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भोपाल गैस त्रासदी: आखिर पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय?

भोपाल गैस त्रासदी को 35 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन पीड़ितों को अबतक न्याय नहीं मिला और न ही सरकारों ने पीड़ितों के लिए कुछ खास कदम उठाए.

Bhopal
भोपाल गैस त्रासदी.
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Published : Dec 2, 2019, 8:19 AM IST

भोपाल: विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी भोपाल गैस कांड के आज 35 साल पूरे हो गए हैं. इतने साल गुजर जाने के बाद भी लोग जहरीली गैस का दंश झेलने पर मजबूर हैं. सरकारों ने दावे और वादे तो बहुत किए, लेकिन आज भी इस त्रासदी से पीड़ित लोग उचित इलाज और मुआवजा की लड़ाई लड़ रहे हैं.

आखिर पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय?

गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि 14 और 15 फरवरी 1989 को केंद्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था, इस समझौते के तहत मिली रकम गैसकांड के पीड़ितों के लिए ऊंट के मुह में जीरे की तरह है. साथ ही इनका कहना है कि जो रकम मिलनी चाहिए उसके पांचवे हिस्से से भी कम मिल पाई है. जिसका नतीजा ये हुआ कि गैस पीड़ितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, मुआवजा और पर्यावरण क्षतिपूर्ति के साथ- साथ न्याय इन सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है.

पढ़ें-उत्तराखंड: बीजेपी ने की मंडल अध्यक्षों की घोषणा, 15 दिसम्बर तक चुना जाएगा प्रदेश अध्यक्ष

इस मुआवजा राशि को लेकर 3 अक्टूबर 1991 को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि 'यदि यह संख्या बढ़ती है तो भारत सरकार मुआवजा देगी'. इस समझौते में गैस रिसने से 3 हजार लोगों की मौत और 1.2 लाख प्रभावित बताए गए थे. जबकि असलियत में 15 हज़ार 274 मृतक और 5 लाख 74 हज़ार पीड़ित बताए जाते हैं. जो इस बात से साबित होता है कि भोपाल में दावा अदालतों द्वारा वर्ष 1990 से लेकर 2005 तक त्रासदी के इन 15 हज़ार 274 मृतकों के परिजनों और 5 लाख 74 हज़ार प्रभावितों को 715 करोड़ रुपए मुआवजे के तौर पर दिए गए हैं.

संगठनों ने दावा किया है जहरीली गैस से अब तक 20 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए हैं. वहीं लगभग 5 लाख से भी ज्यादा लोग पीड़ित हैं. संगठनों ने कहा कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के नियंत्रण में थी. जो अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है और बाद में डाउ केमिकल कंपनी के अधीन रहा.

गैस त्रासदी की जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं. प्रभावितों के पास पैसा नहीं होने के कारण उन्हें उचित इलाज भी नहीं मिल पा रहा है और इलाज के नाम पर महज दो टेबलेट वितरित कर दी जाती हैं. गैस पीड़ित संगठन और इससे प्रभावित लोगों का आरोप है कि, तीन दशकों में इतनी सरकारें आईं और गईं. लेकिन न तो राज्य सरकारों ने और न ही केंद्र सरकारों ने गैस पीड़ितों के लिए कोई कदम उठाए हैं.

भोपाल: विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी भोपाल गैस कांड के आज 35 साल पूरे हो गए हैं. इतने साल गुजर जाने के बाद भी लोग जहरीली गैस का दंश झेलने पर मजबूर हैं. सरकारों ने दावे और वादे तो बहुत किए, लेकिन आज भी इस त्रासदी से पीड़ित लोग उचित इलाज और मुआवजा की लड़ाई लड़ रहे हैं.

आखिर पीड़ितों को कब मिलेगा न्याय?

गैस पीड़ित संगठनों का कहना है कि 14 और 15 फरवरी 1989 को केंद्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था, इस समझौते के तहत मिली रकम गैसकांड के पीड़ितों के लिए ऊंट के मुह में जीरे की तरह है. साथ ही इनका कहना है कि जो रकम मिलनी चाहिए उसके पांचवे हिस्से से भी कम मिल पाई है. जिसका नतीजा ये हुआ कि गैस पीड़ितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, मुआवजा और पर्यावरण क्षतिपूर्ति के साथ- साथ न्याय इन सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है.

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इस मुआवजा राशि को लेकर 3 अक्टूबर 1991 को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि 'यदि यह संख्या बढ़ती है तो भारत सरकार मुआवजा देगी'. इस समझौते में गैस रिसने से 3 हजार लोगों की मौत और 1.2 लाख प्रभावित बताए गए थे. जबकि असलियत में 15 हज़ार 274 मृतक और 5 लाख 74 हज़ार पीड़ित बताए जाते हैं. जो इस बात से साबित होता है कि भोपाल में दावा अदालतों द्वारा वर्ष 1990 से लेकर 2005 तक त्रासदी के इन 15 हज़ार 274 मृतकों के परिजनों और 5 लाख 74 हज़ार प्रभावितों को 715 करोड़ रुपए मुआवजे के तौर पर दिए गए हैं.

संगठनों ने दावा किया है जहरीली गैस से अब तक 20 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए हैं. वहीं लगभग 5 लाख से भी ज्यादा लोग पीड़ित हैं. संगठनों ने कहा कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के नियंत्रण में थी. जो अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है और बाद में डाउ केमिकल कंपनी के अधीन रहा.

गैस त्रासदी की जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं. प्रभावितों के पास पैसा नहीं होने के कारण उन्हें उचित इलाज भी नहीं मिल पा रहा है और इलाज के नाम पर महज दो टेबलेट वितरित कर दी जाती हैं. गैस पीड़ित संगठन और इससे प्रभावित लोगों का आरोप है कि, तीन दशकों में इतनी सरकारें आईं और गईं. लेकिन न तो राज्य सरकारों ने और न ही केंद्र सरकारों ने गैस पीड़ितों के लिए कोई कदम उठाए हैं.

Intro:नोट- फीड कैमरा लाइव व्यू से गैस मुआवजा स्लग से इंजस्ट की गई है।

भोपाल- विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के 35 साल पूरे होने के बाद भी इसकी जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब भी उचित इलाज पर्याप्त मुआवजा न्याय और पर्यावरणीय क्षति पूर्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं। गैस पीड़ितों के हितों के लिए पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से काम करने वाले भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की मानें तो हादसे के 35 साल बाद भी ना तो मध्य प्रदेश सरकार ने और ना ही केंद्र सरकार ने इसके नतीजों और प्रभावों का कोई समग्र आकलन करने की कोशिश की है ना ही इसके लिए कोई ठोस कदम उठाए गए हैं।


Body:14 और 15 फरवरी 1989 को केंद्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उसके तहत मिली रकम का हर एक गैस प्रभावित को पांचवें हिस्से से भी कम मिल पाया है। जिसका नतीजा यह निकला कि गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं और राहत पुनर्वास मुआवजा और पर्यावरण क्षतिपूर्ति के साथ साथ न्याय इन सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है। साल 2019 में भी गैस प्रभावितों के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहुत कम प्रगति होना गंभीर चिंता का विषय रहा है। गैस पीड़ित संगठनों ने कहा कि फरवरी 1989 में भारत सरकार और यूसीसी में समझौता हुआ था। जिसके तहत ही यूसीसी ने भोपाल गैस पीड़ितों को मुआवजे के तौर पर 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी कि 715 करोड रुपए दिए थे। संगठनों ने उसी वक्त इस समझौते पर यह कहकर सवाल उठाया था कि, इस समझौते के तहत मृतकों और घायलों की संख्या बहुत कम दिखाई गई है। जबकि हकीकत में यह संख्या बहुत ज्यादा है।

बाइट-1 सतीनाथ षडंगी, अध्यक्ष, गैस पीड़ित संगठन।
बाइट-2 पन्नालाल यादव, पीड़ित और प्रत्यक्षदर्शी।

इस मुआवजा राशि को लेकर 3 अक्टूबर 1991 को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि यदि यह संख्या बढ़ती है तो भारत सरकार मुआवजा देगी। इस समझौते में गैस रिसने से 3000 लोगों की मौत और 1.2 लाख प्रभावित बताए गए थे। जबकि असलियत में 15 हज़ार 274 मृतक और 5 लाख 74 हज़ार प्रभावित लोग थे। जो इस बात से साबित होता है कि भोपाल में दावा अदालतों द्वारा वर्ष 1990 से लेकर 2005 तक त्रासदी के इन 15 हज़ार 274 मृतकों के परिजनों और 5 लाख 74 हज़ार प्रभावितों को 715 करोड रुपए मुआवजे के तौर पर दिए गए हैं।

बाइट-3 जयप्रकाश भट्टाचार्य, गैस पीड़ितों के वकील।

संगठनों में दावा किया है कि 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाईड के भोपाल स्थित कारखाने से रिसी जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट से अब तक 20 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। और लगभग 5 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। संगठनों ने कहा कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड उस समय यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन के नियंत्रण में था। जो अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है और बाद में डाउ केमिकल कंपनी के अधीन रहा।


Conclusion:गैस त्रासदी की जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब भी कैंसर ट्यूमर सांस और फेफड़ों की समस्या जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित है। प्रभावितों के पास पैसा नहीं होने के कारण उन्हें उचित इलाज भी नहीं मिल पा रहा है। और इलाज के नाम पर महज दो टेबलेट वितरित कर दी जाती है। गैस पीड़ित संगठन और इससे प्रभावित लोगों का आरोप है कि, तीन दशकों में इतनी सरकारें आई और गई। लेकिन न तो राज्य सरकारों ने और न ही केंद्र सरकारों ने गैस पीड़ितों के लिए कोई उपचारात्मक कदम उठाए है।
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