ऋषिकेश: उत्तराखंड में बारिश का कहर जारी है. ऊपर से सरकारी महकमों की नाकामी अब लोगों की जान के लिए आफत बन गई है. वहीं, बीते दिन उत्तराखंड के देहरादून में रानी पोखरी पुल अचानक से ध्वस्त हो गया. लापरवाही ने विकास का दावा करने वाली डबल इंजन सरकार की पोल भी खोल दी है. ऐसे में पुल टूटने के बाद सरकारी मशीनरी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं.
दरअसल, रानीपोखरी में जाखन नदी पर साल 1964-65 में बने 431.60 मीटर लंबे पुल का एक बड़ा हिस्सा शुक्रवार को भरभरा गिर गया. हैरानी की बात यह है कि देहरादून-ऋषिकेश मार्ग पर पड़ने वाले इस ब्रिज की जगह नए पुल निर्माण के लिए 16 करोड़ 28 लाख 70 हजार रुपए दो साल पहले केंद्र सरकार मंजूर कर चुकी है. सीआरएफ योजना के तहत यह स्वीकृति नेशनल हाईवे पीडब्ल्यूडी डोईवाला डिविजन को साल 2019 में दी गई. लापरवाही का आलम यह है कि पुल निर्माण के लिए महज 81 पेड़ों के पातन की परमिशन ऑनलाइन अप्लाई करने में ही एनएच डोईवाला को डेढ़ साल का वक्त लग गया.
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जून-2021 में अब पातन की अनुमति से जुड़ी फाइल को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में ऑनलाइन अप्लाई किया गया है. पुल की चौड़ाई 12 मीटर और लंबाई 432 मीटर के आसपास निर्धारित है. जाहिर है कि वक्त रहते नए पुल का निर्माण किया जाता है, तो शायद आज यह मंजर लोगों की आंखों के सामने नहीं होता. अब महकमों की लापरवाही की पोल खुल चुकी है, जिसपर पर्दा डालने की कोशिशें जारी हैं.
एनएच डोईवाला डिवीजन के सहायक अभियंता प्रवीण सक्सेना ने बताया कि नया पुल स्वीकृत है, लेकिन अभी निर्माण की जद में आने वाले पेड़ों के पातन की अनुमति नहीं मिली है. इसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में ऑनलाइन अप्लाई कर दिया गया है. अनमुति मिलने के बाद पेड़ों का पातन कराकर युद्धस्तर पर नए ब्रिज का काम शुरू कर दिया जाएगा.
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बता दें कि 27 अगस्त यानी शुक्रवार को देहरादून-ऋषिकेश हाईवे पर रानीपोखरी में पुल का बड़ा हिस्सा टूटकर गिर गया था. जब पुल गिरा उस समय उसके ऊपर वाहन दौड़ रहे थे. पुल का जो हिस्सा टूटा वहां कुछ वाहन फंस गए और कुछ पलट गए. दो छोटे हाथी वाहन के साथ एक और वाहन नीचे फंस गया. गनीमत यह रही कि इस हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई है. उधर, मुख्यमंत्री धामी ने पुल टूटने की जांच के आदेश दिए हैं.