देहरादून: भारत में पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए हिमालय की अहम भूमिका है. अगर हिमालय ही नहीं रहेगा तो जीनव भी नहीं बचेगा. क्योंकि हिमालय न सिर्फ प्राण वायु देता है, बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने के साथ जैव विविधता को बरकरार रखने में भी अहम भूमिका निभाता है. लिहाजा हिमालय के संरक्षण को लेकर कदम उठाने के लिए हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है.
कैसे बना हमारा हिमालय?: हमारी धरती के नीचे कई तहों में प्लेट्स होती हैं, जो गतिशील रहती हैं. कई बार यह प्लेट बीच में उठकर आपस में टकरा जाती हैं, जिसके असर और बदलाव धरती के ऊपर भी नजर आते हैं. हिमालय का निर्माण भी पृथ्वी के नीचे ऐसी ही दो प्लेटों (इंडियन और यूरेशियन प्लेट) के आपस में टकराने और एक-दूसरे में धंसने से हुआ है. जब ये प्लेट आपस में टकराती हैं तो फॉल्ट लाइन बनती हैं. यही कारण है कि धीरे-धीरे हिमालय और ऊंचाई पर पहुंच गया.
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फॉल्ट लाइन तीन तरह की होती है: स्ट्राइक थ्रस्ट (प्लेटों का हॉरिजॉन्टली मूव करना), नार्मल फॉल्ट, जिसमें प्लेट एक-दूसरे से दूर जाती हैं और बीच में घाटी बन जाती है और तीसरी होती ही हिमालय को बनाने वाली रिवर्स फॉल्ट लाइन.
हिमालय के बदलते स्वरूप से होती है हलचल: वाडिया भूविज्ञान संस्थान के निदेशक कालाचंद साईं की मानें तो हिमलाय में कई तरह की हलचल दिखाई देती है. जैसे हिमालय पर्वत पर समय-समय पर लैंडस्लाइड का होना, हिमालय क्षेत्रों में आपदा का आना, हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली नदियों के जल स्तर का घटना और बढ़ना.
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इसके अलावा उच्च हिमालय क्षेत्र के पर्वतों पर समय-समय पर बर्फबारी का होना और समय-समय पर एक निश्चित अनुपात में बर्फ का पिघलना यानी ग्लेशियरों का बढ़ना और ग्लेशियरों का पिघलना है. इसके अलावा हिमालय क्षेत्र में भूकंप का आना एक नहीं अनेकों बार भूकंप का आना जैसे महत्वपूर्ण पहलू हिमालय के बदलते स्वरूप को बयां करते हैं.
हिमालय का संरक्षण: कालाचंद साईं ने कहा कि हर साल हिमालय दिवस के अवसर पर लोग शपथ लेते हैं कि वे हिमालय का संरक्षण करेंगे, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि हिमालय का संरक्षण कैसे किया जाए? जब हिमालय के संरक्षण की बात करते हैं तो सबसे पहले समझने की जरूरत है कि हिमालय से जियो, बायो, एग्रीकल्चर, मेडिकल और एटमॉस्फेरिक साइंस आदि जुड़ी हुई है. ऐसे में इन सभी साइंस को एक साथ जोड़कर ही हिमालय का संरक्षण किया जा सकता है.
विनाश का कारण न बने विकास: आजकल हर जगह सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है. मॉडर्न सिटी डेवलप की जा रही है, हिमालय में भी विकास की गंगा बहाई जा रही है. लेकिन हिमालय के विकास कार्य बहुत सोच समझकर करने चाहिए. इसके लिए बड़ी प्लानिंग की जरूरत है. यदि बिना प्लानिंग के हिमालय में विकास कार्य किए गए तो ये भविष्य के लिए विनाश का कारण भी बन सकते हैं. विकास के साथ हमें हिमालय के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान देना होगा. हिमालय को किसी भी तरह की क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए.
प्राकृतिक घटनाओं को रोकना असंभव: हिमालय में प्राकृतिक घटनाओं को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. निदेशक कालाचंद साईं ने मुताबिक नुकसान को कम करने के लिए ये समझने की जरूरत है कि किस क्षेत्र में किस तरह की घटनाएं होती हैं. वहीं पर उसी के हिसाब से विकास किया जाना चाहिए.
निदेशक कालाचंद साईं ने उदाहरण देते हुए बताया कि स्नो एवलांच, भूकंप और लैंडस्लाइड वाले क्षेत्रों को चिह्नित करना बहुत जरूरी है. हलांकि स्नो एवलांच अत्यधिक ऊंचाई पर होता है और ऐसी ही जगहों के आसपास लोग न के बराबर ही रहते हैं. तो इसीलिए स्नो एवलांच से कम ही खतरा है.
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साथ ही उन्होंने बताया कि इन प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए कुछ ऐसे सिस्टम को बनाने की जरूरत है ताकि जब तक एवलांच नीचे आए, उससे पहले लोगों की जिंदगियों को बचाया जा सके. हालांकि ये जो प्राकृतिक घटनाएं हो रही हैं इनको रोक पाना संभव नहीं है. क्योंकि यह जो घटनाएं हो रही हैं यह न सिर्फ क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रही हैं बल्कि यह एक नेचुरल प्रोसेस भी है.
हिमालय का संरक्षण अपना कर्तव्य समझकर करें: हिमालय हमारे लिए कितना उपयोगी है ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है. इसीलिए उसका संरक्षण करना भी बहुत जरूरी है. आम लोगों को भी हिमालय का संरक्षण अपना कर्तव्य समझकर करना चाहिए. इसीलिए जरूरी है कि हर व्यक्ति को हिमालय के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए.
पूरे साल हिमालय दिवस मनाया जाए: निदेशक कालाचंद साईं कहते हैं कि साल भर में एक दिन हिमालय दिवस मनाने से पहाड़ों का संरक्षण नहीं होगा. बल्कि लोगों को रोज हिमालय दिवस मनाना चाहिए. यानी हिमालय के लिए आपको रोज सोचना होगा. इसके संरक्षण के लिए हर दिन कोई न कोई बड़ा कदम उठाना होगा. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली जड़ी-बूटी न सिर्फ आपको स्वस्थ रखती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बड़ी मददगार साबित होती है. इसीलिए वैज्ञानिक हिमालय को मां का दर्जा देते हैं.
रिसोर्सेज की खान है हिमालय: निदेशक साईं बताते हैं कि हिमालय में बहुत सारे रिसोर्सेज मौजूद हैं, जिनका अगर सही ढंग से उपयोग किया जाए तो उससे विकास को न सिर्फ गति मिलेगी, बल्कि लोगों को भी इससे काफी फायदा होगा. इसके साथ ही हिमालय को भी संरक्षित किया जा सकेगा.
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पानी को संरक्षित करने की है जरूरत: मैदान की प्यास हिमालय से आने वाला पानी ही बुझाता है. इसके अलावा हिमालय से निकलने वाली नदियों का पानी सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता है. इन्हीं नदियों पर कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बने हुए हैं. लिहाजा हिमालय के रिसोर्सेज में शामिल पानी को भी संरक्षित करने की जरूरत है. तभी हिमालय को भी संरक्षित किया जा सकता है. इसे संरक्षित करने के लिए ग्लेशियर नेचुरल स्प्रिंग्स आदि पर ध्यान देने की जरूरत है.
क्लाइमेट चेंज का असर ग्लेशियर पर पड़ रहा है: मौजूदा समय में जिस तरह से क्लाइमेट चेंज हो रहा है, उसका सीधा असर ग्लेशियर पर पड़ रहा है. उत्तराखंड और हिमाचल दोनों ही जगह के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. ग्लेश्यिरों का आकार दिन-प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है. ऐसे में जब हिमालय के संरक्षण की बात करते हैं तो मुख्य रूप से इन बिंदुओं पर भी फोकस करने की जरूरत है. क्लाइमेट चेंज होने की मुख्य वजह मानव जाति ही है. क्योंकि अपनी सुविधाओं और विकास के लिए यह भूल जाते हैं कि जितना कार्बन डाइऑक्साइड प्रोड्यूस कर रहे हैं. उसका सीधा असर क्लाइमेट पर पड़ रहा है.
हिमालय में जियो थर्मल एनर्जी की भरमार: जियो थर्मल एनर्जी यानी ग्रीन एनर्जी. उत्तराखंड और हिमाचल दोनों ही मुख्य रूप से पहाड़ी राज्य हैं और इन दोनों ही पहाड़ी राज्यों में जियोथर्मल एनर्जी की भरमार है. जिसका उपयोग आसानी से किया जा सकता है. इस एनर्जी का इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों में होटलों औद्योगिक इकाइयों आदि में किया जा सकता है. यही नहीं पहाड़ी क्षेत्रों में जड़ी-बूटियों की भी भरमार है, जिसे मेडिसिन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. लिहाजा यह ग्रामीणों को बताने की जरूरत है कि किस तरह से इन जड़ी-बूटियों का सही ढंग से सदुपयोग किया जा सकता है और अपने लिए रोजगार की पैदा किया जा सकता है.