देहरादून: कोरोना की जंग लड़ने वालों के सम्मान में थाली-ताली सब बजायी गयी. आम जनता से लेकर सरकार तक ने उन्हें खूब सराहा. मगर जब आर्थिक रूप से सम्मान देने की बारी आई तो उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने उन स्वास्थ्य कर्मियों को भुला दिया, जिन्होंने दिन-रात पिछले 11 महीने कोरोना मरीजों के बीच बिता दिए. सरकार की तरफ से आदेश जारी होने के बाद से ही यह लोग न केवल हताश हैं बल्कि सिस्टम से भी खुद को भुला देने की वजह जानने की कोशिश कर रहे हैं.
इन स्वास्थ्य कर्मियों ने कोरोना को लेकर हर उन हालातों का सामना किया है, जिनसे हम और आप बचने की कोशिश करते रहे. इन्होंने कोविड-19 के खौफ को महसूस भी किया है और हरपल संक्रमित होने के डर से भी जूझते रहे. कभी देशवासियों से सम्मान पाकर गौरवान्वित भी हुए, तो जान हथेली पर रखकर किसी को सुरक्षित करने की जिम्मेदारी भी पूरी की. लेकिन इन सब लम्हों को करीब से समझने के बाद आज यह स्वास्थ्य कर्मी बस इतनी सी बात नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर सरकार ने उनके इस काम को क्यों भुला दिया?
पढ़ें- सनातन धर्म के अजेय योद्धा हैं नागा साधु, आदि गुरू शंकराचार्य ने दी थी दीक्षा
देहरादून में 108 एंबुलेंस के चालक पवन कुमार कोविड-19 के दौरान कोरोना के मरीजों को अस्पताल पहुंचाते रहे हैं. आज भी पवन इस काम को कर रहे हैं. इस दौरान उनके कई साथी संक्रमित भी हुए. पवन कहते हैं कि जब मरीज के अपने भी उन्हें हाथ लगाने से डर रहे थे, तब उन्होंने और उनकी टीम ने युवा से लेकर बुजुर्ग तक को एंबुलेंस में स्ट्रेचर पर लिटा कर तक अस्पताल पहुंचाया. फिर भी सरकार सम्मान देने के समय उन लोगों को क्यों भूल गई. यह सवाल बेहद गहरा और गंभीर है. पवन ऐसा करने वाले अकेले नहीं हैं, ऐसे कई एंबुलेंस चालक और सहकर्मी हैं जिन्होंने इस आपातकाल में बेजोड़ काम किया. मगर सरकार सम्मान राशि का आदेश करते वक्त इनके योगदान को भूल गई.
पढ़ें- ऋषि गंगा झील पर क्विक डिप्लॉयेबल एंटेना सिस्टम स्थापित, रियल टाइम होगी मॉनिटरिंग
शासन के आदेश में कोविड-19 के दौरान बेहतर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को सम्मानित करने की बात कही गई है. इसके तहत ₹11,000 और सम्मान पत्र देने की बात दर्ज की गई है. इस सम्मान को डेडिकेटेड कोविड अस्पताल, डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर और डेडिकेटेड कोविड केयर सेंटर्स में ड्यूटी देने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को दिया जाएगा. मगर इस आदेश में न तो एंबुलेंस चालकों का जिक्र है, न सर्विलांस टीम में काम करने वाले हेल्थ वर्कर्स का. बड़ी बात यह है कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सैंपलिंग से जुड़े कर्मियों का भी नाम नहीं है.
पढ़ें- बढ़ती महंगाई के खिलाफ कांग्रेस का प्रदेशव्यापी प्रदर्शन, कहा- 2022 में जनता देगी जवाब
इसी बात से परेशान होकर तीलू रौतेली कोविड केयर सेंटर में सैंपलिंग टीम के इंचार्ज डॉक्टर नरेश कहते हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है सरकार ऐसा आदेश कैसे दे सकती है. सब जानते हैं कि कोरोना संक्रमितों के संपर्क में सबसे पहले या तो एम्बुलेंस कर्मी आते हैं या फिर सैंपलिंग करने वाले. फिर भी सरकार का ऐसा व्यवहार उनको और उनके जैसे बाकी स्वास्थ्य कर्मियों को हैरान कर रहा है.
पढ़ें- बढ़ती महंगाई के खिलाफ कांग्रेस का प्रदर्शन, केंद्र सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
सरकार के इस निर्णय के बाद वह लोग भी सरकार की नजरअंदाजी से दुखी हैं जिन्होंने कोरोना की दस्तक के बाद से ही संदिग्ध और पॉजिटिव मरीजों तक खाना पहुंचाने का काम किया. ऐसा ही काम करने वाले सुनील कहते हैं कि सरकार को ये आदेश करने से पहले सब के बारे में सोचना चाहिए था. उन्होंने कहा 11,000 की रकम से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. पर बात सम्मान की है. सरकार एक पेन या कोई छोटी सी चीज देकर भी सम्मान करे तो उन्हें खुशी होगी.
पढ़ें- ATS में शामिल होगा पहला महिला कमांडो दस्ता, महाकुंभ में लगेगी ड्यूटी
सरकार ने जिस तरह से स्वास्थ्य कर्मियों को सम्मानित करने के इरादे से ₹11,000 और सम्मान देने की योजना बनाई, उससे यह लगता है कि शायद सरकार में बैठे अधिकारी इस कार्य योजना का होमवर्क करना भूल गए. ऐसा न होता तो शायद कोविड-19 काल के इन हीरोज का इस तरह तिरस्कार नहीं किया जाता.