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अफ्रीकी धूल से पिघल रहे हिमालयी ग्लेशियर, बढ़ा खतरा - बर्फ में कब तक रह सकते हैं धूल के कण?

एशिया और अफ्रीका की धूल से तेजी से हिमालय की बर्फ पिघल रही है, जिसकी वजह से वैज्ञानिक चिंतित हैं. माना जा रहा है कि हिमालय की पिघलती बर्फ से अरब सागर का फूड चेन बिगड़ सकता है.

Glaciers melting in Uttarakhand
अफ्रीका धूल से पिघल रही हिमालय की बर्फ
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Published : Nov 1, 2020, 6:46 PM IST

Updated : Nov 1, 2020, 7:37 PM IST

देहरादून: पिछले कई सालों से वैज्ञानिक हमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर चेतावनी देते आ रहे हैं. लेकिन, दिन प्रतिदिन हालात गंभीर होते जा रहे हैं. एशिया और अफ्रीकी क्षेत्रों में ज्यादा प्रदूषण और धूल की वजह से हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है. एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है. शोध में बताया गया है कि पश्चिमी हिमालय में ऊंचे पहाड़ों पर उड़ने वाली धूल बर्फ के तेजी से पिघलने के प्रमुख कारकों में से एक है.

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित रिसर्च पर जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. संतोष कुमार राय ने कहा कि बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल, बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर सकती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धूल सूरज की रोशनी को अवशोषित कर सकती है और बाद में आसपास के क्षेत्र को गर्म कर सकती है.

अफ्रीका धूल से तेजी से पिघल रही हिमालय की बर्फ.

उन्होंने कहा है कि तेजी से पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ की चोटियां चिंता का विषय हैं, नियमित बर्फ पिघलना भी प्राकृतिक पारिस्थितिकी का हिस्सा है. ग्लेशियर से जो मीठा पानी बहकर नीचे उतरता है, वही नदियों में प्रवाहित होते हैं. यह सामान्य स्नोमेल्ट प्रक्रिया के परिणामस्वरूप होता है. लेकिन, एशिया और अफ्रीका की धूल कई किलोमीटर का सफर तक कर हिमालय पहुंचती हैं और ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचाती है.

700 मिलियन लोग बर्फ पर निर्भर

एक अनुमान के मुताबिक, दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग 700 मिलियन लोग अपनी मीठे पानी की जरूरतों के लिए हिमालय की बर्फ पर निर्भर हैं. गंगा, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्ज़ी, और हुआंग सहित भारत और चीन की प्रमुख नदियां हिमालय से ही उत्पन्न होती हैं. इसलिए, इस तरह के अध्ययनों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है कि इन क्षेत्रों में स्नोमेल्ट पहले जैसा है या नहीं और अगर इसमें बदलाव हुआ है तो यह क्यों हुआ है.

ये भी पढ़ें: खतरे में एशिया का वाटर हाउस, क्या खत्म हो जाएगा गंगा सहित इन नदियों का अस्तित्व?

इस शोध के पहले भी एक जानकारी या चेतावनी दी गई थी कि हिमालय के पिघलते हुए बर्फ और ग्लेशियर की वजह से अरब सागर में एक खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि हिमालय की पिघलती बर्फ से अरब सागर का फूड चेन बिगड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो अरब सागर के जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन और खाने की कमी हो जाएगी.

क्या कहता है शोध?

  • पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल तेजी से बर्फ को पिघलाने में मदद कर सकती है.
  • धूल में सूरज की रोशनी अवशोषित करने की क्षमता होती है.
  • धूल आसपास के क्षेत्र को गर्म करके वहां बर्फ को पिघला सकती है.
  • एशिया और अफ्रीका में प्रदूषण ज्यादा बढ़ने से धूल, बर्फ को पिघला रही है.
  • नियमित बर्फ पिघलना प्राकृतिक स्थिति. लेकिन तेजी से बर्फ पिघलना चिंता का विषय.
  • ग्लेशियर से पिघलकर मीठा पानी नीचे नदियों में प्रवाहित होता है.
  • दक्षिण-पूर्व एशिया के 70 करोड़ लोग मीठे पानी की जरूरतों के लिए बर्फ पर निर्भर करते हैं.
  • पांच अरब टन रेगिस्तानी धूल हर साल धरती के वातावरण में उड़कर अदृश्य हो जाती है.

बर्फ में कब तक रह सकते हैं धूल के कण?

  • धूल के कण ब्लैक कार्बन की तुलना में लंबे समय तक बर्फ में रह सकते हैं.
  • धूल के कण आमतौर पर थोड़े बड़े होते हैं, आसानी से बर्फ से नहीं उड़ पाते हैं.

डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक, जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो उसका असर उस से निकलने वाली नदियों पर भी पड़ता है. फिलहाल, वैज्ञानिक इस बात पर रिसर्च कर रहे हैं कि क्या वास्तव में ग्लेशियर पर जमा हो रही धूल से पिघल रहे बर्फ का असर नदियों के जलस्तर पर पड़ रहा है या नहीं? इससे पहले भी रिसर्च में यह दावा किया गया है कि गंगासागर में ग्लेशियर की भागीदारी मात्र 10 से 20 फीसदी ही है.

देहरादून: पिछले कई सालों से वैज्ञानिक हमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर चेतावनी देते आ रहे हैं. लेकिन, दिन प्रतिदिन हालात गंभीर होते जा रहे हैं. एशिया और अफ्रीकी क्षेत्रों में ज्यादा प्रदूषण और धूल की वजह से हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है. एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है. शोध में बताया गया है कि पश्चिमी हिमालय में ऊंचे पहाड़ों पर उड़ने वाली धूल बर्फ के तेजी से पिघलने के प्रमुख कारकों में से एक है.

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित रिसर्च पर जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. संतोष कुमार राय ने कहा कि बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल, बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर सकती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धूल सूरज की रोशनी को अवशोषित कर सकती है और बाद में आसपास के क्षेत्र को गर्म कर सकती है.

अफ्रीका धूल से तेजी से पिघल रही हिमालय की बर्फ.

उन्होंने कहा है कि तेजी से पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ की चोटियां चिंता का विषय हैं, नियमित बर्फ पिघलना भी प्राकृतिक पारिस्थितिकी का हिस्सा है. ग्लेशियर से जो मीठा पानी बहकर नीचे उतरता है, वही नदियों में प्रवाहित होते हैं. यह सामान्य स्नोमेल्ट प्रक्रिया के परिणामस्वरूप होता है. लेकिन, एशिया और अफ्रीका की धूल कई किलोमीटर का सफर तक कर हिमालय पहुंचती हैं और ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचाती है.

700 मिलियन लोग बर्फ पर निर्भर

एक अनुमान के मुताबिक, दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग 700 मिलियन लोग अपनी मीठे पानी की जरूरतों के लिए हिमालय की बर्फ पर निर्भर हैं. गंगा, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्ज़ी, और हुआंग सहित भारत और चीन की प्रमुख नदियां हिमालय से ही उत्पन्न होती हैं. इसलिए, इस तरह के अध्ययनों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है कि इन क्षेत्रों में स्नोमेल्ट पहले जैसा है या नहीं और अगर इसमें बदलाव हुआ है तो यह क्यों हुआ है.

ये भी पढ़ें: खतरे में एशिया का वाटर हाउस, क्या खत्म हो जाएगा गंगा सहित इन नदियों का अस्तित्व?

इस शोध के पहले भी एक जानकारी या चेतावनी दी गई थी कि हिमालय के पिघलते हुए बर्फ और ग्लेशियर की वजह से अरब सागर में एक खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि हिमालय की पिघलती बर्फ से अरब सागर का फूड चेन बिगड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो अरब सागर के जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन और खाने की कमी हो जाएगी.

क्या कहता है शोध?

  • पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल तेजी से बर्फ को पिघलाने में मदद कर सकती है.
  • धूल में सूरज की रोशनी अवशोषित करने की क्षमता होती है.
  • धूल आसपास के क्षेत्र को गर्म करके वहां बर्फ को पिघला सकती है.
  • एशिया और अफ्रीका में प्रदूषण ज्यादा बढ़ने से धूल, बर्फ को पिघला रही है.
  • नियमित बर्फ पिघलना प्राकृतिक स्थिति. लेकिन तेजी से बर्फ पिघलना चिंता का विषय.
  • ग्लेशियर से पिघलकर मीठा पानी नीचे नदियों में प्रवाहित होता है.
  • दक्षिण-पूर्व एशिया के 70 करोड़ लोग मीठे पानी की जरूरतों के लिए बर्फ पर निर्भर करते हैं.
  • पांच अरब टन रेगिस्तानी धूल हर साल धरती के वातावरण में उड़कर अदृश्य हो जाती है.

बर्फ में कब तक रह सकते हैं धूल के कण?

  • धूल के कण ब्लैक कार्बन की तुलना में लंबे समय तक बर्फ में रह सकते हैं.
  • धूल के कण आमतौर पर थोड़े बड़े होते हैं, आसानी से बर्फ से नहीं उड़ पाते हैं.

डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक, जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो उसका असर उस से निकलने वाली नदियों पर भी पड़ता है. फिलहाल, वैज्ञानिक इस बात पर रिसर्च कर रहे हैं कि क्या वास्तव में ग्लेशियर पर जमा हो रही धूल से पिघल रहे बर्फ का असर नदियों के जलस्तर पर पड़ रहा है या नहीं? इससे पहले भी रिसर्च में यह दावा किया गया है कि गंगासागर में ग्लेशियर की भागीदारी मात्र 10 से 20 फीसदी ही है.

Last Updated : Nov 1, 2020, 7:37 PM IST
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