देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में कौन सा मुद्दा गर्म हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड के आर्थिक हालातों को मुद्दा बनाया है. हरीश रावत ने कहा है कि राज्य सरकार विपक्ष का सुझाव भी नहीं लेना चाहती. जबकि उन्होंने अपनी सरकार के दौरान राज्य में आर्थिक हालातों को बेहतर करने का काम किया था.
कोविड-19 के इस माहौल में उत्तराखंड पर न केवल स्वास्थ्य के लिहाज से काफी ज्यादा दबाव है. बल्कि वित्तीय हालातों में भी राज्य की दिक्कतें बढ़ी हैं. प्रदेश सरकार की तरफ से राज्य में हुए नुकसान को लेकर बनाई गई उप समिति की रिपोर्ट के अनुसार राज्य को लॉकडाउन के दौरान करीब 4000 करोड़ का नुकसान हुआ है.
उत्तराखंड के आर्थिक हालातों को कैसे सुधारा जाए, इस पर सरकार चिंतन कर रही है. इस बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य में खराब होते आर्थिक हालातों को मुद्दा बनाते हुए कहा है कि उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार विपक्ष को वित्तीय हालातों के लिए सुझाव लेने तक के लिए नहीं बुलाती है. सरकार को लगता है कि विपक्ष को सुझाव लेने के लिए बुलाया तो वे उनकी सरकार छीन लेंगे.
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हरीश रावत ने अपने नेतृत्व वाली सरकार का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार में 19.5% राजस्व वृद्धि दर थी. जो आज महज 7.5% रह गई है. इसी तरह बेरोजगारी की दर 2.5% ग्रोथ रेट थी. लेकिन अब यह बढ़कर 30% से ऊपर चला गया है.
हरीश रावत के राजनीतिक तीर सरकार को हमेशा ही तीखे लगते हैं. इस बार हरीश रावत ने उत्तराखंड के आर्थिक हालातों और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया है तो सरकार का उनके इस बयान से तिलमिलाना लाजमी है. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन कहते हैं कि हरीश रावत जब भी कोई बात कहते हैं तो उसका राजनीतिक लाभ लेना ही मकसद होता है. हरीश रावत ने सुझाव देने की जो बात कही है यदि वह सरकार को सीधा कहते तो शायद इसका राज्य को लाभ मिलता. लेकिन उन्होंने यहां भी राजनीतिक लाभ लेने के लिए ही मीडिया में यह बयान दिया है.