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100 साल से पुराना है बिस्सू गनियात मेले का इतिहास, जौनसारी संस्कृति को है सहेजा - संस्कृति कर्मी डॉक्टर नंदलाल भारतीॉ

चकराता के ठाणा डांडा में ऐतिहासिक बिस्सू गनियात मेला 100 से भी अधिक वर्षों से मनाया जा रहा है. ये मेला जौनसार बावर जनजाति के द्वारा मनाया जाता है. यह सांस्कृतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक विरासत को संजोए हुए है. इसमें कई पारंपरिक नृत्य और लोकगीत की प्रस्तुतियां दी जाती हैं.

ठाणा डांडा बिस्सू गनियात मेला
ठाणा डांडा बिस्सू गनियात मेला
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Published : Apr 18, 2023, 10:07 AM IST

Updated : Apr 18, 2023, 2:02 PM IST

100 साल से पुराना है बिस्सू गनियात मेले का इतिहास

विकासनगर: चकराता के ठाणा डांडा मे ऐतिहासिक बिस्सू गनियात मेला 105 वर्षों से मनाया जा रहा है. यह मेला सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है. जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में अनेकों पारंपारिक त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं. उन्हीं में से एक बिस्सू गनियात मेला है. इसमें लोक संस्कृति के मनमोहक नजारे दिखते हैं. चकराता के ठाणा डांडा में आज लोक गायन, लोक नृत्य, हारुल, तांदी, महिलाओं व पुरुषों द्वारा पारम्परिक वेशभूषा के साथ ढोल आदि पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर किया गया. इसके साथ ही पौराणिक सांस्कृतिक ठोडा नृत्य (तीर कमान) का भी आयोजन किया गया.

आपसी भाईचारे व सौहार्द का प्रतीक: इस पर्व में जौनसारी समाज के सभी दंपति नवयुवक-युवतियां, बुजुर्ग मैदानी क्षेत्रों से अपने गांव की ओर रुख करते हैं. बिस्सू आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने वाला मेला है. ठाणा गांव की शशि सिंह ने बताया कि यह पर्व आपसी भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक है. ग्रामीण इस मेले में आते हैं. सभी महिला एवं पुरुष पारम्परिक नृत्य करते हैं, जिसमे तांदी, हारूल, झैता, रासौ लोक नृत्य और गीतों की प्रस्तुति दी जाती है. इस अवसर पर सभी परिचित लोगों से एवं रिश्तेदारों से मेल मिलाप हो जाता है. साथ ही यह परंपरा है कि सब लोग अपने घर से पारंपरिक व्यंजन मीठी पूरी बनाकर अपनी बहन बेटी को खिलाते हैं.
यह भी पढ़ें: अल्मोड़ा के पाली पछाऊं क्षेत्र में मेले की धूम, द्वाराहाट में शुरु हुआ प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती मेला

पारंपरिक संस्कृति को संजोए हुये है यह मेला: संस्कृति कर्मी डॉक्टर नंदलाल भारती बताते हैं कि बिस्सू गनियात हमारी सांस्कृतिक विरासत है. यह लोक संस्कृति की झांकी है. जिस तरह से हम देश में गणतंत्र दिवस मनाते हैं, ऐसे ही हमारे जौनसार बावर का यह मेला है. यह अपनी लोक संस्कृति को इस तरीके से प्रस्तुत करते हैं जिससे हमें आभास हो कि हमारी संस्कृति कितनी मजबूत है, कितनी वैभवशाली है. हमारी सांस्कृतिक धरोहर आज के पश्चिमी युग में भी कितनी काबिज है, इसका अनुमान आप यहां जनसैलाब को देखकर लगा सकते हैं. यह वे लोग हैं जिन्हें आमंत्रित नहीं किया जाता है, यह वे लोग हैं जो अपनी संस्कृति के लिए समर्पित है.

100 साल से पुराना है बिस्सू गनियात मेले का इतिहास

विकासनगर: चकराता के ठाणा डांडा मे ऐतिहासिक बिस्सू गनियात मेला 105 वर्षों से मनाया जा रहा है. यह मेला सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है. जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में अनेकों पारंपारिक त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं. उन्हीं में से एक बिस्सू गनियात मेला है. इसमें लोक संस्कृति के मनमोहक नजारे दिखते हैं. चकराता के ठाणा डांडा में आज लोक गायन, लोक नृत्य, हारुल, तांदी, महिलाओं व पुरुषों द्वारा पारम्परिक वेशभूषा के साथ ढोल आदि पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर किया गया. इसके साथ ही पौराणिक सांस्कृतिक ठोडा नृत्य (तीर कमान) का भी आयोजन किया गया.

आपसी भाईचारे व सौहार्द का प्रतीक: इस पर्व में जौनसारी समाज के सभी दंपति नवयुवक-युवतियां, बुजुर्ग मैदानी क्षेत्रों से अपने गांव की ओर रुख करते हैं. बिस्सू आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने वाला मेला है. ठाणा गांव की शशि सिंह ने बताया कि यह पर्व आपसी भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक है. ग्रामीण इस मेले में आते हैं. सभी महिला एवं पुरुष पारम्परिक नृत्य करते हैं, जिसमे तांदी, हारूल, झैता, रासौ लोक नृत्य और गीतों की प्रस्तुति दी जाती है. इस अवसर पर सभी परिचित लोगों से एवं रिश्तेदारों से मेल मिलाप हो जाता है. साथ ही यह परंपरा है कि सब लोग अपने घर से पारंपरिक व्यंजन मीठी पूरी बनाकर अपनी बहन बेटी को खिलाते हैं.
यह भी पढ़ें: अल्मोड़ा के पाली पछाऊं क्षेत्र में मेले की धूम, द्वाराहाट में शुरु हुआ प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती मेला

पारंपरिक संस्कृति को संजोए हुये है यह मेला: संस्कृति कर्मी डॉक्टर नंदलाल भारती बताते हैं कि बिस्सू गनियात हमारी सांस्कृतिक विरासत है. यह लोक संस्कृति की झांकी है. जिस तरह से हम देश में गणतंत्र दिवस मनाते हैं, ऐसे ही हमारे जौनसार बावर का यह मेला है. यह अपनी लोक संस्कृति को इस तरीके से प्रस्तुत करते हैं जिससे हमें आभास हो कि हमारी संस्कृति कितनी मजबूत है, कितनी वैभवशाली है. हमारी सांस्कृतिक धरोहर आज के पश्चिमी युग में भी कितनी काबिज है, इसका अनुमान आप यहां जनसैलाब को देखकर लगा सकते हैं. यह वे लोग हैं जिन्हें आमंत्रित नहीं किया जाता है, यह वे लोग हैं जो अपनी संस्कृति के लिए समर्पित है.

Last Updated : Apr 18, 2023, 2:02 PM IST
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