देहरादून: राजस्थान की सियासत इस वक्त पूरे देश में छाई हुई है. पूरे देश में इस सियासी संकट की चर्चा जोरो पर है. इसके साथ ही राज्यपाल के कामकाज से जुड़े तमाम पहलुओं पर भी विपक्षी लगातार हमलावर नजर आ रहे हैं, जी नहीं ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि हाल ही में कई राज्यों के राज्यपाल का सरकार से तालमेल इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है. ठीक इसी तरह के संकट से हमारे पूर्व सीएम हरीश रावत भी घीर चुके हैं. आइये जानें इस दौरान हरीश रावत ने कौन-कौन से सियासी दांव पेच खेले थे.
राजस्थान के सीएम सूझबूझ वाले
राजस्थान के मौजूदा सियासी घटनाक्रम के बवाल पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने शासनकाल में अल्पमत में आयी कांग्रेस सरकार के अनुभव को साझा करते हुए बताया कि राजस्थान के कांग्रेस के मुख्यमंत्री बहुत अनुभवी और सूझबूझ वाले व्यक्तित्व हैं, लिहाजा कहीं भी किसी भी गलती की कोई भी गुंजाइश नहीं है, और हम सामान्य तरीके से ही प्ले कर रहे हैं. हरीश रावत का साफ तौर पर मानना है कि राजस्थान में कांग्रेस का विधानमंडल दल है और वो विधानसभा का सत्र बुलाना चाहते हैं, ताकि असमंजस की स्थिति खत्म की जा सके और उनकी सरकार कोरोना कि वैश्विक महामारी की लड़ाई से लड़ सके.
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हरीश ने बीजेपी पर उठाए सवाल
हरीश रावत का कहना है कि राजस्थान की उनकी पार्टी की सरकार कोरोना से लड़ने के लिए एक मॉडल तैयार कर चुकी है. लिहाजा माहौल अब दूसरा हो गया है ऐसे में हरीश रावत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री की तारीफ करते हुए चुनावी प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए हैं. हरीश रावत का मानना है कि जब ऐसे हालात हो जाते हैं तो फिर चुनाव का आखिर मतलब क्या रह जाता है, चुनाव की अहमियत पर सवाल खड़ा करते हुए हरीश रावत ने कहा कि जिन विधायकों को चुन करके कांग्रेस से आना है और वह विधायक फिर बीजेपी में शामिल होंगे तो फिर चुनाव का मतलब ही क्या रह गया है. हरीश ने कहा कि किसी एक पार्टी से चुनकर विधायकों का आना और दल बदल के तहत दूसरे पार्टी में शामिल हो जाना एक सही नहीं है.
बीजेपी कर रही लोकतंत्र का हनन
हरीश रावत ने पूर्व में कई राज्यों में हुए सियासी घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि लोकतंत्र के संविधान का अवमूल्यन किया जा रहा है. लिहाजा इससे देश की जनता का विश्वास कम हो रहा है. यह तो एक तरह से लोकतंत्र चीर हरण किया जा रहा है, यही नहीं, इससे देश के अंदर स्थितियां और भी बिगड़ेगी.
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विधानसभा सत्र क्यों नहीं हो रहा आहूत
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राजस्थान का जिक्र करते हुए कहा कि जब तमाम विधायक, विधानसभा सत्र आहूत करने की मांग कर रहे हैं तो ऐसे में सत्र आहूत क्यों नहीं किया जा रहा है. हरीश रावत का साफ तौर पर मानना है कि विधायकों की मांग के अनुरूप विधानसभा का सत्र आहूत किया जाना चाहिए, सत्र आहूत के बाद विधानसभा की व्यवस्थाओं के लिए सर्वोच्च अधिकारी स्पीकर होते हैं. लिहाजा गवर्नर की अलग शक्तियां हैं. स्पीकर के कार्यो का कार्यों का न्यायिक विवेचन हो सकता है, गवर्नर विवेचन नहीं हो सकता. हरीश रावत ने बताया कि गवर्नर सत्र को विलंबित करना चाहते हैं लिहाजा जब गवर्नर का पद डिफेक्शन करने के उपयोग में लाया जाएगा, तो लोकतंत्र का यह दिन सबसे कष्टप्रद होगा.
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केंद्र सरकार पर आरोप
हरीश रावत ने कहा कि केंद्र सरकार हर संभव प्रयास कर रही है, सरकार को भंग करने का. हालांकि, उत्तराखंड और राजस्थान में फर्क सिर्फ इतना है कि राजस्थान में वह समर्थन नहीं जुटा पा रहे हैं. लिहाजा ऐसे में उनका मानना है कि राजस्थान के कांग्रेस सीनियर लीडर को बहुत ही ठंडे दिमाग से काम लेना है और आपको विपक्ष के मूड को सबसे पहले परखना होगा. हरीश रावत ने उत्तराखंड का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार के और प्रदेश के नेताओं का मुंह देखने के बाद हमने गवर्नर को भी इतना समय नहीं दिया है, ताकि वह कुछ भी कर सके, लिहाजा हमने दोनों मोर्चों पर तत्परता दिखाई है.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड की पूर्व की हरीश रावत सरकार को अस्थिर करने और अल्पमत में लाने के पीछे की कहानी के दर्द को बयां करते हुए हरीश रावत ने कहा कि ये तमाम हथकंडे अपनाने के लिए हमारा स्टिंग कराया गया था. जब हरीश रावत की उत्तराखंड में सरकार थी तो उस दौरान जिस एयरपोर्ट पर हरीश रावत का स्टिंग किया गया था, उसकी हकीकत को आज हरीश रावत ने बयां किया. हरीश रावत ने बताया कि मध्य प्रदेश और कर्नाटक के दो मॉडल में से किसी एक मॉडल को वह अपनाना चाहते हैं. ताकि या तो दलबदल कर सरकार को अल्पमत में लाया जाए या फिर सरकार को किसी भी तरह से भंग किया जाए. हरीश रावत का कहना है कि यह परंपरा सियासी भविष्य के लिए उचित नहीं है.