देहरादून: प्रदेश के वित्तीय हालात ठीक नहीं है, बढ़े हुए खर्च की पूर्ति के लिए सरकार को पैसे का इंतजाम करना पड़ रहा है. राज्य कर्ज के तले दबा हुआ है, नतीजा यह है कि उसे अपने खर्चों पर काबू करना पड़ रहा है. वहीं, प्रदेश की इन वित्तीय चिंताओं को कोरोना ने कई गुना बढ़ा दिया है. लिहाजा, इन सभी अनिश्चिताओं के बीच सरकार प्रदेश में चल रही योजनाओं को आखिर कैसे पूरा करेगी, इसका जवाब भी शायद ही सरकार के पास हो.
प्रदेश पिछले 21 सालों में 50,000 करोड़ से ज्यादा के कर्जे में डूब चुका है. सबसे ज्यादा नुकसान राज्य को कोविडकाल में हुआ है. कोरोना से हुए नुकसान को लेकर बनाई गई कमेटी ने 9 महीने में ही करीब 4,000 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन किया था. जानकारी के अनुसार, इस नुकसान में अप्रैल, मई और जून 2020, 3 महीनों में ही सरकार को करीब 1000 करोड़ का नुकसान हो चुका था. जो धीरे धीरे आगे बढ़ता चला गया.
अब हालात यह है कि राज्य में लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लिया जा रहा है. चिंता की बात यह है कि खराब होती स्थिति के चलते भविष्य में न केवल विकास योजनाओं पर खतरा मंडराने लगा है, बल्कि कर्मचारियों की तनख्वाह देने के भी लाले पड़ सकते हैं. बकायदा सरकार केंद्रीय योजनाओं के तहत प्रदेश में बजट लाने के प्रयास में जुटी हुई है और उधार लेकर योजनाओं को चलाने की कोशिश भी जारी है.
नुकसान का आकलन: प्रदेश में राजस्व के लिहाज से पर्यटन सेक्टर, आबकारी विभाग, परिवहन विभाग, खनन, वेट और जीएसटी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. इसमें पर्यटन सेक्टर में करीब 1600 करोड़ का नुकसान अनुमानित माना गया है, और 23,000 लोगों के बेरोजगार होने संभावना है. परिवहन विभाग जो 2020 में कोरोना के चलते करीब 60% तक नुकसान में रहा, इस तरह सरकार को परिवहन विभाग से करीब 20 करोड़ का नुकसान अनुमानित है. दरअसल, राज्य को वाहन टैक्स, रजिस्ट्रेशन, रिन्यूअल, लाइसेंस फीस और रोड टैक्स से राजस्व मिलता है.
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सरकार को करीब 80 करोड़ का नुकसान: राज्य में कोरोनाकाल मे जमीन बिक्री और रजिस्ट्री में करीब 13% तक की कमी आई थी, जिसके कारण राज्य को स्टांप शुल्क में करीब 200 करोड़ का नुकसान हुआ है. प्रदेश को आबकारी विभाग से मिलने वाले रेवन्यू में भी 450 से 500 करोड़ का नुकसान हुआ है. उत्तराखंड को माल एवं सेवा कर से मिलने वाले रेवेन्यू में भी पिछले 1 साल में भारी घाटा हुआ और अनुमानित तौर पर यह घाटा 750 करोड़ रुपए का था.
ऐसे में उत्तराखंड सरकार अब एक बार फिर राजस्व जुटाने को लेकर अधिकारियों को दिशा निर्देश दे रही है, इस कड़ी में स्टांप और जीएसटी को लेकर खास तौर पर टारगेट सेट किए गए हैं. अधिकारी मान रहे हैं कि एक बार फिर राजस्व फिर से अपनी यथावत स्थिति की तरफ बढ़ रहा है. वैसे आपको बता दें कि उत्तराखंड को 5500 करोड़ तक का लोन लेने की सीमा है. कोविड के दौरान राज्य से निर्यात भी करीब 50% तक कम हो गया था. आंकड़ों के अनुसार करीब 16,971 करोड़ का 2019 में निर्यात हुआ, जिसमें 2020 में भारी कमी देखी गई इस दौरान करीब 8,624 करोड़ का निर्यात किया गया.
वित्तीय स्थिति को लेकर निर्भरता: उत्तराखंड सरकार की निर्भरता केंद्रीय योजनाओं और बजट पर रही है. यही कारण है कि कोरोना काल में त्रिवेंद्र सिंह से लेकर तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर सिंह धामी भी दिल्ली के चक्कर लगाकर केंद्र से बजट लाने की जद्दोजहद में दिखाई दिए. कोविड से सुधर रही स्थितियों के बीच राज्य केंद्र से 600 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति योजनाओं के लिए लेने में कामयाब रहा है. हालांकि, राज्य को यह बजट अलग-अलग चरणों में मिल पाएगा. इसके अलावा राहत पैकेज पाने की कोशिश और केंद्रीय योजनाओं में केंद्र की सहभागिता बढ़ाने का प्रयास भी सरकार के स्तर से हो रहा है.
खराब वित्तीय हालातों से किन क्षेत्रों पर होगा असर: उत्तराखंड में खराब हालातों का सबसे बड़ा असर राज्य की योजनाओं पर पड़ेगा. नई योजनाओं के लिए बजट नहीं होने से राज्य स्तर पर किसी नई योजना को सरकार चलाने में सक्षम नहीं हो पाएगी, जो फिलहाल दिखाई भी दे रहा है. इसके अलावा राज्य का बड़ा खर्च वेतन भत्ते और पेंशन देने को लेकर है इसलिए आज से दूसरी बड़ी परेशानी कर्मचारियों के वेतन को लेकर भी रहेगी.
इसका असर सबसे पहले विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं पर दिखाई देने लगा है, यानी घाटे में चल रहे निगम राज्य सरकार की मदद ना पाने के कारण अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहे हैं. साफ है कि वेतन को लेकर निगमों के कर्मचारियों के सामने आई समस्या धीरे-धीरे आगे बढ़ी तो यह दिक्कतें विभागों के कर्मचारियों तक भी पहुंचेगी.
जानें क्या पड़ेगा असर: उत्तराखंड में बजट की कमी और वित्तीय स्थिति खराब होने के कारण राजनीतिक एजेंडों पर भी इसका असर होगा. हालांकि, राज्य सरकार लगातार कई घोषणाएं और राहत पैकेज देने के साथ विभिन्न सेक्टर में बजट देने की बात कह रही है, लेकिन हकीकत यह है कि यदि यह बजट मिल भी जाता है तो उसके लिए भी सरकार को उधार लेना होगा. यानी चुनाव से पहले सरकार के एजेंडे पर भी इसका खुले रूप से असर दिखाई देगा.
सक्षम नहीं उत्तराखंड के हालात: राज्य में कर्मचारियों की मांगों को लेकर अक्सर तमाम संगठन सरकार और शासन में गुहार लगाते हुए दिखाई दिए हैं. लेकिन इन कर्मचारियों की अधिकतर मांगों पर वित्तीय आपत्तियों के चलते काम नहीं हो पाता. जाहिर है कि राज्य के खराब वित्तीय हालात इन कर्मचारियों के वेतन, भत्ते या वित्त से जुड़े तमाम मांगों के लिए अड़चन बने हुए हैं.
औद्योगिक क्षेत्रों को नुकसान: तमाम सेक्टर्स की तरह उत्तराखंड का औद्योगिक क्षेत्र भी कोरोनावायरस के कारण प्रभावित हुआ है और इससे भारी नुकसान विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों को उठाना पड़ रहा है. खास बात यह है कि तमाम कंपनियों ने कर्मचारियों की छंटनी भी की है और उनके कामों पर भी इसका असर हुआ है. उत्तराखंड में वित्तीय स्थिति खराब होने के कारण राज्य सरकार औद्योगिक क्षेत्रों को भी ज्यादा सहूलियत देने में सक्षम नहीं हो पा रही है.
वहीं, इसका असर भविष्य में महंगी बिजली या अधिक टैक्स के रूप में भी तमाम उद्योगों पर पड़ सकता है. इस बीच वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि राज्य में राजनेताओं की अदूरदर्शिता प्रदेश के वित्तीय हालातों को और भी खराब करती रही है. उधर, खराब हालातों के बावजूद भी सरकार की तरफ से बड़े पैकेज और गैरजरूरी कार्यों ने राज्य की परेशानियों को और भी ज्यादा बढ़ाया है.