकता है, जबकि विटामिन सी के लिए खट्टे फल जैसे संतरा, अंगूर, कीनू, सेब आदि खाए जा सकते हैं. वहीं विटामिन ए के लिए आम का सेवन किया जा सकता है और विटामिन डी के लिए सुबह 9 से 11 के बीच कुछ देर के लिए धूप में जरूर बैठा जा सकता है.