देहरादून: कोरोना और लॉकडाउन के कारण पिछले दो महीने से बैंड-बाजा-बारात के कारोबार पर पूरी तरह लॉक लगा हुआ है. इसके कारण इससे जुड़े लोग खाली बैठे हैं. शादी-ब्याह में अहम भूमिका निभाने वाले घोड़ा-बग्घी संचालकों को तो इन दिनों दोहरी समस्या से गुजरना पड़ रहा है. एक तो परिवार की आर्थिकी और ऊपर से जानवरों की देख-रेख के साथ ही उनके मेडिकल, खाने पीने की जिम्मेदारी. लॉकडाउन में इनकी हालत बेहद खराब हो गई है.
घोड़ा-बग्गी के मालिक आशीष तलवार बताते हैं कि उनके पास 22 घोड़े हैं. हर एक घोड़े पर हर दिन 400 रुपये खर्च होते हैं. लॉकडाउन के दौरान जानवरों का खाना और दूसरी जरूरी चीजें भी महंगी हो गयी हैं. आशीष तलवार ने बताया कि लॉकडाउन से उनका काम-धंधा चौपट हो गया है. इससे जानवरों पर मेहनत और उन पर होने वाला खर्च बढ़ गया है.
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घोड़ियों की सेवा करने वाले दीपक कश्यप बताते हैं कि लॉकडाउन के कारण 20 परिवारों का खर्चा बंद हो गया है. उन्होंने कहा कि हालांकि अब भी वे पूरे मन से अस्तबल में मौजूद जानवरों की सेवा करते हैं.
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बात तलवार घोड़ा-बग्घी संचालक ही नहीं है बल्कि करीब 250 से ज्यादा घोड़े, घोड़ियां लॉकडाउन में खाली हैं. इससे सैकड़ों लोगों का परिवार चलता है. इसी घोड़ा-बग्घी के काम से आशीष सालाना 50 लाख तक कमाते थे. इसे वो और घोड़ों के रख रखाव में खर्च कर देते हैं. इस बार हालात बेहद खराब हो गए हैं. बैंकों से लोन लेने की कोशिश भी आशीष के काम नहीं आई.
बकौल आशीष बैंक फिलहाल इसको लेकर कोई लोन भी मुहैया नहीं करवा रहे हैं. कुल मिलाकर कहा जाये तो लॉकडाउन की मार से घोड़ा-बग्घी संचालकों को खासा नुकसान हुआ है.
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बता दें उत्तराखंड में करीब 250-300 घोड़ी और घोड़े हैं. इनसे तकरीबन 500 परिवारों का भरण-पोषण होता है. मगर लॉकडाउन और कोरोना के कारण घोड़ा-बग्घी संचालकों के साथ ही इन परिवारों को भी अब परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हर बीतते दिन के साथ घोड़ा-बग्घी संचालकों को भी लॉकडाउन खुलने का इंतजार है, जिससे बैंड-बाजा-बारात के साथ उनके घर की खुशियां भी वापस आ सकें.