ETV Bharat / state

हरीश रावत सक्रिय राजनीति से बना रहे दूरी? इस पोस्ट के क्या मायने

2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को एक नहीं बल्कि दो-दो सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था. वहीं जिंदादिल हरदा लोगों के बीच ऐसे मिले मानों उन्हें अपनी करारी शिकस्त का एहसास ही न हो. ये ही उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से अलग बनाती है.

Dehradun news
पूर्व सीएम हरीश रावत.
author img

By

Published : Dec 30, 2019, 1:15 PM IST

देहरादून: पूर्व सीएम हरीश रावत कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं. उन्होंने न जाने राजनीति में कितने उतार और चढ़ाव देखे हैं. लेकिन वर्तमान में वे पूर्व के चुनाव में कारारी हार से उबर नहीं पा रहे हैं. अकसर, सोशल मीडिया में उनकी ये कचोट साफ देखी जा सकती है. वहीं उनका ताजा पोस्ट को उनकी सक्रिय राजनीति से दूरियों से जोड़कर देखा जा रहा है. राजनीतिक पंडित इसके कई मायने निकाल रहे हैं.

2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को एक नहीं बल्कि दो-दो सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन जिंदादिल हरदा लोगों के बीच ऐसे मिले मानों उन्हें अपनी करारी शिकस्त का एहसास ही न हो. ये ही उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से अलग खड़ा करता है. वहीं, 2019 लोकसभा सीट में कांग्रेस ने उन्हें नैनीताल सीट से मैदान में उतारा लेकिन वो अपने प्रतिद्वंदी अजय भट्ट से हार गए. हरीश रावत के बारे में प्रदेश की सियासत में कहावत हैं कि जब भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा दूसरी बार वे उतनी ही मजबूती से उभरकर आए. जिसका लोहा वे प्रदेश और देश की सियासत में दिखा चुके हैं.

हालांकि, अब 70 साल पूरे कर चुके हरीश रावत की सक्रिय राजनीति पर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि इस उम्र में आगे बढ़कर सक्रिय राजनीति करना सामान्य निर्णय नहीं है. इन दिनों हरीश रावत की एक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. पोस्ट में एक जगह उन्होंने पार्टी में युवाओं को लगातार अवसर देने का जिक्र किया है. साथ ही एक अन्य जगह लोकसभा चुनावों में अपने स्थान पर अपने पुत्र का नाम प्रस्तावित करने की बात भी लिखी है.

पढ़ें- हरदा ने प्रदेश की राजनीति को अलविदा कर असम में डाला डेरा , कांग्रेसियों में नहीं खत्म हो रही गुटबाजी

इस पोस्ट को उनकी राजनीति से दूरी से देखा जा रहा है. साथ ही उन्हें पूर्व में मिली करारी शिकस्त काफी कचोटती हैं. जिसका उन्होंने पोस्ट में भी जिक्र किया है. भले ही राजनीति पंडित इस पोस्ट के मायनों को हरीश रावत के सक्रिय राजनीति से दूरियां से जोड़कर देख रहे हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी राजनीतिक कुशलता ने ही उन्हें आलाकमान के विश्वसत्र की फेहरिश्त में सबसे ऊपर रखा. जिसका उन्हें समय-समय पर ईनाम भी मिलता रहा है.

दावत पार्टी से संदेश

पूर्व सीएम हरीश रावत पर्वतीय व्यंजनों की दावतों से अपनी सियासी जमीन पुख्ता करने के साथ ही कांग्रेस के दूसरे गुट को सियासी संदेश देते दिखाई देते हैं. वहीं वे इन दावतों से खासे चर्चा में रहते हैं. वह कभी आम की दावत, कभी काफल और कभी पहाड़ी व्यंजनों की दावत आयोजित कर अपने समर्थकों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं.

देहरादून: पूर्व सीएम हरीश रावत कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं. उन्होंने न जाने राजनीति में कितने उतार और चढ़ाव देखे हैं. लेकिन वर्तमान में वे पूर्व के चुनाव में कारारी हार से उबर नहीं पा रहे हैं. अकसर, सोशल मीडिया में उनकी ये कचोट साफ देखी जा सकती है. वहीं उनका ताजा पोस्ट को उनकी सक्रिय राजनीति से दूरियों से जोड़कर देखा जा रहा है. राजनीतिक पंडित इसके कई मायने निकाल रहे हैं.

2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को एक नहीं बल्कि दो-दो सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन जिंदादिल हरदा लोगों के बीच ऐसे मिले मानों उन्हें अपनी करारी शिकस्त का एहसास ही न हो. ये ही उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से अलग खड़ा करता है. वहीं, 2019 लोकसभा सीट में कांग्रेस ने उन्हें नैनीताल सीट से मैदान में उतारा लेकिन वो अपने प्रतिद्वंदी अजय भट्ट से हार गए. हरीश रावत के बारे में प्रदेश की सियासत में कहावत हैं कि जब भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा दूसरी बार वे उतनी ही मजबूती से उभरकर आए. जिसका लोहा वे प्रदेश और देश की सियासत में दिखा चुके हैं.

हालांकि, अब 70 साल पूरे कर चुके हरीश रावत की सक्रिय राजनीति पर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि इस उम्र में आगे बढ़कर सक्रिय राजनीति करना सामान्य निर्णय नहीं है. इन दिनों हरीश रावत की एक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. पोस्ट में एक जगह उन्होंने पार्टी में युवाओं को लगातार अवसर देने का जिक्र किया है. साथ ही एक अन्य जगह लोकसभा चुनावों में अपने स्थान पर अपने पुत्र का नाम प्रस्तावित करने की बात भी लिखी है.

पढ़ें- हरदा ने प्रदेश की राजनीति को अलविदा कर असम में डाला डेरा , कांग्रेसियों में नहीं खत्म हो रही गुटबाजी

इस पोस्ट को उनकी राजनीति से दूरी से देखा जा रहा है. साथ ही उन्हें पूर्व में मिली करारी शिकस्त काफी कचोटती हैं. जिसका उन्होंने पोस्ट में भी जिक्र किया है. भले ही राजनीति पंडित इस पोस्ट के मायनों को हरीश रावत के सक्रिय राजनीति से दूरियां से जोड़कर देख रहे हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी राजनीतिक कुशलता ने ही उन्हें आलाकमान के विश्वसत्र की फेहरिश्त में सबसे ऊपर रखा. जिसका उन्हें समय-समय पर ईनाम भी मिलता रहा है.

दावत पार्टी से संदेश

पूर्व सीएम हरीश रावत पर्वतीय व्यंजनों की दावतों से अपनी सियासी जमीन पुख्ता करने के साथ ही कांग्रेस के दूसरे गुट को सियासी संदेश देते दिखाई देते हैं. वहीं वे इन दावतों से खासे चर्चा में रहते हैं. वह कभी आम की दावत, कभी काफल और कभी पहाड़ी व्यंजनों की दावत आयोजित कर अपने समर्थकों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं.

Intro:Body:

हरीश रावत क्या सक्रिय राजनीति से बना रहे दूरी, राजनीति पंडित निकाल रहे कई मायने

देहरादून: पूर्व सीएम हरीश रावत कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं. उन्होंने न जाने राजनीति में कितने उतार और चढ़ाव देखे हैं. लेकिन वर्तमान में वे पूर्व के चुनाव में कारारी हार से उबर नहीं पा रहे हैं. अकसर, सोशल मीडिया में उनकी ये कचोट साफ देखी जा सकती है.

2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को एक नहीं बल्कि दो-दो सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था. वहीं जिंदादिल हरदा लोगों के बीच ऐसे मिले मानों उन्हें अपनी करारी शिकस्त का अहसास ही न हो. ये ही उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से अलग बनाती है. जिसके बाद 2019 लोकसभा सीट में कांग्रेस ने उन्हें नैनीताल सीट से मैदान में उतारा लेकिन वे अपने प्रतिद्वंदी अजय भट्ट से हार गए. हरीश रावत के बारे में प्रदेश की सियासत में कहावत हैं कि जब भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा दूसरी बार वे उतनी ही मजबूती से उबरकर आए. 

जिसका लोहा वे प्रदेश और देश की सियासत में दिखा चुके हैं. 70 साल पूरे कर चुके हरीश रावत केसक्रिय राजनीति  पर सवाल उठने लगे हैं. क्यों कि इस उम्र में आगे बढ़कर सक्रिय राजनीति करना सामान्य निर्णय नहीं है. इन दिनों हरीश रावत की एक पोस्ट फिर से सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है. जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. पोस्ट में एक जगह उन्होंने पार्टी में युवाओं को लगातार अवसर देने का जिक्र किया है. साथ ही एक अन्य जगह लोकसभा चुनावों में अपने स्थान पर अपने पुत्र का नाम प्रस्तावित करने की बात भी लिखी है.

जिसे उनकी राजनीति से दूरी से देखा जा रहा है. साथ ही उन्हें पूर्व में मिली करारी शिकस्त काफी कचोटती हैं. जिसका उन्होंने पोस्ट में भी जिक्र किया है. भले ही राजनीति पंडित इस पोस्ट के मायनों को हरीश रावत के सक्रिय राजनीति से दूरियां से जोड़कर देख रहे हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी राजनीतिक कुशलता ने ही उन्हें आलाकमान के विश्वसत्र की  फेहरिश्त में सबसे ऊपर रखा. जिसका उन्हें समय-समय पर ईनाम भी मिलता रहा है.


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.