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नकदी से जूझता बैंकिंग सेक्टर चिंताओं से घिरा, क्या आम बजट से मिलेगी राहत

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Published : Jan 24, 2020, 12:35 PM IST

Updated : Jan 24, 2020, 1:46 PM IST

एक फरवरी को आम बजट पेश होने वाला है. ऐसे में आम आदमी से लेकर खास तक राहत की उम्मीदें लगा रहे हैं. खासकर मंदी के दौर से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर के लिए वित्त मंत्री के पिटारे से क्या निकलता है इस पर विशेष रूप से नजरें हैं.

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नकदी से जूझता बैंकिंग सेक्टर चिंताओं से घिरा.

देहरादूनः 1 फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आम बजट पेश करने जा रही हैं. ऐसे में सभी की नजरें मोदी सरकार के इस आम बजट पर हैं. देश के इस आम बजट को लेकर एक बार फिर आम व्यक्ति से लेकर व्यापार के कुछ खास सेक्टर बेहद आस लगाए हुए हैं. उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण है बैंकिंग सेक्टर. बैंक न केवल केंद्र बल्कि राज्य सरकारों की वित्तीय रीढ़ की हड्डी भी है.

क्या आम बजट से मिलेगी राहत

2020 के आम बजट पेश होने से पहले ही कुछ अर्थशास्त्री और बैंक के विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि मौजूदा दौर में जिस तरह से बैंक नकदी की कमी से जूझ रहे हैं, उसे देखते हुए आने वाले बजट से भी उम्मीद करना बेमानी सा लगता है. बाजार की खस्ताहाल मंदी की स्थिति को देखते हुए बैंकों में जमा होने वाली हर तरह की स्कीम में धनराशि में भारी कमी देखी जा रही है.

वहीं, दूसरी तरफ सरकारी या प्राइवेट बैंकों द्वारा जो मार्केट में भारी मात्रा में दिए गए ऋण की रिकवरी न होने से बैंकिंग क्षेत्र की हालत काफी दयनीय स्थिति पर है. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा पब्लिक में हाउसिंग सेक्टर के अलावा अन्य तरह के दिये जाने वाले ऋण को बैंक कैसे हैंडल करेगा यह अपने आप में नकदी की कमी के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है.

मौजूदा दौर में आर्थिक मंदी के चलते देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक मंडी बैंकिंग सेक्टर में आई जमा लिक्विड गिरावट के चलते बैंक के जानकार मान रहे हैं कि जल्दी अगर केंद्र सरकार द्वारा इस ओर ठोस कदम न उठाया गया तो आने वाले दिनों में बैंकिंग सेक्टर की हालत और भी दयनीय हो सकती है.

उत्तराखंड बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन के पदाधिकारी जगमोहन मेंदीरत्ता के मुताबिक वर्तमान समय में लगातार जो सरकार निर्णय ले रही है उसका असर कई तरह से बाजार पर भी पड़ा है. रिजर्व बैंक द्वारा एफडी में ब्याज दर घटाने की वजह से लोगों का बैंकों में एफडी व नकद डिपाजिट करना कम हो रहा है. ऐसे में अगर पब्लिक सेक्टर से बैंक में नकदी जमा नहीं होगी तो पब्लिक में कैसे लोन बांटा जाएगा.

सरकार खुद रिजर्व बैंक से लोन ले रही है. ऐसे में लोगों का विश्वास जीतने के लिए एफडी अन्य मामलों में ब्याज दरों आकर्षक बनाना होगा, ताकि बैंक में अधिक से अधिक पैसा आए और पब्लिक में हाउसिंग सेक्टर सहित अन्य कार्यों के लिए लोन दिया जा सके. सरकार को बैंकिंग सेक्टर में सुधार लाने के लिए लोक लुभावने ठोस कदम उठाने होंगे ताकि बैंकों की दयनीय स्थिति में सुधार लाया जा सके.

वहीं दूसरी ओर बैंकों के विलय के मामले में भी सरकार खर्चा बचाने के चलते छोटी शाखाओं को बड़े बैंकों में मर्ज करने की कवायद में जुटी हुई है. हालांकि मर्ज करने की योजना में अभी तक किसी तरह का कोई फायदा फौरी तौर पर सामने नहीं आया है. बड़ी संख्या में छोटे बैंक बंद होने से जहां बेरोजगारी बढ़ेगी तो वहीं जनता पहुंच वाले बैंकों की भी दूरी बढ़ने से जमा नकदी में कमी आ सकती हैं.

बड़े लोन की रिकवरी न होना भी मंदी की वजह

बैंकिंग सेक्टर की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए एसबीआई जैसे बड़े बैंक के इनवेस्टमेंट हेड का कहना है कि पिछले वर्ष 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बयान दिया था कि बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए 70 हजार करोड़ रुपए अलग-अलग माध्यमों से खर्च किए जाएंगे.

हालांकि, उसका भी असर कुछ खास देखने को नहीं मिला है. ब्याज दर कम होने के बावजूद उसका फायदा कहीं दूर तक नजर नहीं आ रहा है ऐसे में हाउसिंग सेक्टर और रियल एस्टेट सेक्टर कैसे इस मंदी के दौर से निकल पाएगा.

यह भी पढ़ेंः अब पलायन रोकने के लिए त्रिवेंद्र सरकार करेगी माइग्रेशन मिटीगेशन फंड प्लान पर काम

यह भी एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है. हालांकि केंद्र सरकार द्वारा कई कदम उठाने की कोशिश लगातार जारी है लेकिन उसके बावजूद पहले से ही non-performing से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर को उभारना मौजूदा समय में काफी मुश्किल बड़ा दिख रहा है.दूसरी तरफ बड़े पैमाने में पब्लिक और प्राइवेट बैंकों द्वारा देशभर में दिए गए बड़े लोन की रिकवरी न होना भी बैंकिंग सेक्टर की गिरावट में महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है.

बड़े डिसीजन लेने से डर रहे हैं बैंकर्स

इतना ही नहीं, स्टेट बैंक के इन्वेस्टमेंट हेड मानना है कि भारी मंदी के दौर से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए अब बैंकर्स भी बड़े डिसीजन लेने के लिए सीबीआई, कंट्रोलर एंड ऑडिटर और सीसीसीवी सेंट्रल विजिलेंस कमूीशन जैसी तीन एजेंसियों से खौफजदा हैं.

इसका सबसे बड़ा कारण कई बैंकों के प्रमुखों द्वारा लोन घोटाला होना सामने आया हैं. हालांकि लगातार देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बार-बार यह कह रही हैं कि ईमानदारी से अगर कोई भी बैंकिंग सेक्टर उबारने के लिए निर्णय लिया जाता है तो उसमें कोई बुराई नहीं है.

जीडीपी और बैंकिंग सेक्टर पर सुधार के लिए आकर्षण योजनाएं जरूरी

देश में लगातार गिरती जीडीपी को सुधारने और बैंकिंग सेक्टर को वापस बेहतर ट्रक में लाने के लिए केंद्र सरकार को जमा नकदी, लोन, एफडी जैसे मामलों में आकर्षण योजनाओं के जरिए बड़ा प्रभावित करने ठोस कदम उठाना होगा.

इतना ही नहीं अब बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए सरकार को डिसइन्वेस्टमेंट करना होगा, बैंकों को मर्ज करने वाली कवायद में सिस्टमैटिकली तेजी आ सके ताकि कमजोर बैंकों को मजबूत बैंकों के साथ पूरी तरह से विलय किया जा सके.

इसके अलावा एसबीआई जैसे बड़े बैंकों की तर्ज पर म्यूचल फंड व अन्य शेयरों को बेचा जाए ताकि नकदी अधिक से अधिक आ सके और क्रेडिट फंड को मार्केट में बढ़ाया जा सके.

देहरादूनः 1 फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आम बजट पेश करने जा रही हैं. ऐसे में सभी की नजरें मोदी सरकार के इस आम बजट पर हैं. देश के इस आम बजट को लेकर एक बार फिर आम व्यक्ति से लेकर व्यापार के कुछ खास सेक्टर बेहद आस लगाए हुए हैं. उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण है बैंकिंग सेक्टर. बैंक न केवल केंद्र बल्कि राज्य सरकारों की वित्तीय रीढ़ की हड्डी भी है.

क्या आम बजट से मिलेगी राहत

2020 के आम बजट पेश होने से पहले ही कुछ अर्थशास्त्री और बैंक के विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि मौजूदा दौर में जिस तरह से बैंक नकदी की कमी से जूझ रहे हैं, उसे देखते हुए आने वाले बजट से भी उम्मीद करना बेमानी सा लगता है. बाजार की खस्ताहाल मंदी की स्थिति को देखते हुए बैंकों में जमा होने वाली हर तरह की स्कीम में धनराशि में भारी कमी देखी जा रही है.

वहीं, दूसरी तरफ सरकारी या प्राइवेट बैंकों द्वारा जो मार्केट में भारी मात्रा में दिए गए ऋण की रिकवरी न होने से बैंकिंग क्षेत्र की हालत काफी दयनीय स्थिति पर है. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा पब्लिक में हाउसिंग सेक्टर के अलावा अन्य तरह के दिये जाने वाले ऋण को बैंक कैसे हैंडल करेगा यह अपने आप में नकदी की कमी के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है.

मौजूदा दौर में आर्थिक मंदी के चलते देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक मंडी बैंकिंग सेक्टर में आई जमा लिक्विड गिरावट के चलते बैंक के जानकार मान रहे हैं कि जल्दी अगर केंद्र सरकार द्वारा इस ओर ठोस कदम न उठाया गया तो आने वाले दिनों में बैंकिंग सेक्टर की हालत और भी दयनीय हो सकती है.

उत्तराखंड बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन के पदाधिकारी जगमोहन मेंदीरत्ता के मुताबिक वर्तमान समय में लगातार जो सरकार निर्णय ले रही है उसका असर कई तरह से बाजार पर भी पड़ा है. रिजर्व बैंक द्वारा एफडी में ब्याज दर घटाने की वजह से लोगों का बैंकों में एफडी व नकद डिपाजिट करना कम हो रहा है. ऐसे में अगर पब्लिक सेक्टर से बैंक में नकदी जमा नहीं होगी तो पब्लिक में कैसे लोन बांटा जाएगा.

सरकार खुद रिजर्व बैंक से लोन ले रही है. ऐसे में लोगों का विश्वास जीतने के लिए एफडी अन्य मामलों में ब्याज दरों आकर्षक बनाना होगा, ताकि बैंक में अधिक से अधिक पैसा आए और पब्लिक में हाउसिंग सेक्टर सहित अन्य कार्यों के लिए लोन दिया जा सके. सरकार को बैंकिंग सेक्टर में सुधार लाने के लिए लोक लुभावने ठोस कदम उठाने होंगे ताकि बैंकों की दयनीय स्थिति में सुधार लाया जा सके.

वहीं दूसरी ओर बैंकों के विलय के मामले में भी सरकार खर्चा बचाने के चलते छोटी शाखाओं को बड़े बैंकों में मर्ज करने की कवायद में जुटी हुई है. हालांकि मर्ज करने की योजना में अभी तक किसी तरह का कोई फायदा फौरी तौर पर सामने नहीं आया है. बड़ी संख्या में छोटे बैंक बंद होने से जहां बेरोजगारी बढ़ेगी तो वहीं जनता पहुंच वाले बैंकों की भी दूरी बढ़ने से जमा नकदी में कमी आ सकती हैं.

बड़े लोन की रिकवरी न होना भी मंदी की वजह

बैंकिंग सेक्टर की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए एसबीआई जैसे बड़े बैंक के इनवेस्टमेंट हेड का कहना है कि पिछले वर्ष 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बयान दिया था कि बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए 70 हजार करोड़ रुपए अलग-अलग माध्यमों से खर्च किए जाएंगे.

हालांकि, उसका भी असर कुछ खास देखने को नहीं मिला है. ब्याज दर कम होने के बावजूद उसका फायदा कहीं दूर तक नजर नहीं आ रहा है ऐसे में हाउसिंग सेक्टर और रियल एस्टेट सेक्टर कैसे इस मंदी के दौर से निकल पाएगा.

यह भी पढ़ेंः अब पलायन रोकने के लिए त्रिवेंद्र सरकार करेगी माइग्रेशन मिटीगेशन फंड प्लान पर काम

यह भी एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है. हालांकि केंद्र सरकार द्वारा कई कदम उठाने की कोशिश लगातार जारी है लेकिन उसके बावजूद पहले से ही non-performing से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर को उभारना मौजूदा समय में काफी मुश्किल बड़ा दिख रहा है.दूसरी तरफ बड़े पैमाने में पब्लिक और प्राइवेट बैंकों द्वारा देशभर में दिए गए बड़े लोन की रिकवरी न होना भी बैंकिंग सेक्टर की गिरावट में महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है.

बड़े डिसीजन लेने से डर रहे हैं बैंकर्स

इतना ही नहीं, स्टेट बैंक के इन्वेस्टमेंट हेड मानना है कि भारी मंदी के दौर से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए अब बैंकर्स भी बड़े डिसीजन लेने के लिए सीबीआई, कंट्रोलर एंड ऑडिटर और सीसीसीवी सेंट्रल विजिलेंस कमूीशन जैसी तीन एजेंसियों से खौफजदा हैं.

इसका सबसे बड़ा कारण कई बैंकों के प्रमुखों द्वारा लोन घोटाला होना सामने आया हैं. हालांकि लगातार देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बार-बार यह कह रही हैं कि ईमानदारी से अगर कोई भी बैंकिंग सेक्टर उबारने के लिए निर्णय लिया जाता है तो उसमें कोई बुराई नहीं है.

जीडीपी और बैंकिंग सेक्टर पर सुधार के लिए आकर्षण योजनाएं जरूरी

देश में लगातार गिरती जीडीपी को सुधारने और बैंकिंग सेक्टर को वापस बेहतर ट्रक में लाने के लिए केंद्र सरकार को जमा नकदी, लोन, एफडी जैसे मामलों में आकर्षण योजनाओं के जरिए बड़ा प्रभावित करने ठोस कदम उठाना होगा.

इतना ही नहीं अब बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए सरकार को डिसइन्वेस्टमेंट करना होगा, बैंकों को मर्ज करने वाली कवायद में सिस्टमैटिकली तेजी आ सके ताकि कमजोर बैंकों को मजबूत बैंकों के साथ पूरी तरह से विलय किया जा सके.

इसके अलावा एसबीआई जैसे बड़े बैंकों की तर्ज पर म्यूचल फंड व अन्य शेयरों को बेचा जाए ताकि नकदी अधिक से अधिक आ सके और क्रेडिट फंड को मार्केट में बढ़ाया जा सके.

Intro:summary-मोदी सरकार के आम बजट से पहले खस्ताहाल नक़दी से जूझता बैकिंग सेक्टर चिंताओ से घिरा.


1 फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में देश के वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जनता के लिए आम बजट पेश करने जा रही है। ऐसे में सभी की नजर मोदी सरकार के इस आम बजट को लेकर नजरें टिकी रहेंगी। देश के इस आम बजट को लेकर एक बार आम व्यक्ति से लेकर व्यापार के कुछ खास सेक्टर बेहद आस लगाए हुए हैं,उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण आर्थिक मंडी का सेक्टर है बैंकिंग सेक्टर...बैंक ना केवल केंद्र बल्कि राज्य सरकारों की वित्तीय मद्दत रीढ़ की हड्डी भी है।

2020 देश के आम बजट पेश होने से पहले ही कुछ अर्थशास्त्री और बैंक के विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि मौजूदा दौर में जिस तरह से बैंक नकदी की खस्ताहाल से जूझ रहा है उसे देखते हुए आने वाले बजट से भी उम्मीद करना बेमानी सा लगता है। बाजार की खस्ताहाल मंदी की स्थिति को देखते हुए बैंकों में जमा होने वाली हर तरह की स्कीम में धनराशि में भारी कमी देखी जा रही है।
वहीं दूसरी तरफ सरकारी या प्राइवेट बैंकों द्वारा जो मार्केट में भारी मात्रा में दिया गया रिकवरी ना होने से बैंकिंग क्षेत्र की हालत काफी दयनीय स्थिति पर है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा पब्लिक में हाउसिंग सेक्टर के अलावा अन्य तरह के दिये जाने वाले ऋण को बैंक कैसे हैंडल करेगा यह अपने आप में नकदी की कमी के चलते असमंजस की स्थिति बनी हुई है।


Body:वहीं मौजूदा दौर में आर्थिक मंदी के चलते देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक मंडी बैंकिंग सेक्टर में आई जमा लिक्विड गिरावट के चलते बैंक के जानकार मान रहे हैं कि जल्दी अगर केंद्र सरकार द्वारा इस ओर ठोस कदम न उठाया गया तो आने वाले दिनों में बैंकिंग सेक्टर की हालत और भी दयनीय हो सकती है। उत्तराखंड बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन के पदाधिकारी जगमोहन मेंदीरत्ता के मुताबिक वर्तमान समय में लगातार जो सरकार निर्णय ले रही है उसका असर कई तरह से बाजार पर भी पड़ा है। रिजर्व बैंक द्वारा एफडी में ब्याज दर घटाने की वजह से लोगों का बैंकों में एफडी व नकद डिपाजिट करना कम हो रहा है, ऐसे में अगर पब्लिक सेक्टर से बैंक में नकदी जमा नहीं होगी तो पब्लिक में कैसे लोन बांटा जाएगा। सरकार खुद रिजर्व बैंक से लोन ले रही है। ऐसे में लोगों का विश्वास जीतने के लिए एफडी अन्य मामलों में ब्याज दरों आकर्षण बनाना होगा, ताकि बैंक में अधिक से अधिक पैसा आए और पब्लिक में हाउसिंग सेक्टर सहित अन्य कार्यों के लिए लोन दिया जा सके। सरकार को बैंकिंग सेक्टर में सुधार लाने के लिए लोक लुभावने ठोस कदम उठाने होंगे ताकि बैंकों की दयनीय स्थिति में सुधार लाया जा सके।

वहीं दूसरी ओर बैंकों के विलय करण मामले में भी सरकार ने खर्चा बचाने के चलते छोटी शाखाओं को बड़े बैंकों में मर्ज करने की कवायद में जुटी हुई है हालांकि इस मर्ज करने की योजना में अभी तक किसी तरह का कोई फायदा फौरी तौर पर सामने नहीं आया है। बड़ी संख्या में छोटे बैंक बंद होने से जहां बेरोजगारी बढ़ेगी तो वही जनता पहुंच वाले बैंकों की भी दूरी बढ़ने से जमा नकदी में कमी आ सकती हैं।

बाइट- जगमोहन मेंदीरत्ता, बैंकिंग सेक्टर विशेषज्ञ


Conclusion:देश भर में बड़े लोन की रिकवरी ना होना भी बैंकिंग मंदी की वजह

वही बैंकिंग सेक्टर की खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए एसबीआई जैसे बड़े बैंक के इनवेस्टमेंट हेड का कहना है कि पिछले वर्ष 2019 में देश के वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बयान दिया था कि बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए 70 हज़ार करोड रुपए अलग-अलग माध्यमों से खर्च किए जाएंगे। हालांकि उसका भी असर कुछ खास देखने को नहीं मिला है। ब्याज दर कम होने के बावजूद उसका फायदा कहीं दूर तक नजर नहीं आ रहा है ऐसे में हाउसिंग सेक्टर और रियल एस्टेट सेक्टर कैसे इस मंदी के दौर से निकल पाएगा यह भी एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा कई इंसेंटिव देने की कोशिश लगातार जारी है लेकिन उसके बावजूद पहले से ही non-performing एसेट से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर को उभारना मौजूदा समय में काफी मुश्किल बड़ा दिख रहा है।
दूसरी तरफ बड़े पैमाने में पब्लिक और प्राइवेट बैंकों द्वारा देशभर मव दिए गए बड़े लोन की रिकवरी ना होना भी बैंकिंग सेक्टर की गिरावट में महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है।

बैंक को उभारने के लिए बड़े डिसीजन लेने से डर रहे हैं बैंकर्स: जानकार

इतना ही नहीं स्टेट बैंक के इन्वेस्टमेंट हेड मानना है कि भारी मंदी के दौर से गुजर रहे बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए अब बैंकर्स भी बड़े डिसीजन लेने के लिए सीबीआई, कंट्रोलर एंड ऑडिटर और सीसीसीवी सेंट्रल विजिलेंस कमिशन जैसी तीन एजेंसियों से ख़ौफ़ज़दा हैं। इसका सबसे बड़ा कारण कई बैंकों के प्रमुखों द्वारा लोन घोटाला होना सामने आया हैं। हालांकि लगातार देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बार-बार यह कह रही है कि ईमानदारी से अगर कोई भी बैंकिंग सेक्टर उबारने के लिए निर्णय लिया जाता है तो उसमें कोई बुराई नहीं है।

जीडीपी और बैंकिंग सेक्टर पर सुधार के लिए सरकार को पब्लिक आकर्षण योजनाएं लाने होंगे

देश में लगातार गिरती जीडीपी को सुधारने और बैंकिंग सेक्टर को वापस बेहतर ट्रक में लाने के लिए केंद्र सरकार को जमा नकदी, लोन, एफडी जैसे मामलों में आकर्षण योजनाओं के जरिए बड़ा प्रभावित करने ठोस कदम उठाना होगा। इतना ही नहीं अब बैंकिंग सेक्टर को उभारने के लिए सरकार को डिसइन्वेस्टमेंट करना होगा, बैंकों को मर्ज करने वाली कवायद में सिस्टमैटिकली तेजी आ सके ताकि कमजोर बैंकों को मजबूत बैंकों के साथ पूरी तरह से विलय किया जा सके। इसके अलावा एसबीआई जैसे बड़े बैंकों के तर्ज पर म्यूचल फंड व अन्य शेयरों को बेचा जाए ताकि नकटी अधिक से अधिक आ सके और क्रेडिट फंड को मार्केट में बढ़ाया जा सके।

बाइट -जितेंद्र दाइडोना, एसबीआई इन्वेस्टमेंट हेड, देहरादून
Last Updated : Jan 24, 2020, 1:46 PM IST
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