देहरादून: बीते विंटर सीजन में सामान्य से कम हुई बर्फबारी के चलते इस बार भीषण गर्मी का पूर्वानुमान मौसम विभाग ने पहले ही दे दिया है. मौसम विभाग के इस पूर्वानुमान का असर अभी से दिखने लगा है. हालांकि अगर मार्च की बात करें तो मार्च में मौसम ने अपना अलग ही रुख दिखाया था. उत्तराखंड में फरवरी से ज्यादा ठंड मार्च में देखने को मिली. लेकिन अब अप्रैल की शुरुआत से ही मौसम तपने लगा है. उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में जंगलों में लगने वाली आग ने वन विभाग की भी नींद उड़ा दी है.
जंगल हो रहे प्रभावित: पूरे प्रदेश में जंगलों में लगी आग की घटनाओं की अगर बात करें तो बीते सोमवार से लेकर अब तक प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में तकरीबन 12 जगहों पर आग की घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं. इन घटनाओं में 20 हेक्टेयर से अधिक जंगल प्रभावित हुआ है. इस पूरे साल की अगर बात की जाए तो एक जनवरी 2030 से 17 अप्रैल 2023 तक कुल 178 आग की घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं. इसमें कुल 243 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गया है.
लाखों में हुआ आर्थिक नुकसान: वहीं अगर अब तक हुए नुकसान की बात करें तो जंगलों में लगी इस आग से हर एक दिन तकरीबन ₹30,000 प्रतिदिन के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है. कुल आर्थिक नुकसान की बात करें तो वनाग्नि से उत्तराखंड के जंगलों में अब तक ₹7,57,390 की आर्थिक क्षति का आकलन किया गया है. वहीं इन घटनाओं में अब तक 2 लोगों की मृत्यु हुई है. एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हुआ है. यह हालात तो तब के हैं जब ज्यादातर मौसम नम रहता है लेकिन अब तापमान बढ़ने लगा है और बीते सोमवार से आग की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं.
क्रू स्टेशन से किया जाता है वनाग्नि को कंट्रोल: उत्तराखंड वन विभाग में फॉरेस्ट फायर को लेकर जिम्मेदारी संभाल रहे प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा ने बताया की वन विभाग के लिए हमेशा से वनाग्नि एक बड़ी चुनौती रही है लेकिन लगातार वन विभाग इस चुनौती से निपट रहा है. उन्होंने बताया कि वन विभाग द्वारा मॉडल क्रू स्टेशन की स्थापना की गई है. इस वक्त प्रदेश में 1426 क्रू स्टेशन हैं, जहां से फॉरेस्ट फायर कंट्रोल की कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है. उन्होंने बताया कि क्रू स्टेशन के तहत वन विभाग के कर्मचारी और स्थानीय फायर वाचर काम करते हैं और हर एक गतिविधि पर विभाग की नजर रहती है. इससे समय रहते ही वनाग्नि को कंट्रोल करने का प्रयास किया जाता है.
यह भी पढ़ें: ऊणी के जंगल की आग बुझाने वाले महिला मंगल दल का सम्मान, फॉरेस्ट ऑफिसर ने की सराहना
अन्य सामाजिक दलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण: इस तरह से अगर बीते साल के अनुभव की बात करें तो वर्ष 2022 में 2816 फॉरेस्ट फायर की घटनाएं रिपोर्ट की गई थी. जिसमें 3300 हेक्टेयर से अधिक जंगल प्रभावित हुआ था. उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही फॉरेस्ट फायर की चुनौतियों को देखते हुए ड्रोन सहित तमाम अत्याधुनिक तकनीकों पर लगातार प्रयोग किया जा रहा है. प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा का कहना है कि फॉरेस्ट फायर की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए केवल विभागीय प्रयास ही काफी नहीं हैं. इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों, गांव के सरपंच, युवा मंगल दल, महिला स्वयं सहायता समूहों और एक आम नागरिक की भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है.