देहरादूनः देश का चर्चित अंकिता भंडारी मर्डर केस में तीनों आरोपियों का नार्को टेस्ट कराने की अनुमति मांगने के लिए एसआईटी ने कोटद्वार कोर्ट में अर्जी दाखिल की हुई है. इस पर कल (12 दिसंबर 2022) सुनवाई होनी है. सुनवाई के बाद कोर्ट के फैसले से तीनों आरोपियों के नार्को टेस्ट पर फैसला लिया जाएगा. वहीं, नार्को टेस्ट से वीआईपी से भी राज खुलेगा. यह जानकारी केस की छानबीन कर रही डीआईजी पी रेणुका देवी ने दी है.
अंकिता भंडारी हत्याकांडः 19 साल की अंकिता भंडारी पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में स्थिति वनंत्रा रिसॉर्ट (Yamkeshwar Vanantra Resort) में रिसेप्शनिस्ट थी. आरोप है कि वनंत्रा रिसॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य ने अंकिता भंडारी पर गलत काम करने का दबाव बनाया था. जिसके लिए अंकिता भंडारी ने मना कर दिया था. साथ ही नौकरी छोड़ने का मन बना लिया था.
पुलकित आर्य को डर था कि नौकरी छोड़ने के बाद अंकिता उसके राज का पर्दाफाश कर देगी. आरोप है कि इसी डर से पुलकित ने अपने दो मैनेजरों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता के साथ मिलकर 18 सितंबर को अंकिता भंडारी चीला नहर में धक्का देकर मार दिया था. अंकिता का शव पुलिस ने 24 सितंबर को बरामद किया था. अभी तीनों आरोपी जेल में बंद हैं.
नार्को टेस्ट में आरोपी से पूछताछ: नार्को टेस्ट को लेकर मनोचिकित्सक डॉक्टर मुकुल शर्मा का कहना है कि दवा और सोडियम पैंथनॉल इंजेक्शन देने के आधे घंटे के बाद सिर्फ 20 मिनट में इस परीक्षण को करना होता है. शुरुआती समय में नार्को टेस्ट से जुड़े लोगों को सामान्य बातचीत के जरिए उस कड़ी के सवालों से जोड़ा जाता है, जिसको पुलिस की तलाश होती हैं. नार्को टेस्ट में मरीज को निंद्रा स्थिति की में ले जाया जाता है. जिसके बाद उससे इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं, जिसमें वह अर्द्धचेतना (सबकॉन्शियस माइंड) से जवाब देता है, यानी उसका चेतन मन (कॉन्शियस) काम नहीं करता.
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नार्को टेस्ट से पहले आरोपी का मेडिकल: यही कारण से वह सवालों के जवाब बिना किसी तरह छिपाए दे सकता हैं. मरीज को ज्यादा देर तक इस अवस्था में नहीं रखा जा सकता. क्योंकि इससे उसकी जान को भी खतरा हो सकता है. किसी भी नार्को टेस्ट से पहले मरीज का सामान्य मेडिकल टेस्ट किया जाता है. ताकि उसे किसी तरह की अन्य बीमारी ना हो.
क्या होता है नार्को टेस्ट: नार्को-एनालाइसिस टेस्ट (Narco Analysis Test) को ही नार्को टेस्ट कहा जाता है. आपराधिक मामलों की जांच-पड़ताल में इस परीक्षण की मदद ली जाती है. नार्को टेस्ट एक डिसेप्शन डिटेक्शन टेस्ट (Deception Detection Test) है, जिस कैटेगरी में पॉलीग्राफ और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट भी आते हैं. अपराध से जुड़ी सच्चाई और सबूतों को ढूंढने में नार्को परीक्षण काफी मदद कर सकता है.
वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी के मुताबिक नार्को टेस्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सबसे पहले 2002 में गुजरात गोधरा कांड के आरोपियों का किया गया था. उसके बाद कई मामलों में और दिल्ली निर्भया कांड में भी आरोपियों का नार्को टेस्ट किया गया था. चंद्रशेखर ने कहा यह जरूरी नहीं कि नार्को टेस्ट रिपोर्ट को अदालत मान ले, इसमें कोई बाध्यता नहीं है.