देहरादून: राजधानी देहरादून में स्थित विश्व प्रसिद्ध वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के अस्तित्व को बचाने के लिए आखिरकार केंद्र सरकार की 20 साल बाद नींद टूट ही गई. 20 साल पहले आए भूकंप के दौरान बिल्डिंग में जो दरारें आई थीं, अब उनको भरने का काम शुरू हो गया है. दरारों की वजह से बिल्डिंग पर खतरा मंडरा रहा है.
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साल 1929 में ब्रिटिश काल के दौरान ग्रीक-रोमन वास्तुकला से बनी एफआरआई की बिल्डिंग में 20 पहले कुछ दरारें आ गई थीं. 12 सौ एकड़ में फैले इस वन अनुसंधान केंद्र परिसर में लाखों प्रजातियों के पेड़ पौधे मौजूद हैं, जिन पर रिसर्च होता है. साथ ही यहां दशकों पुरानी बेशकीमती लकड़ियों को ट्रीटमेंट कर सुरक्षित रखा गया है. इस बिल्डिंग में 5 म्यूजियम है, जिन्हें देखने के लिए लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं.
इन सब के बाजवूद इस धरोहर को बचाने में 20 साल से ज्यादा का समय लग गया. हालांकि अब जल्द ही सिविल इंजीनियरिंग द्वारा इन दरारों का ट्रीटमेंट किया जाएगा. ताकि इस ऐतिहासिक भवन को बचाया जा सके. इसके लिए 16.86 करोड़ रुपए का डीपीआर भी तैयार हो चुकी है. केंद्रीय कार्यदायी संस्था सीपीडब्ल्यूडी ने इसे फाइनल टच दे दिया है. अगले दो तीन दिनों में डीपीआर को मंजूरी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जाएगा. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से हरी झंडी मिलने की बाद विदेश तकनीक से दरारें भरने का काम शुरू किया जाएगा. जिससे एफआरआई बिल्ंडिग को नया जीवन मिल सकेगा.
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बता दें कि 1999 में उत्तराखंड के चमोली जिले में भीषण भूंकप आया था. जिसका असर देहरादून में भी देखने को मिला था. इस दौरान एफआरआई की बिल्डिंग में भी कुछ दरारें आ गई थीं. हालांकि इन 20 सालों में एफआरआई के अधिकारियों ने इन दरारों को भरने के लिए कई बार भारत सरकार वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखा है, लेकिन उसके बाद भी इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.
हालांकि अब लंबे समय बाद इस धरोहर को बचाने के लिए आईआईटी रुड़की और सीबीआरआई ( सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) जैसे संस्थानों ने एक सर्वे किया. इसके अलावा इसकी निगरानी भी की जा रही है. ताकि ये दरारें न बढ़ें.
इस बारे में जानकारी देते हुए एफआरआई संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी केपी सिंह ने बताया कि वर्षों की मेहनत के बाद इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने का कार्य जल्द ही शुरू किया जाएगा. जिसकी डीपीआर तैयार हो चुकी है. केंद्र सरकार द्वारा बजट पास होते ही कार्यदाई संस्था सीपीडब्ल्यूडी विदेश तकनीक से इस दरारों को भरने का काम करेंगी.