ETV Bharat / state

ऐतिहासिक मौण मेले का हुआ आयोजन, सालों से संजोकर रखी है सांस्कृतिक विरासत

मसूरी के नजदीक जौनपुर में उत्तराखंड की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर मौण मेला का आयोजन किया गया. सन 1866 से लगातार इस मेले का आयोजन किया जाता रहा है. कोरोना के कारण पिछले दो सालों से इस मेले का आयोजन नहीं हो रहा था.

maun fair
मौण मेला
author img

By

Published : Jun 26, 2022, 5:34 PM IST

Updated : Jun 26, 2022, 7:37 PM IST

मसूरीः उत्तराखंड के मसूरी के पास जौनपुर में ऐतिहासिक मौण मेला का आयोजन किया जाएगा. मेले में सैड़कों लोगों ने शिरकत की और दूसरे को मौण मेले की शुभकामनाएं दी. जौनपुर में मछली पकड़ने वाला मौण मेला टिहरी रियासत काल 1866 आयोजित किया जा रहा है. हर साल ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते हैं. कोरोना के कारण पिछले दो सालों से इस मेले का आयोजन नहीं हो रहा था.

मेले के तहत ग्रामीण एक माह पहले जंगली जड़ी-बूटी का पेड़ टिमरू के पौधे की छाल निकालकर उसको सूखाकर घराट पर पीसा जाता है. उसी पाउडर को लेकर हजारों की संख्या में ग्रामीण एक नियत तिथि पर नदी पर जाते हैं. ग्रामीण नदी पर जाने के दौरान ढोल-दमाऊ की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं. नदी पर पहुंचने के बाद ग्रामीण टिमरू पौधे की छाल से बने पाउडर को नदी में डालते हैं, जिससे नदी की मछलियां बेहोश हो जाती हैं, इसके बाद हजारों की तादाद में ग्रामीण नदी में मछली पकड़ने के लिए कूद पड़ते हैं. इस मेले को राजमौण मेला भी कहा जाता है.

ऐतिहासिक मौण मेले का हुआ आयोजन
ये भी पढ़ेंः जौनपुर का ऐतिहासिक मौण मेला कल, 1866 में टिहरी राज में शुरू हुई थी अनूठी परंपरा

मौण मेले को लेकर स्थानीय लोगों में भारी उत्साह देखने को मिलता है. स्थानीय लोगों में मौण मेले का साल भर से ही इंतजार रहता है. मेले में क्षेत्र के लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया. अगलाड़ नदी में लगने वाला अनोखा मौण मेले की परंपरा टिहरी रियासत काल से चली आ रही है.

क्या होता है मौणः मौण एक प्रकार का पाउडर होता है, जो पहाड़ी क्षेत्रों मे उगने वाले टिमरू के पौधों के पत्तियों और उसकी टहनियों को पीस कर बनाया जाता है. इस वर्ष मौण डालने की बारी सिलगांव पट्टी के ग्रामीणों की थी.

यह है ऐतिहासिक महत्व: मौण मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था. तब से जौनपुर में निरंतर मेले का आयोजन किया जाता है. क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें मेले टिहरी नरेश खुद अपने लाव लश्कर और रानियों के साथ मौजूद रहते थे. मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे. सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण स्वयं उठाते हैं और किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं

मसूरीः उत्तराखंड के मसूरी के पास जौनपुर में ऐतिहासिक मौण मेला का आयोजन किया जाएगा. मेले में सैड़कों लोगों ने शिरकत की और दूसरे को मौण मेले की शुभकामनाएं दी. जौनपुर में मछली पकड़ने वाला मौण मेला टिहरी रियासत काल 1866 आयोजित किया जा रहा है. हर साल ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते हैं. कोरोना के कारण पिछले दो सालों से इस मेले का आयोजन नहीं हो रहा था.

मेले के तहत ग्रामीण एक माह पहले जंगली जड़ी-बूटी का पेड़ टिमरू के पौधे की छाल निकालकर उसको सूखाकर घराट पर पीसा जाता है. उसी पाउडर को लेकर हजारों की संख्या में ग्रामीण एक नियत तिथि पर नदी पर जाते हैं. ग्रामीण नदी पर जाने के दौरान ढोल-दमाऊ की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं. नदी पर पहुंचने के बाद ग्रामीण टिमरू पौधे की छाल से बने पाउडर को नदी में डालते हैं, जिससे नदी की मछलियां बेहोश हो जाती हैं, इसके बाद हजारों की तादाद में ग्रामीण नदी में मछली पकड़ने के लिए कूद पड़ते हैं. इस मेले को राजमौण मेला भी कहा जाता है.

ऐतिहासिक मौण मेले का हुआ आयोजन
ये भी पढ़ेंः जौनपुर का ऐतिहासिक मौण मेला कल, 1866 में टिहरी राज में शुरू हुई थी अनूठी परंपरा

मौण मेले को लेकर स्थानीय लोगों में भारी उत्साह देखने को मिलता है. स्थानीय लोगों में मौण मेले का साल भर से ही इंतजार रहता है. मेले में क्षेत्र के लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया. अगलाड़ नदी में लगने वाला अनोखा मौण मेले की परंपरा टिहरी रियासत काल से चली आ रही है.

क्या होता है मौणः मौण एक प्रकार का पाउडर होता है, जो पहाड़ी क्षेत्रों मे उगने वाले टिमरू के पौधों के पत्तियों और उसकी टहनियों को पीस कर बनाया जाता है. इस वर्ष मौण डालने की बारी सिलगांव पट्टी के ग्रामीणों की थी.

यह है ऐतिहासिक महत्व: मौण मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था. तब से जौनपुर में निरंतर मेले का आयोजन किया जाता है. क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें मेले टिहरी नरेश खुद अपने लाव लश्कर और रानियों के साथ मौजूद रहते थे. मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे. सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण स्वयं उठाते हैं और किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं

Last Updated : Jun 26, 2022, 7:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.