देहरादून: एक ओर जहां देशभर में कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा (congress bharat jodo yatra) निकाल रही है, वहीं दूसरी ओर अपने ही कुनबे को बचाने में नाकाम साबित हो रही है. उत्तराखंड में इन दिनों कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक और नेताओं की लाइन (MLAs and leaders leaving Congress) लगी है. एक के बाद एक पुराने साथी कांग्रेस का हाथ छोड़ रहे हैं. पिछले दिनों चकराता विधायक प्रीतम सिंह के बेटे अभिषेक सिंह और पिथौरागढ़ विधायक मयूख महर ने पीसीसी सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया. वहीं, इस फेहरिस्त में एक और बड़ा नाम जुड़ गया है.
अभिषेक सिंह और मयूख महर के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद अब सुरेश बिष्ट ने भी पीसीसी के सदस्य से इस्तीफा (PCC member resigns) दे दिया है. चमोली जिले के सुरेश बिष्ट पूर्व राज्य मंत्री भी रह चुके हैं. वहीं, वह पिछले 36 सालों से कांग्रेस से जुड़े हुए थे, लेकिन आज उन्होंने भी कांग्रेस कमेटी के सदस्यता से इस्तीफा देकर पार्टी को अलविदा कह दिया.
अपने इस्तीफे पर उन्होंने कहा पार्टी से उनका 36 साल पुराना नाता रहा है. उन्होंने कहा उस बारिश का क्या फायदा, जब पूरी जमीन सूख रही हो. उन्हें नहीं लगता कि उन्होंने कभी छोटे से लेकर बड़े चुनाव तक पार्टी के प्रति कोई दगाबाजी की हो. उन्होंने कहा उनके पूरे परिवार ने ऐसे समय में पार्टी का साथ दिया है, जब कांग्रेस को कोई पूछने वाला नहीं रहा, लेकिन आज पार्टी में व्यक्तिगत स्वार्थों को महत्व दिया जा रहा है.
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ऐसे में उन्हें लगता है कि अब पार्टी में मेरे जैसे कार्यकर्ताओं की कोई जरूरत नहीं रह गई है. इसलिए आज उन्होंने कांग्रेस से भी और पीसीसी की सदस्यता से त्यागपत्र देने का निर्णय लिया है. सुरेश बिष्ट ने कहा उन्होंने 36 वर्षों तक पार्टी की निस्वार्थ सेवा की, लेकिन जब सेवा का फल देने का मौका आया तो पार्टी ने दरकिनार कर दिया. कांग्रेस को जमीनी कार्यकर्त्ताओं की पहचान करने की आवश्यकता है, न की नेताओं की परिक्रमा करने वालों की.
बता दें कि इन दिनों में कांग्रेस में अंदरूनी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है. कुछ दिन पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी की लिस्ट जारी हुई थी, जिसके बाद से ही कांग्रेस में इस्तीफों को दौर जारी है. इसी कड़ी में चमोली कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने देहरादून में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. सुरेश कुमार बिष्ट कर्णप्रयाग विधानसभा से कांग्रेस के एक मजबूत स्तंभ माने जाते थे, लेकिन इस तरह से जनाधार वाले नेताओं का कांग्रेस पार्टी को छोड़कर कर जाना कई सवाल खड़े करता है.