देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग अक्सर ऐसे कई मामलों को लेकर चर्चाओं में रहता है, जिनके कारण पूरा महकमा सवालों के घेरे में खड़ा हो जाता है. इस बार चर्चा हाईकोर्ट के उस आदेश की हो रही है, जिसमें प्रमुख सचिव वन के खिलाफ ही हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है. इतना ही नहीं विभाग के कुछ संबंधित प्रभागीय वन अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हुए हैं. हाईकोर्ट ने अधिसूचित क्षेत्र में लड़कियों के अवैध संग्रहण के मामले को लेकर यह निर्देश दिए हैं. जिससे न केवल पूरे वन विभाग में हड़कंप मचा हुआ है बल्कि सरकार भी निर्देशों को लेकर असमंजस में फंस गई है.
वन विभाग का विवादों से पुराना नाता रहा है. ऐसे में महकमें में किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पर रहना कांटों के ताज पहनने जैसा है. स्थिति यह है कि समय-समय पर विभाग कभी विभिन्न जांचों के कारण चर्चाओं में रहता है तो कभी हाईकोर्ट में जनहित याचिका उत्त्तराखंड वन विभग को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में ला देती है. ताजा मामला हाईकोर्ट से ही जुड़ा हुआ है. दरअसल, नैनीताल हाईकोर्ट ने कालाढूंगी से बाजपुर मार्ग क्षेत्र में लकड़ियों के अवैध संग्रहण पर तल्ख टिप्पणी की है. इस दौरान प्रमुख सचिव से लेकर प्रभागीय वनाधिकारी तक पर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं. हाईकोर्ट ने इस मामले को सुमोटो लेते हुए सुनवाई की. जिसमें विभाग के जवाब को भी असंतोषजनक मानते हुए कड़ी टिप्पणी की गई.
हाईकोर्ट ने इस आदेश के दौरान 2 महीने के भीतर अनुसूचित वन क्षेत्र से लड़कियों के संग्रहण को लेकर नियमावली बनाने के भी निर्देश दिए. ऐसा ना होने तक नैनीताल हाई कोर्ट की डबल बेंच ने सूखे पेड़ और माइनर प्रोडक्ट के उठान या चुगान पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. इस मामले को लेकर उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा अभी फिलहाल हाईकोर्ट के इस आदेश की जानकारी मिली है. सरकार की तरफ से इसका परीक्षण करवाया जा रहा है. परीक्षण कराए जाने के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा.
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उत्तराखंड में वन विभाग पेड़ों के अवैध कटान से लेकर मानव वन्य जीव संघर्ष के मामलों तक में हाईकोर्ट की दौड़ लगाता रहा है. विभाग की यह कोशिश रही है कि हाईकोर्ट में आने वाली जनहित याचिका पर बेहतर जवाब देकर हाईकोर्ट में अपना मजबूत पक्ष रखा जाए, लेकिन इसके बावजूद कई बार हाई कोर्ट के निर्देश वन विभाग के अधिकारियों के लिए बड़ी परेशानी बन जाते हैं.