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चुनाव से पहले प्रदेश में तीसरी कमिश्नरी पर मचा 'घमासान', जानें क्या रहा है देवभूमि में कमिश्नरियों का इतिहास - Political infighting over third commissioner gairsain

प्रदेश में तीसरी कमिश्नरी गैरसैंण पर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. आइये एक नजर गैरसैंण से पहले राज्य में मौजूद कमिश्नरियों के इतिहास पर डालते हैं.

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चुनाव से पहले प्रदेश में तीसरी कमिश्नरी पर मचा 'घमासान'
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Published : Mar 5, 2021, 10:18 PM IST

Updated : Mar 6, 2021, 7:53 PM IST

देहरादून: भराड़ीसैंण विधानभा से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण को तीसरी कमीश्नरी बनाने की घोषणा करते हुए विधानसभा चुनाव से पहले अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है. अब इस मामले पर सियासी गलियारों में शोर मचा हुआ है. वहीं, लोगों में भी इसे लेकर अलग-अलग राय है. तीसरी कमिश्नरी पर सत्ता और विपक्ष दोनों ही अपने राजनीतिक आईने के हिसाब से सोच रहे हैं. गैरसैंण कमीश्नरी से पहले उत्तराखंड में दो कमिश्नरी मौजूद हैं. आइये एक नजर डालते हैं इनके इतिहास पर...

चुनाव से पहले प्रदेश में तीसरी कमिश्नरी पर मचा 'घमासान'

मई 1815 में हुई थी कुमाऊं मंडल की स्थापना


ब्रिटिश शासकों ने गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र से नेपाल के शासक बमशाह को हराकर इस पूरे पर्वतीय भू-भाग को अपने साम्राज्य में मिला दिया था. जिसमें आज का पूरा गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र शामिल था. इस पूरे पर्वतीय भू-भाग को अपने कब्जे में लेने के बाद अंग्रेजों ने 1815 में कुमाऊं कमिश्नरी यानी कुमाऊं मंडल की स्थापना की. 3 मई 1815 को ब्रिटिश शासक गार्डनर को कुमाऊं कमिश्नर बनाया गया. गार्डनर की कमिश्नरी के समय कमिश्नर आज की तरह केवल एक अधिकारी नहीं बल्कि एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ पॉलिटिकल एजेंट और सेना का अधिकारी भी होता था. कमिश्नर के पास इस क्षेत्र की सबसे बड़ी ताकत होती थी. गार्डनर कुमाऊं के साथ-साथ टिहरी रियासत में भी पॉलिटिकल एजेंट के रूप में काम करता था, हालांकि गार्डनर की कमिश्नरी केवल 1 साल चली. 13 अप्रैल 1816 में गार्डनर के असिस्टेंट ट्रेल को कुमाऊं का कमिश्नर बनाया गया.

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गार्डनर थे कुमाऊं के पहले कमिश्नर.

ट्रेल ने की थी राजस्व पुलिस की स्थापना


गार्डनर के जाने के बाद 13 अप्रैल 18 से 16 को उनके असिस्टेंट ट्रेल को कुमाऊं का कमिश्नर बनाया गया. ट्रेल को उत्तराखंड में सैकड़ों सालों से चली आ रही राजस्व पुलिस का जन्मदाता भी कहा जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि ट्रेल ने बतौर शासक महसूस किया था कि इस पर्वतीय भू-भाग के लोगों की जीवनशैली बेहद सरल और सीधी है जो कि दक्षिण में मौजूद केरल और अन्य राज्यों में शेड्यूल ट्राइब जैसी समानता लिए हुए है. जिसके चलते ट्रेल ने यहां के लोगों को उनकी परंपरागत जीवन शैली में जीने का अधिकार दिया. ट्रेल ने ही राजस्व पुलिस के रूप में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया.

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ट्रेल से शुरू की राजस्व पुलिस.

ट्रेल की ईजाद की गई यह व्यवस्था आज भी उत्तराखंड में चल रही है. बताया जाता है कि पूरे उत्तराखंड के भूभाग में केवल श्रीनगर, रानीखेत जैसे कुछ गिने-चुने ही पुलिस थाने स्थापित किए गए थे.

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मई 1815 में हुई थी कुमाऊं मंडल की स्थापना
आजादी के बाद 1969 में हुई गढ़वाल मंडल की स्थापना


देश की आजादी के काफी बाद वर्षों बाद 1968-69 में गढ़वाल मंडल की स्थापना की गई. इसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया. इतिहासकार और वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि उस समय उत्तराखंड मूल के पहले बैरिस्टर मुकंदी लाल को 1969 में गढ़वाल मंडल का पहला कमिश्नर बनाया गया. जब गढ़वाल कमिश्नरी की स्थापना हुई तो तब देहरादून गढ़वाल मंडल का हिस्सा नहीं था, बल्कि देहरादून, मेरठ मंडल के अंतर्गत आता था. यही नहीं गढ़वाल मंडल बनने के काफी बाद साल 1975 में देहरादून को गढ़वाल मंडल में शामिल किया गया. इसी बीच समय-समय पर गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के अंतर्गत अलग-अलग जिलों की भी स्थापना होती गई. इस तरह से दोनों मंडलों को मिलाकर जब साल 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई तो उस समय हरिद्वार जिले को भी गढ़वाल मंडल में शामिल कर दिया गया.

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बैरिस्टर मुकंदी लाल गढ़वाल मंडल के पहले कमिश्नर

भाजपा ने राज्य पर थोपा है तीसरा मंडल

भराड़ीसैंण से गैरसैंण कमीश्नरी की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस हमलावर मोड में है. कांग्रेस मंडलों की प्रशासनिक व्यवस्था में भूमिका को लेकर तमाम तरह के सवाल उठा रही है. कांग्रेस का कहना है कि आज उत्तराखंड में मौजूद दो मंडल पहले ही सफेद हाथी साबित हो रहे हैं. मंडलों का विकास से कोई भी सरोकार नहीं है. भाजपा सरकार तीसरा मंडल बनाकर राज्य की जनता पर थोप रही है. इससे राज्य पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा.

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भराड़ीसैंण विधानसभा से सीएम ने की गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा.

तीसरा मंडल बनने पर भाजपा गद-गद

वहीं, गैरसैंण को मंडल बनाये जाने की घोषणा के बाद भाजपा के कार्यकर्ता काफा खुश है. भाजपा का कहना है कि राज्य की मूल अवधारणा के अनुसार ही गैरसैंण के विकास के लिए मुख्यमंत्री ने इसे मंडल बनाया है. उन्होंने कहा ये प्रदेशवासियों की भावनाओं के अनुरूप लिया गया फैसला है. भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के इस फैसले को बेहद प्रभावशाली और राज्य हित में बताया है.

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भराड़ीसैंण विधानसभा

खैर, चाहे जो भी हो, विधानसभा चुनाव से पहले त्रिवेंद्र सरकार ने 'कमिश्नरी' का कार्ड खेलते हुए सत्ता के सियासी खेल की शुरुआत कर दी है. अब विपक्ष भी इसे लेकर हमलावर मोड में है, जहां सत्ता पक्ष इसे गैरसैंण के विकास का रास्ता बता रहा है, वहीं, विपक्ष भी कमिश्नरी के फायदे और नुकसान को बताते हुए त्रिवेंद्र सरकार के इस मास्टर स्ट्रोक का तोड़ ढूंढने में लगी है.

देहरादून: भराड़ीसैंण विधानभा से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण को तीसरी कमीश्नरी बनाने की घोषणा करते हुए विधानसभा चुनाव से पहले अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है. अब इस मामले पर सियासी गलियारों में शोर मचा हुआ है. वहीं, लोगों में भी इसे लेकर अलग-अलग राय है. तीसरी कमिश्नरी पर सत्ता और विपक्ष दोनों ही अपने राजनीतिक आईने के हिसाब से सोच रहे हैं. गैरसैंण कमीश्नरी से पहले उत्तराखंड में दो कमिश्नरी मौजूद हैं. आइये एक नजर डालते हैं इनके इतिहास पर...

चुनाव से पहले प्रदेश में तीसरी कमिश्नरी पर मचा 'घमासान'

मई 1815 में हुई थी कुमाऊं मंडल की स्थापना


ब्रिटिश शासकों ने गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र से नेपाल के शासक बमशाह को हराकर इस पूरे पर्वतीय भू-भाग को अपने साम्राज्य में मिला दिया था. जिसमें आज का पूरा गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र शामिल था. इस पूरे पर्वतीय भू-भाग को अपने कब्जे में लेने के बाद अंग्रेजों ने 1815 में कुमाऊं कमिश्नरी यानी कुमाऊं मंडल की स्थापना की. 3 मई 1815 को ब्रिटिश शासक गार्डनर को कुमाऊं कमिश्नर बनाया गया. गार्डनर की कमिश्नरी के समय कमिश्नर आज की तरह केवल एक अधिकारी नहीं बल्कि एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ पॉलिटिकल एजेंट और सेना का अधिकारी भी होता था. कमिश्नर के पास इस क्षेत्र की सबसे बड़ी ताकत होती थी. गार्डनर कुमाऊं के साथ-साथ टिहरी रियासत में भी पॉलिटिकल एजेंट के रूप में काम करता था, हालांकि गार्डनर की कमिश्नरी केवल 1 साल चली. 13 अप्रैल 1816 में गार्डनर के असिस्टेंट ट्रेल को कुमाऊं का कमिश्नर बनाया गया.

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गार्डनर थे कुमाऊं के पहले कमिश्नर.

ट्रेल ने की थी राजस्व पुलिस की स्थापना


गार्डनर के जाने के बाद 13 अप्रैल 18 से 16 को उनके असिस्टेंट ट्रेल को कुमाऊं का कमिश्नर बनाया गया. ट्रेल को उत्तराखंड में सैकड़ों सालों से चली आ रही राजस्व पुलिस का जन्मदाता भी कहा जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि ट्रेल ने बतौर शासक महसूस किया था कि इस पर्वतीय भू-भाग के लोगों की जीवनशैली बेहद सरल और सीधी है जो कि दक्षिण में मौजूद केरल और अन्य राज्यों में शेड्यूल ट्राइब जैसी समानता लिए हुए है. जिसके चलते ट्रेल ने यहां के लोगों को उनकी परंपरागत जीवन शैली में जीने का अधिकार दिया. ट्रेल ने ही राजस्व पुलिस के रूप में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया.

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ट्रेल से शुरू की राजस्व पुलिस.

ट्रेल की ईजाद की गई यह व्यवस्था आज भी उत्तराखंड में चल रही है. बताया जाता है कि पूरे उत्तराखंड के भूभाग में केवल श्रीनगर, रानीखेत जैसे कुछ गिने-चुने ही पुलिस थाने स्थापित किए गए थे.

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मई 1815 में हुई थी कुमाऊं मंडल की स्थापना
आजादी के बाद 1969 में हुई गढ़वाल मंडल की स्थापना


देश की आजादी के काफी बाद वर्षों बाद 1968-69 में गढ़वाल मंडल की स्थापना की गई. इसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया. इतिहासकार और वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि उस समय उत्तराखंड मूल के पहले बैरिस्टर मुकंदी लाल को 1969 में गढ़वाल मंडल का पहला कमिश्नर बनाया गया. जब गढ़वाल कमिश्नरी की स्थापना हुई तो तब देहरादून गढ़वाल मंडल का हिस्सा नहीं था, बल्कि देहरादून, मेरठ मंडल के अंतर्गत आता था. यही नहीं गढ़वाल मंडल बनने के काफी बाद साल 1975 में देहरादून को गढ़वाल मंडल में शामिल किया गया. इसी बीच समय-समय पर गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के अंतर्गत अलग-अलग जिलों की भी स्थापना होती गई. इस तरह से दोनों मंडलों को मिलाकर जब साल 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना की गई तो उस समय हरिद्वार जिले को भी गढ़वाल मंडल में शामिल कर दिया गया.

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बैरिस्टर मुकंदी लाल गढ़वाल मंडल के पहले कमिश्नर

भाजपा ने राज्य पर थोपा है तीसरा मंडल

भराड़ीसैंण से गैरसैंण कमीश्नरी की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस हमलावर मोड में है. कांग्रेस मंडलों की प्रशासनिक व्यवस्था में भूमिका को लेकर तमाम तरह के सवाल उठा रही है. कांग्रेस का कहना है कि आज उत्तराखंड में मौजूद दो मंडल पहले ही सफेद हाथी साबित हो रहे हैं. मंडलों का विकास से कोई भी सरोकार नहीं है. भाजपा सरकार तीसरा मंडल बनाकर राज्य की जनता पर थोप रही है. इससे राज्य पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा.

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भराड़ीसैंण विधानसभा से सीएम ने की गैरसैंण कमिश्नरी की घोषणा.

तीसरा मंडल बनने पर भाजपा गद-गद

वहीं, गैरसैंण को मंडल बनाये जाने की घोषणा के बाद भाजपा के कार्यकर्ता काफा खुश है. भाजपा का कहना है कि राज्य की मूल अवधारणा के अनुसार ही गैरसैंण के विकास के लिए मुख्यमंत्री ने इसे मंडल बनाया है. उन्होंने कहा ये प्रदेशवासियों की भावनाओं के अनुरूप लिया गया फैसला है. भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के इस फैसले को बेहद प्रभावशाली और राज्य हित में बताया है.

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भराड़ीसैंण विधानसभा

खैर, चाहे जो भी हो, विधानसभा चुनाव से पहले त्रिवेंद्र सरकार ने 'कमिश्नरी' का कार्ड खेलते हुए सत्ता के सियासी खेल की शुरुआत कर दी है. अब विपक्ष भी इसे लेकर हमलावर मोड में है, जहां सत्ता पक्ष इसे गैरसैंण के विकास का रास्ता बता रहा है, वहीं, विपक्ष भी कमिश्नरी के फायदे और नुकसान को बताते हुए त्रिवेंद्र सरकार के इस मास्टर स्ट्रोक का तोड़ ढूंढने में लगी है.

Last Updated : Mar 6, 2021, 7:53 PM IST
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