देहरादून: अंदरूनी कलह के कारण उत्तराखंड में कांग्रेस 2017 से बाद से लगातार चुनाव हार रही है, बावजूद इसके कांग्रेस ने नेताओं की आपसी रार खत्म नहीं हो रही हैं. एक बार फिर कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं प्रीतम सिंह और हरीश रावत के बीच जुबानी जंग देखने को मिली है. दोनों एक दूसरे पर बिना नाम लिए कटाक्ष कर रहे हैं.
उत्तराखंड में कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह और हरीश रावत एक दूसरे को लपेटने का कोई मौक नहीं छोड़ते है. इन दोनों नेताओं की आपसी रार का खामियाजा अक्सर चुनावों में कांग्रेस को भुगतना पड़ता है, लेकिन फिर ये दोनों नेता हैं कि मानने को तैयार ही नहीं. बीते दिन प्रीतम सिंह बिना नाम लिए इशारों ही इशारों में 2016 के दलबदल के लिए हरीश रावत को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि 2017 में उसी वजह से 2017 में कांग्रेस हारी थी. हरीश रावत ने चिरपरिचित अंदाज में बिना नाम लिए प्रीतम सिंह पर निशाना साधा.
इशारों ही इशारों में लपेटा: हरीश रावत ने कहा कि एक व्यक्ति विशेष द्वारा संकेतन यह बताया गया है कि 2016 में कांग्रेस पार्टी से भाजपा में दलबदल व उसके बाद का घटनाक्रम मुझसे नाराजगी का परिणाम है. उत्तराखंड से पहले कई राज्यों में जैसे असम, अरुणाचल आदि में भी ऐसा ही दलबदल करवाया गया. उत्तराखंड के बाद मणिपुर, गोवा, कर्नाटका, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी दल-बदल करवाकर सरकारें बनाई गई और कुछ स्थानों पर गिरा कर बनाई गई.
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कांग्रेस का अधिकारिक स्टैंड यह रहा है कि यह भारतीय जनता पार्टी व केंद्र सरकार की कुनीति का परिणाम है. अंधाधुंध धन, सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी हर तरीके के छल का उपयोग कर सरकारें गिरायी व बनाई गई हैं. कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र एवं संविधान की हत्या माना है.
हरीश रावत से व्यक्तिगत का गुस्सा: हरीश रावत ने कहा कि हमारे कुछ साथी व्यक्तिगत गुस्से में इसे मुझसे नाराजगी का परिणाम बताकर भाजपा को लोकतंत्र की हत्या के दोष से मुक्त कर रहे हैं. यह जताने की कोशिश हो रही है कि यह दलबदल, धन और सेंट्रल एजेंसी के उपयोग से नहीं हुआ है. बल्कि एक व्यक्ति से नाराज कुछ लोग भाजपा में पवित्र तीर्थाटन के लिए चले गए. यदि हमारे कुछ साथी इन तीर्थ यात्रियों को वापस लाना चाहते हैं तो खुशी-2 ले आएं.
भाजपा में तीर्थाटन: हरीश रावत की राजनीति से हटने की शर्त पर भी लाना चाहते हैं तो भी ले आएं, मगर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ले आएं. दस साल भाजपा में तीर्थाटन का आनंद उठाने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मूल्य पर इन्हें कांग्रेस में लाने का सपना उचित नहीं है.
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भाजपा को खानी पड़ी थी मुंह की: हरीश रावत ने कहा कि वर्ष 2016 में उत्तराखंड के लोकतांत्रिक इतिहास में एक गौरवमय पृष्ठ जुड़ा. कांग्रेस के मंत्री, विधायक व कार्यकर्ता साथियों के अद्धभुत साहस के सामने सर्वविजयी भाजपा नेतृत्व को मुंह की खानी पड़ी. राष्ट्रपति शासन वापस लिया जाना एक बर्खास्त मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों का बिना शपथ लिए पुन सत्ता पर काबिज होना एवं दल-बदलुओं को विधानसभा की सदस्यता से शेष अवधि के लिए अयोग्य ठहराया जाना, उत्तराखंड कांग्रेस एवं उत्तराखंड की जनता की अभूतपूर्व विजय थी.
कांग्रेस नेता भाजपा को दोष मुक्त कर रहे?: एक व्यक्ति से द्वेष के कारण इस गौरवमय पृष्ठ पर स्याही डालना कहां तक उचित है, इस पर विचार किया जाना चाहिए. इस तरीके के समाचार जिससे यह आभास होता हो कि दल-बदल, भाजपा के कुकर्मो का परिणाम होने के बजाय कांग्रेस के आंतरिक द्वंद्व का परिणाम है. यह भाजपा को जगह-जगह लोकतंत्र की हत्या के दोष से बचने का एक तार्किक आधार प्रदान करेगा.
उत्तराखंड में सबको मालूम है कि विजयवर्गीय से लेकर भाजपा के ढेरों केंद्रीय नेता सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स सहित देहरादून में डेरा डाले हुए थे और सक्रिय थे. यह तथ्य बताने के लिए पर्याप्त है कि उत्तराखंड में हुए दल बदल के प्रेरक और अपराधी कौन है. जिस व्यक्ति ने एक निष्ठ भाव से केवल कांग्रेस को देखा हो और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रति समर्पित रहा हो, उस व्यक्ति को यह बताने की जरूरत थोड़ी है कि चुनाव में पार्टी नेतृत्व व पार्टी के नाम का क्या महत्व है? संघर्ष के मोर्चे पर लड़ने वाले योद्धा का भी महत्व है.
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हरीश रावत ने कहा कि मैं कांग्रेस के विभिन्न संघर्षों के मोर्चों पर लड़ने वाला सिपाही रहा हूं और आज भी डठा हुआ हूं. जब 2017 की हार के बाद भी मैं उत्तराखंडियत के विभिन्न आयामों का उपयोग कर कार्यकर्ताओं को निराशा से बहार निकालने का प्रयास कर रहा था और आज भी घर बैठने की बजाय कार्यकर्ताओं के साथ संघर्ष में खड़ा हूं.
2024 की तैयारी में जुट हरदा: हरीश रावत ने कहा कि वे 2024 और 2027 के लोकतांत्रिक युद्ध के लिए विभिन्न अस्त्र और उपायों को खोज रहे हैं और लोकतांत्रिक लड़ाई के मोर्चे को मजबूत कर रहे हैं. यदि मानव इतिहास में कोई व्यक्ति है, जिससे गलतियां नहीं होती हैं? हरीश रावत से भी गलतियां हुईं होंगी. मगर जिस तरीके की सार्वजनिक उलाहना मुझे झेलनी पड़ती है और अपने ही लोगों से झेलनी पड़ती है.
कभी-कभी घर के एकांत में मैं सोचता हूं कि हरीश रावत इन्हीं लोगों के लिए तुम अपने प्राण खतरे में डालकर आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जहां लोग हेलीकॉप्टर से जाते हैं, वहां तुम पैदल जाते हो. लाठी टेकते हुए घास और झाड़ियां पकड़ कर लोगों तक पहुंचते हो, इस उम्र में भी चार-चार किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर लोगों के दुःख में कांग्रेस की उपस्तिथि दर्ज करते हो, जहां चढ़ने में जवान परहेज कर रहे हैं, वहां तुम पहुंच रहे हो. क्या इसी बर्ताव, व्यवहार व सम्मान के लिए कार्यकर्ता साथियों आप पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और आपका संरक्षक पार्टी का नेतृत्व है. कभी मेरी व्यथा पर भी विचार कर लिया करो.
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यहां बता दें कि साल 2016 में कांग्रेस में 9 विधायक जिसमें मंत्री भी शामिल थे, वो हरीश रावत की सरकार छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. इस दौरान प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लग गया था, जिसके खिलाफ हरीश रावत कोर्ट गए थे और राष्ट्रपति शासन हटाने के साथ ही अपनी सरकार बचाने में भी कामयाब हो गए थे.