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कॉर्बेट में कथित अवैध कामों में किसकी मिलीभगत, सरकारी पैसे का हो रहा दुरुपयोग

उत्तराखंड के संरक्षित वन क्षेत्रों में कथित अवैध निर्माण और पेड़ों के कटान का मामला दिल्ली व नैनीताल हाईकोर्ट में विचाराधीन है. अब इस मामले में प्रमुख वन संरक्षरक राजीव भरतरी ने जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन यहां बड़ा सवाल है कि कॉर्बेट नेशनल के डायरेक्टर राहुल इतने कथित अवैध कार्यों को लेकर क्यों मौन रहे ? अगर यह काम सही हैं तो इनको ध्वस्त क्यों किया गया ?

Uttarakhand Forest Department
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Published : Nov 7, 2021, 8:07 PM IST

देहरादून: कॉर्बेट नेशनल पार्क में हो रहे कथित अवैध कार्यों पर भले ही जांच के आदेश हो गए हों लेकिन सवाल यह है कि वन विभाग जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई कब होगी ? वह भी तब जब एनटीसीए (National Tiger Conservation Authority) ने खुद स्थलीय निरीक्षण के बाद तमाम कामों की रिपोर्ट बनाकर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की संस्तुति कर चुका हो. उधर, कॉर्बेट प्रशासन ने कालागढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में उन भवनों को ध्वस्त कर दिया, जिनको अवैध रूप से बनाए जाने का आरोप था.

उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्रों में वन विभाग के अधिकारियों की बड़ी फौज कथित अवैध कामों को क्यों संरक्षण दे रही है. यह बड़ा सवाल है ? यह सवाल एनटीसीए कि वह रिपोर्ट खड़े करती है, जिसमें वनों के कथित अवैध कटान से लेकर संरक्षित क्षेत्र में गलत तरीके से भवन बनाए जाने की बात कही गई है. सवाल यह है कि कॉर्बेट नेशनल के डायरेक्टर राहुल इतने कथित अवैध कार्यों को लेकर क्यों मौन रहे ? अगर यह काम सही हैं, तो इनको ध्वस्त क्यों किया गया. अगर यह गलत तरीके से बिना परमिशन के बनाए गए, तो फिर निदेशक महोदय इनको बनाए जाने के दौरान कहां थे ?

पार्क के निदेशक ही नहीं बल्कि दूसरे जिम्मेदार अधिकारी भी इस पूरे मामले को लेकर सवालों के घेरे में है. हालांकि एनटीसीए ने जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं, लेकिन इतनी बड़ी गलती के लिए क्या छोटे कर्मचारियों पर ही कार्रवाई की जानी सही होगी ? निदेशक और वन मुख्यालय में बैठे वाइल्ड लाइफ से जुड़े अधिकारियों को भी इस मामले में चारों दोषी माना जाए.

पढ़ें- अवैध कार्यों पर नपेंगे वन विभाग के अफसर, संजीव चतुर्वेदी करेंगे संरक्षित क्षेत्र में निर्माण की जांच

यही नहीं, इन कॉटेज को बनाने के लिए जिस भी अधिकारी ने परमिशन दी उस पर भी कार्यवाही क्यों नहीं होनी चाहिए ? ऐसे ही कुछ सवाल है जो लगातार वन विभाग की छवि को खराब करने में लगे हुए हैं. हालांकि, प्रमुख वन संरक्षक की तरफ से इस मामले पर संजीव चतुर्वेदी को जांच सौंप दी गई है, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद ध्वस्त किए गए भवनों कि यह कार्रवाई बताती है कि इस मामले में अधिकारियों की बड़े स्तर पर गलती रही है.

पहले भवन बनाने और फिर उन्हें ध्वस्त करने में सरकारी पैसे का दुरुपयोग भी हुआ है. इसके लिए न केवल मामला दर्ज किया जाना चाहिए, बल्कि रिकवरी का भी प्रावधान होना चाहिए ? हालांकि, इतने गंभीर मामले पर जिसका एनटीसीए और हाईकोर्ट तक संज्ञान ले चुका हो, उस पर जांच के बाद क्या कार्रवाई होती है यह देखना दिलचस्प होगा.

पढ़ें- रुद्रप्रयाग: 50 दिन चली केदारनाथ यात्रा, व्यापारियों के चेहरों पर लौटी 'मुस्कान'

आपको बता दें कि निदेशक कॉर्बेट की अगुवाई में दर्ज किए गए 4 आवासीय भवनों के अलावा 4 दूसरे भवन भी यहां बनाए किए जाने की खबर है. जबकि बताया जा रहा है कि करीब 16 भवन यहां पर बनाए जाने थे. जानकार कहते हैं कि कॉर्बेट की स्थापना के बाद से 2018 तक जितना निर्माण कॉर्बेट में नहीं हुआ, उससे ज्यादा निर्माण पिछले 2 सालों में करने की कोशिश की गई है.

इस मामले पर भी वन विभाग को अलग से जांच देनी चाहिए और इसकी परमिशन देने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए. हालांकि, यह पूरा मामला जांच के बाद और भी स्पष्ट होगा. जांच रिपोर्ट के आधार पर जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्रवाई की तलवार लटकना तय है.

देहरादून: कॉर्बेट नेशनल पार्क में हो रहे कथित अवैध कार्यों पर भले ही जांच के आदेश हो गए हों लेकिन सवाल यह है कि वन विभाग जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई कब होगी ? वह भी तब जब एनटीसीए (National Tiger Conservation Authority) ने खुद स्थलीय निरीक्षण के बाद तमाम कामों की रिपोर्ट बनाकर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की संस्तुति कर चुका हो. उधर, कॉर्बेट प्रशासन ने कालागढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में उन भवनों को ध्वस्त कर दिया, जिनको अवैध रूप से बनाए जाने का आरोप था.

उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्रों में वन विभाग के अधिकारियों की बड़ी फौज कथित अवैध कामों को क्यों संरक्षण दे रही है. यह बड़ा सवाल है ? यह सवाल एनटीसीए कि वह रिपोर्ट खड़े करती है, जिसमें वनों के कथित अवैध कटान से लेकर संरक्षित क्षेत्र में गलत तरीके से भवन बनाए जाने की बात कही गई है. सवाल यह है कि कॉर्बेट नेशनल के डायरेक्टर राहुल इतने कथित अवैध कार्यों को लेकर क्यों मौन रहे ? अगर यह काम सही हैं, तो इनको ध्वस्त क्यों किया गया. अगर यह गलत तरीके से बिना परमिशन के बनाए गए, तो फिर निदेशक महोदय इनको बनाए जाने के दौरान कहां थे ?

पार्क के निदेशक ही नहीं बल्कि दूसरे जिम्मेदार अधिकारी भी इस पूरे मामले को लेकर सवालों के घेरे में है. हालांकि एनटीसीए ने जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं, लेकिन इतनी बड़ी गलती के लिए क्या छोटे कर्मचारियों पर ही कार्रवाई की जानी सही होगी ? निदेशक और वन मुख्यालय में बैठे वाइल्ड लाइफ से जुड़े अधिकारियों को भी इस मामले में चारों दोषी माना जाए.

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यही नहीं, इन कॉटेज को बनाने के लिए जिस भी अधिकारी ने परमिशन दी उस पर भी कार्यवाही क्यों नहीं होनी चाहिए ? ऐसे ही कुछ सवाल है जो लगातार वन विभाग की छवि को खराब करने में लगे हुए हैं. हालांकि, प्रमुख वन संरक्षक की तरफ से इस मामले पर संजीव चतुर्वेदी को जांच सौंप दी गई है, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद ध्वस्त किए गए भवनों कि यह कार्रवाई बताती है कि इस मामले में अधिकारियों की बड़े स्तर पर गलती रही है.

पहले भवन बनाने और फिर उन्हें ध्वस्त करने में सरकारी पैसे का दुरुपयोग भी हुआ है. इसके लिए न केवल मामला दर्ज किया जाना चाहिए, बल्कि रिकवरी का भी प्रावधान होना चाहिए ? हालांकि, इतने गंभीर मामले पर जिसका एनटीसीए और हाईकोर्ट तक संज्ञान ले चुका हो, उस पर जांच के बाद क्या कार्रवाई होती है यह देखना दिलचस्प होगा.

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आपको बता दें कि निदेशक कॉर्बेट की अगुवाई में दर्ज किए गए 4 आवासीय भवनों के अलावा 4 दूसरे भवन भी यहां बनाए किए जाने की खबर है. जबकि बताया जा रहा है कि करीब 16 भवन यहां पर बनाए जाने थे. जानकार कहते हैं कि कॉर्बेट की स्थापना के बाद से 2018 तक जितना निर्माण कॉर्बेट में नहीं हुआ, उससे ज्यादा निर्माण पिछले 2 सालों में करने की कोशिश की गई है.

इस मामले पर भी वन विभाग को अलग से जांच देनी चाहिए और इसकी परमिशन देने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए. हालांकि, यह पूरा मामला जांच के बाद और भी स्पष्ट होगा. जांच रिपोर्ट के आधार पर जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्रवाई की तलवार लटकना तय है.

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