दिल्ली/देहरादूनः उत्तराखंड में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. सबसे पहले चिंतन शिविर के तुरंत बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दिल्ली तलब किया गया. अब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की खबरें सामने आ रही हैं. इसके अलावा प्रदेश में उपचुनाव को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है. राज्य में उपचुनाव को लेकर खड़े हो रहे सवालों को लेकर पूर्व चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने स्थिति साफ की है. उन्होंने कहा प्रदेश में सीएम के उपचुनाव में किसी तरह की कोई अड़चन नहीं है.
बता दें कि राज्य में 2017 में चुनी गई मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म हो रहा है. ऐसे में चुनाव के लिए एक साल से भी कम समय बचा है, ऐसे में यहां उपचुनाव नहीं कराए जा सकते. राज्य में एक बार फिर CM बदलने की अटकलें भी लग रही हैं. इसी कड़ी में राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले उपचुनाव नहीं हो पाने के दावे पर ईटीवी भारत ने एक्सपर्ट राय ली है.
गैर निर्वाचित मुख्यमंत्री को 6 महीने के भीतर चुनाव लड़ना जरूरीः पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने ऐसे किसी भी दावे को नकारा है, जिसमें सीएम के उपचुनाव को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे है. उनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति जिसने चुनाव नहीं लड़ा है और जिसे मुख्यमंत्री बनाया गया है, उसे 6 महीने के भीतर चुनाव लड़ना जरूरी है. उन्होंने कहा कि इससे संबंधित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में ये जरूर कहा गया है कि अगर चुनावी कार्यकाल खत्म होने के लिए एक साल से कम का समय बचा है तो उपचुनाव की जरूरत नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि ऐसे मामलों में उपचुनाव नहीं कराए जाएंगे.
संपत कहते हैं कि ऐसे मामलों में संविधान को सबसे ऊपर रखा जाता है. उसमें साफ कहा गया है कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए जाने की सूरत में 6 महीने के भीतर चुनाव कराए जाने जरूरी हैं. इस मामले में भी अगर चुनाव आयोग चाहे तो उपचुनाव न हों, लेकिन नियम उपचुनाव नहीं कराने के लिए बाध्य नहीं करते.
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पौड़ी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने तीरथ सिंह रावत ने अब तक अपने सांसद पद से इस्तीफा नहीं दिया है. ऐसे में उन्हें दिल्ली बुलाने का कारण मुख्यमंत्री की गद्दी पर किसी और को बिठाना हो सकता है. जिस 151-A को इसका आधार बनाया जा रहा था. उसे लेकर अब ये साफ हो गया है कि उपचुनाव कराए जाने में कोई अड़चन नहीं है.
गंगोत्री और हल्द्वानी विधानसभा सीटें हैं खाली
बता दें कि बीजेपी विधायक गोपाल रावत के निधन के बाद गंगोत्री विधानसभा खाली हो गई है. गोपाल रावत का बीती 22 अप्रैल को कैंसर की बीमारी से देहरादून के गोविंद अस्पताल में निधन हो गया था. गोपाल रावत एक सरल और स्पष्टवादी नेता के रूप में जाने जाते थे. गोपाल रावत साल 2007 में गंगोत्री विधानसभा से विधायक चुने गए थे. ऐसे में गंगोत्री विधानसभा सीट खाली चल रही है.
वहीं, बीते 13 जून को नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस की दिग्गज नेता इंदिरा हृदयेश का दिल्ली के उत्तराखंड भवन में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था. इंदिरा साल 2000 में अंतरिम उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनीं थी. जबकि, 2007 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हार गई थी, लेकिन 2012 में फिर चुनाव जीती. फिर विजय बहुगुणा एवं हरीश रावत की सरकार में मंत्री भी बनी. इस दौरान उनको वित्त मंत्री भी बनाया गया था. 2017 में चुनाव जीती और नेता प्रतिपक्ष फिर बनी. ऐसे में हल्द्वानी विधानसभा सीट भी खाली है.
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सीएम तीरथ के इन सीटों पर चुनाव लड़ने की लगी कयास
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पौड़ी लोकसभा सीट से सांसद भी हैं. ऐसे में चौबट्टाखाल विधानसभा से चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई. जबकि, गोपाल रावत के निधन के बाद गंगोत्री विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की कयास भी लगाए जा रहे हैं. कई सियासी पंडित उनके गंगोत्री से चुनाव लड़ने की बात भी कर चुके हैं. उधर, हल्द्वानी विधानसीट भी खाली चल रही है.
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त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया था इस्तीफा
मार्च 2017 में 70 विधानसभा सीटों में से 57 सीटें जीतकर उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत हासिल कर बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई थी. तब सीएम पद के लिये जिन वरिष्ठ टॉप-5 नेताओं के नामों की चर्चा थी, उनमें त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम शामिल नहीं था, लेकिन आलाकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम को आगे कर दिया था. आखिरकार उन्हें उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया था, लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने कार्यकाल के 4 साल पूरा करने से अछूते रह गए.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च 2017 को 9वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. 9 मार्च 2021 को उनको पद से इस्तीफा देना पड़ा. ऐसे में चार साल से 9 दिन पहले ही उन्होंने इस्तीफा दिया. बताया जा रहा है कि बीजेपी के तमाम वरिष्ठ नेताओं की मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराजगी थी. गैरसैंण को मंडल बनाए जाने को लेकर विरोध, अफसरों को खुली छूट, मंत्रिमंडल में खाली पड़े पद, आम जनता के प्रति उनका व्यवहार, भ्रष्टाचार के आरोप समेत कई वजहों से त्रिवेंद्र सिंह रावत पर सवाल उठ रहे थे.
तीरथ सिंह रावत नियुक्त हुए थे 10वें मुख्यमंत्री
उधर, त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद नए मुख्यमंत्री को लेकर कई नाम सामने आए. जिसमें पहला नाम धन सिंह रावत. दूसरा नाम कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज. जबकि, तीसरा नाम अजय भट्ट का था. इसके अलावा चौथा नाम केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का था, लेकिन पौड़ी गढ़वाल सांसद को तीरथ सिंह रावत 10 मार्च को उत्तराखंड का 10वां मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. वहीं, प्रदेश इन बीस सालों में 10 मुख्यमंत्री देख चुका है. नारायण दत्त तिवारी के अलावा कोई भी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं है, जिसने अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा किया हो.