देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस में कार्यकारिणी का गठन करना टेढ़ी खीर (Formation of state executive is big challenge) बना हुआ है. अब तक के पार्टी के राजनीतिक हालात तो कुछ यही बयां कर रहे हैं. स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव के बाद नए अध्यक्ष (state president of Uttarakhand) को कमान तो सौंपी गई. करीब 8 महीनों बाद भी प्रदेश अध्यक्ष (Karan Mahara) अपनी टीम का ही चयन नहीं कर पाए हैं. उत्तराखंड कांग्रेस (Uttarakhand Congress) में कार्यकारिणी गठन क्यों होता है एक बड़ी चुनौती. कांग्रेस अध्यक्षों को अपनी टीम बनाने में क्यों लगता है इतना समय. इसी पर पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट...
उत्तराखंड में कांग्रेस की कार्यकारिणी कब तक तय होगी यह कहना बेहद मुश्किल है. कार्यकारिणी को लेकर यह स्थिति केवल मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा के साथ ही नहीं है, बल्कि कांग्रेस में अध्यक्ष बनने वाले हर कांग्रेसी नेता को कार्यकारिणी गठन के लिए इतनी ही मशक्कत करनी पड़ी है. हालत यह है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अपनी टीम का ही गठन समय से नहीं कर पाते और ऐसा करने में उन्हें महीनों या साल भी लग जाता है.
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वैसे तो कांग्रेस अपने कई कार्यक्रम चला रही है, लेकिन किसी भी अध्यक्ष के लिए अपनी भरोसेमंद टीम के बिना काम करना बेहद मुश्किल होता है. इन स्थितियों में वैसे ही हालात पैदा हो जाते हैं जैसे आजकल दिखाई दे रहे हैं. तमाम नेता अपने हिसाब से बयान भी देते हैं और पार्टी के भीतर ही अध्यक्ष की खिलाफत भी शुरू हो जाती है.
बीजेपी का विचार: भाजपा नेता मानते हैं कि कांग्रेस के भीतर इतनी ज्यादा अंतर कलह है कि किसी भी नेता के लिए अपनी टीम गठित कर पाना आसान नहीं है. कार्यकारिणी के गठन में कभी पार्टी में विरोधी नेता अड़ंगा लगाते हैं, तो कभी हाईकमान तक सीधी पकड़ रखने वाले नेता अपने नाम की पैरवी करके अध्यक्ष को असमंजस में डाल देते हैं.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की मुश्किल: भारतीय जनता पार्टी इन स्थितियों को बड़े ही चाव से देखती भी है और राजनीतिक रूप से इसका फायदा भी उठाती है. कहते हैं कि कांग्रेस के अध्यक्ष को कार्यकारिणी गठन के दौरान इतने समीकरणों को साधना होता है कि अध्यक्ष अपनी टीम का गठन समय से कर ही नहीं पाता. विरोधी गुट के नेताओं के लोगों को जगह देने से लेकर हाईकमान की सुनने और वर्चस्व रखने वाले नेताओं को भी टीम में जगह देने पर विचार करना होता है. यही नहीं अपने भरोसेमंद नेताओं को भी बेहतर पद के साथ नवाजने की भी चुनौती होती है.
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सबसे बड़ी बात यह है कि कार्यकारिणी में कुछ भी 20-21 होने पर अध्यक्ष को भारी विरोध तक झेलना पड़ सकता है. इसलिए कोई भी अध्यक्ष फूंक-फूंक कर ही कार्यकारिणी गठन के दौरान कदम बढ़ाता है. इस चक्कर में गणेश गोदियाल जैसे कुछ पूर्व अध्यक्ष तो अपनी टीम भी गठित नहीं कर पाए थे.
कांग्रेस का दावा: हालांकि इसके इतर कांग्रेस नेता कहते हैं कि जल्द ही उत्तराखंड में कांग्रेस की कार्यकारिणी गठित होने जा रही है. कांग्रेस की कार्यकारिणी के लिए भाजपा को बिल्कुल भी चिंता करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि कांग्रेस के सभी कार्यक्रम सफलता से सड़कों पर कांग्रेस के नेता आगे बढ़ा रहे हैं.
बताया जा रहा है कि हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा कार्यकारिणी की उसी लिस्ट को फाइनल मोहर लगवाने के लिए हाईकमान के सामने सूची रखने दिल्ली पहुंचे थे. लेकिन चुनौती तो हाईकमान के सामने भी है. हाईकमान को भी प्रदेश के सभी गुटों के बड़े नेताओं को साधने के लिए उनसे भी सूची साझा करने की जरूरत होती है. लिहाजा इस सूची पर मंजूरी मिल पाएगी, इसकी संभावना कभी शत-प्रतिशत नहीं होती. हालांकि अब एक लंबा वक्त बीत चुका है और उम्मीद की जा रही है कि शायद करण माहरा अपनी टीम बना पाएंगे.