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उत्तराखंडः IIP के वैज्ञानिकों ने किया कमाल, रसोई के तेल से दौड़ेंगी गाड़ियां - dehradun diesel

धरती पर कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की मात्रा सीमित है, लेकिन जिस तरह से आज डीजल-पेट्रोल की खपत हो रही है, उससे साफ है कि भविष्य खतरे में हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए देहरादून में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने वेस्ट कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की तकनीक खोज निकाला है, जो आने वाले भविष्य में मील का पत्थर साबित होगी.

देहरादून
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Published : Nov 11, 2019, 1:50 PM IST

Updated : Nov 11, 2019, 3:28 PM IST

देहरादून: प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (IIP) ने एक ऐसी नई तकनीक की खोज की है जिसके जरिए अब रसोई से डीजल निकलेगा. जी हां, आपकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की तकनीक आईआईपी देहरादून में इजाद की है. आइए आपको बताते हैं कि कैसे आपकी रसोई में पूड़ियां पकाने के बाद बचे हुआ तेल डीजल में बदल जाएगा. साथ ही जानते हैं कि व्यवसायिक रूप में आखिर यह कितना कारगर साबित होगा.

अब कुकिंग ऑयल से बनेगा डीजल

बायोडीजल को लेकर पिछले 8 सालों से शोधरत भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने अब रसोई में इस्तेमाल होने वाले कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की शुरुआत कर दी है. शोध टीम में शामिल प्रिंसिपल साइंटिस्ट नीरज ने इस विधि के बारे में एक स्कूली जानकारी दी. बता दें, इस शोध को लेकर 2015 में आईआईपी ने पेटेंट फाइल किया था जो कि 2018 में ग्रांट हुआ और अब इस पर काम शुरू हो चुका है.

ऐसे बनता है कुकिंग तेल से डीजल
शोध टीम के प्रिंसिपल साइंटिस्ट नीरज ने इस बायोडीजल सेटअप के बारे में समझाया कि डीजल बनाने में खाना बनाने वाले तेल का इस्तेमाल किया गया है. प्रयोगशाला में बने हुए मॉडल के जरिए वैज्ञानिक नीरज ने बताया कि उनके ही संस्थान की मेस से वेस्ट कुकिंग ऑयल को एकत्रित किया गया है और फिर इस वेस्ट को अलग करके एक कंटेनर में भेजा जाता है.

मॉडल में भी दर्शाया गया है. कुकिंग ऑयल को अलग करने के बाद इसमें मेथेनॉल साल्वेंट के साथ कैटालिस्ट जो कि सोडा (Na2CO3-सोडियम कार्बोनेट) के नाम से जाना जाता है, इन दोनों के मिश्रण को पृथक किए गए कुकिंग ऑयल के साथ मिला दिया जाता है. जिसके बाद कुकिंग ऑयल और मेथेनॉल-कैटालिस्ट का मिश्रण परत नुमा अवस्था में आ जाता है. नीचे तेल और ऊपर मेथेनॉल का मिश्रण प्राप्त होता है. इसके बाद पूरे मिश्रण को 3 से 4 घंटे तक 65 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है और फिर आईआईपी द्वारा तैयार किए गए पेटेंट को इसमें मैनुअली एक मिनट से भी कम समय तक मिलाया जाता है.

इसके बाद तत्काल ही रासायनिक क्रियाएं शुरू हो जाती हैं और अगले 15 मिनटों में बायो डीजल और ग्लिसरोल का पृथकीकरण शुरू हो जाता है, जो कि अगले 1 से 2 घंटे तक चल कर पूरा हो जाता है. प्राप्त हुए मिश्रण में ऊपर बायोडीजल की परत मिलती है और नीचे ग्लिसरोल लिए फॉर्म होती है. जिसके बाद ग्लिसरोल को आगे प्रोसेस कर साबुन इत्यादि इंडस्ट्री में इस्तेमाल करने के लिए भेजा जाता है और बायोडीजल को हम सीधे तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. बायोडीजल वाहनों में इस्तेमाल होने वाले डीजल की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

व्यवसायीकरण भी है आसान
पेट्रोलियम संस्थान के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नीरज ने बताया कि हमारे देश में 20 से 25 मिलियन टन कुकिंग ऑयल इस्तेमाल किया जाता है. अगर इसका 5 फीसदी यानी कुछ ही मिलियन टन भी कुकिंग ऑयल से इस विधि के द्वारा डीजल बनाने में इस्तेमाल करें तो कच्चे तेल के लिए किए जाने वाले कई करोड़ रुपए के विदेशी आयात को बचाया जा सकता है. आईआईपी में बायोडीजल प्रोसेस को लेकर की गई शोध के आधार पर आईआईपी परिसर में 50 लीटर प्रति बैच की एक रिसर्च यूनिट लगाई गई है. जिसके सफलतम परिणाम के बाद पहला व्यवसायिक प्लांट देहरादून के रायपुर में लगने जा रहा है. इस प्लांट में अगले साल मार्च तक प्रोडक्शन शुरू कर दिया जाएगा.

पढ़ें- 20वीं सदी के 'कबीर' का हर कोई है मुरीद, जिसने कलम की धार से हर बुराई पर किया वार

इसके साथ ही आईआईपी देहरादून को गुजरात से तीन बायोफ्यूल प्लांट का ऑर्डर मिला है तो वहीं उत्तर प्रदेश बायोफिल बोर्ड ने भी बुंदेलखंड में बायोफ्यूल प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया है. इसके अलावा इंडियन आर्मी, नेवी जहां पर भी बड़ी रसोईघर है, वहां पर इस तरह के प्लांट लगाए जाने का सुझाव आया है. कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो जहां भी बड़ी रसोई है या फिर छोटे-बड़े शहरों में इस तरह का प्लांट लगाया जा सकता है.

देहरादून: प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (IIP) ने एक ऐसी नई तकनीक की खोज की है जिसके जरिए अब रसोई से डीजल निकलेगा. जी हां, आपकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की तकनीक आईआईपी देहरादून में इजाद की है. आइए आपको बताते हैं कि कैसे आपकी रसोई में पूड़ियां पकाने के बाद बचे हुआ तेल डीजल में बदल जाएगा. साथ ही जानते हैं कि व्यवसायिक रूप में आखिर यह कितना कारगर साबित होगा.

अब कुकिंग ऑयल से बनेगा डीजल

बायोडीजल को लेकर पिछले 8 सालों से शोधरत भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने अब रसोई में इस्तेमाल होने वाले कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की शुरुआत कर दी है. शोध टीम में शामिल प्रिंसिपल साइंटिस्ट नीरज ने इस विधि के बारे में एक स्कूली जानकारी दी. बता दें, इस शोध को लेकर 2015 में आईआईपी ने पेटेंट फाइल किया था जो कि 2018 में ग्रांट हुआ और अब इस पर काम शुरू हो चुका है.

ऐसे बनता है कुकिंग तेल से डीजल
शोध टीम के प्रिंसिपल साइंटिस्ट नीरज ने इस बायोडीजल सेटअप के बारे में समझाया कि डीजल बनाने में खाना बनाने वाले तेल का इस्तेमाल किया गया है. प्रयोगशाला में बने हुए मॉडल के जरिए वैज्ञानिक नीरज ने बताया कि उनके ही संस्थान की मेस से वेस्ट कुकिंग ऑयल को एकत्रित किया गया है और फिर इस वेस्ट को अलग करके एक कंटेनर में भेजा जाता है.

मॉडल में भी दर्शाया गया है. कुकिंग ऑयल को अलग करने के बाद इसमें मेथेनॉल साल्वेंट के साथ कैटालिस्ट जो कि सोडा (Na2CO3-सोडियम कार्बोनेट) के नाम से जाना जाता है, इन दोनों के मिश्रण को पृथक किए गए कुकिंग ऑयल के साथ मिला दिया जाता है. जिसके बाद कुकिंग ऑयल और मेथेनॉल-कैटालिस्ट का मिश्रण परत नुमा अवस्था में आ जाता है. नीचे तेल और ऊपर मेथेनॉल का मिश्रण प्राप्त होता है. इसके बाद पूरे मिश्रण को 3 से 4 घंटे तक 65 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है और फिर आईआईपी द्वारा तैयार किए गए पेटेंट को इसमें मैनुअली एक मिनट से भी कम समय तक मिलाया जाता है.

इसके बाद तत्काल ही रासायनिक क्रियाएं शुरू हो जाती हैं और अगले 15 मिनटों में बायो डीजल और ग्लिसरोल का पृथकीकरण शुरू हो जाता है, जो कि अगले 1 से 2 घंटे तक चल कर पूरा हो जाता है. प्राप्त हुए मिश्रण में ऊपर बायोडीजल की परत मिलती है और नीचे ग्लिसरोल लिए फॉर्म होती है. जिसके बाद ग्लिसरोल को आगे प्रोसेस कर साबुन इत्यादि इंडस्ट्री में इस्तेमाल करने के लिए भेजा जाता है और बायोडीजल को हम सीधे तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. बायोडीजल वाहनों में इस्तेमाल होने वाले डीजल की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

व्यवसायीकरण भी है आसान
पेट्रोलियम संस्थान के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नीरज ने बताया कि हमारे देश में 20 से 25 मिलियन टन कुकिंग ऑयल इस्तेमाल किया जाता है. अगर इसका 5 फीसदी यानी कुछ ही मिलियन टन भी कुकिंग ऑयल से इस विधि के द्वारा डीजल बनाने में इस्तेमाल करें तो कच्चे तेल के लिए किए जाने वाले कई करोड़ रुपए के विदेशी आयात को बचाया जा सकता है. आईआईपी में बायोडीजल प्रोसेस को लेकर की गई शोध के आधार पर आईआईपी परिसर में 50 लीटर प्रति बैच की एक रिसर्च यूनिट लगाई गई है. जिसके सफलतम परिणाम के बाद पहला व्यवसायिक प्लांट देहरादून के रायपुर में लगने जा रहा है. इस प्लांट में अगले साल मार्च तक प्रोडक्शन शुरू कर दिया जाएगा.

पढ़ें- 20वीं सदी के 'कबीर' का हर कोई है मुरीद, जिसने कलम की धार से हर बुराई पर किया वार

इसके साथ ही आईआईपी देहरादून को गुजरात से तीन बायोफ्यूल प्लांट का ऑर्डर मिला है तो वहीं उत्तर प्रदेश बायोफिल बोर्ड ने भी बुंदेलखंड में बायोफ्यूल प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया है. इसके अलावा इंडियन आर्मी, नेवी जहां पर भी बड़ी रसोईघर है, वहां पर इस तरह के प्लांट लगाए जाने का सुझाव आया है. कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो जहां भी बड़ी रसोई है या फिर छोटे-बड़े शहरों में इस तरह का प्लांट लगाया जा सकता है.

Intro:Special Story--

एंकर- प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने एक ऐसी नई तकनीक की खोज की है जिसके जरिए अब रसोई से डीजल निकलेगा। जी हां आपकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की तकनीक आईआईपी देहरादून में इजात की है। आइए आपको बताते हैं कि कैसे आपकी रसोई में पूरी बनाने के बाद बचा हुआ तेल डीजल में बदल जाएगा और यह भी जानते हैं कि व्यवसायिक रूप में यह कितना कारगर साबित होगा।


Body:वीओ- बायोडीजल को लेकर पिछले 8 सालों से शोध रत भारतीय पेट्रोलियम संस्थान द्वारा सभी औपचारिकताओं के बाद अब रसोई में इस्तेमाल होने वाले कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने की शुरुआत कर दी है। शोध टीम में मौजूद प्रिंसिपल साइंटिस्ट नीरज ने इस विधि के बारे में एक स्कूली जानकारी दी। बता दें कि इस शोध को लेकर 2015 में आईआईपी ने पेटेंट फाइल किया था जो कि 2018 में ग्रांट हुआ और अब इस पर काम शुरू हो चुका है।

ऐसे बनता है कुकिंग वालों से डीजल----

शोध टीम के प्रिंसिपल साइंटिस्ट नीरज ने इस बायोडीजल सेटअप से समझाते हुए बताया कि इस विधि में हम सामान्यतः खाना बनाने वाला तेल जो कि किसी भी प्रकार का हो इस्तेमाल किया हुआ या बिना इस्तेमाल किया हुआ उसे डीजल में बदला जा सकता है। प्रयोगशाला में बने हुए मॉडल के जरिए वैज्ञानिक नीरज बताते हैं कि उनके ही संस्थान की मैस से कुकिंग ऑयल को एकत्रित किया गया है और फिर इस वेस्ट कुकिंग ऑयल को पृथक करके एक कंटेनर में भेजा जाता है। मॉडल में भी दर्शाया गया है। कुकिंग ऑयल को पृथक करने के बाद इसमें मेथेनॉल साल्वेंट के साथ कैटालिस्ट जो कि सोडा या NaOH के नाम से जाना जाता है, इन दोनों के मिश्रण को पृथक किए गए कुकिंग ऑयल के साथ मिला दिया जाता है। जिसके बाद कुकिंग ऑयल और मेथेनॉल-कैटेलिस्ट का मिश्रण परत नुमा अवस्था में आ जाता है। नीचे तेल और ऊपर मेथेनॉल का मिश्रण प्राप्त होता है। इसके बाद पूरे मिश्रण को 3 से 4 घंटे तक 65 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है और फिर आईआईपी द्वारा तैयार किए गए पेटेंट को इसमें मैनुअली 1 मिनट से भी कम समय तक मिलाया जाता है। इसके बाद तत्काल ही रासायनिक क्रियाएं शुरू हो जाती है और अगले 15 मिनटों में बायोडीजल और ग्लिसरोल का पृथकीकरण शुरू हो जाता है। जो कि अगले 1 से 2 घंटे तक चल कर पूरा हो जाता है। प्राप्त हुए मिश्रण में ऊपर बायोडीजल की परत मिलती है और नीचे ग्लिसरोल लिए फॉर्म होती है। जिसके बाद ग्लिसरोल को आगे प्रोसेस कर सॉप इत्यादि इंडस्ट्री में इस्तेमाल करने के लिए भेजा जाता है और बायोडीजल को हम सिरे इस्तेमाल कर सकते हैं। हम बायोडीज़ल बिल्कुल आज के दौर में वाहनों में इस्तेमाल होने वाले डीजल की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता हैं।

व्यवसायीकरण भी है आसान----

पेट्रोलियम संस्थान के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नीरज ने बताया कि हमारे देश में 20 से 25 मिलीयन टन कुकिंग ऑयल इस्तेमाल किया जाता है और अगर हम इसका 5 फ़ीसदी यानी कुछ ही मिलियन टन भी कुकिंग ऑयल से इस विधि के द्वारा डीजल बनाने में इस्तेमाल करें तो कच्चे तेल के लिए किए जाने वाले कई करोड़ रुपए के विदेशी आयात को बचाया जा सकता है। आईआईपी में बायोडीजल प्रोसेस को लेकर की गई शोध के आधार पर आईआईपी परिसर में 50 लीटर प्रति बैच की एक रिसर्च यूनिट लगाई गई है जिसके सफलतम परिणाम के बाद पहला व्यवसायिक प्लांट देहरादून के रायपुर में लगने जा रहा है। इस प्लांट में अगले साल मार्च तक प्रोडक्शन शुरू कर दिया जाएगा। इसके अलावा आईआईपी देहरादून को गुजरात से तीन बायोफ्यूल प्लांट का ऑर्डर मिला है, तो वहीं उत्तर प्रदेश बायोफिल बोर्ड ने भी बुंदेलखंड में बायोफ्यूल प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया है। इसके अलावा इंडियन आर्मी, नेवी जहां पर भी बड़ी रसोईघर मौजूद है वहां पर इस तरह के प्लांट लगाए जाने का सुझाव आया है। कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो जहां भी बड़ी रसोई है या फिर छोटे-बड़े शहरों में इस तरह का प्लांट लगाया जा सकता है।


Conclusion:
Last Updated : Nov 11, 2019, 3:28 PM IST
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