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लोक कलाकारों के सामने है रोजी-रोटी का संकट, मजदूरी को विवश

कोरोना का असर सभी वर्गों में देखा गया है. उत्तराखंड के लोक कलाकारों पर भी कोरोना लॉकडाउन का असर पड़ा है. उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

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Published : Nov 28, 2020, 2:12 PM IST

विकासनगर: उत्तराखंड के लोक कलाकार कोरोना काल में हाशिए पर नजर आ रहे हैं. कलाकारों के लिए संस्कृति विभाग एवं सूचना विभाग में समय-समय पर कार्यक्रम आवंटित किए जाते रहे हैं. लेकिन कोरोना काल में कलाकारों की सरकार द्वारा कोई सुध नहीं ली गई. जिस कारण से कलाकार मजबूरन मजदूरी करने को विवश हो गए हैं.

उत्तराखंड की लोक संस्कृति देश-विदेशों में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. इसका मुख्य कारण यहां के लोक कलाकार हैं. कलाकारों में मुख्य भूमिका निभाने वाले वाद्य यंत्र वादक रहे हैं. उत्तराखंड राज्य आंदोलन के तहत प्रथम पंक्ति में ढोल वादक ही खडे़ नजर आए. लेकिन अभी ढोल वादक, दमोह वादक, रणसिंघा वादक जैसे मुख्य कलाकार हाशिए पर नजर आ रहे हैं. ये कलाकार मजदूरी करने को विवश हैं. सरकार का संस्कृति विभाग व सूचना विभाग इन कलाकारों की सुध नहीं ले रहा है. ऐसे में संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज से भी जौनसार बावर के सुप्रसिद्ध लोक कलाकार नंदलाल भारती ने फोन पर बात कर कलाकारों की सुध लेने को कहा. नंदलाल ने संबंधित विभाग के भी समक्ष अपनी बात रखी. इसके बाद कलाकारों को सिर्फ 1,000 रुपये देने का आश्वासन दिया गया. जोकि ऊंट के मुंह में जीरा जैसा सबित हुआ.

पढ़ें: धरना देने वाले पार्षदों को हरक का समर्थन, बोले- सभी को बात रखने का हक

वहीं, प्रसिद्ध लोक कलाकार लोक कला मंच के अध्यक्ष नंदलाल भारती ने बताया कि कोरोना काल में मजदूरी करने को विवश हैं. करोना काल में कलाकारों के लिए सारे दरवाजे बंद हो गए. मंदिरों की घंटियां बंद हो गईं. स्वागत कार्यक्रम बंद हो गए. सरकार के संस्कृति विभाग व सूचना विभाग से जो कार्यक्रम आवंटित होते थे वह भी बंद हो गए हैं. इस कारण से वाद्य यंत्र बजाने वाले कलाकारों को मजबूरी में अन्य जगह मजदूरी करने को विवश होना पड़ रहा है.

विकासनगर: उत्तराखंड के लोक कलाकार कोरोना काल में हाशिए पर नजर आ रहे हैं. कलाकारों के लिए संस्कृति विभाग एवं सूचना विभाग में समय-समय पर कार्यक्रम आवंटित किए जाते रहे हैं. लेकिन कोरोना काल में कलाकारों की सरकार द्वारा कोई सुध नहीं ली गई. जिस कारण से कलाकार मजबूरन मजदूरी करने को विवश हो गए हैं.

उत्तराखंड की लोक संस्कृति देश-विदेशों में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. इसका मुख्य कारण यहां के लोक कलाकार हैं. कलाकारों में मुख्य भूमिका निभाने वाले वाद्य यंत्र वादक रहे हैं. उत्तराखंड राज्य आंदोलन के तहत प्रथम पंक्ति में ढोल वादक ही खडे़ नजर आए. लेकिन अभी ढोल वादक, दमोह वादक, रणसिंघा वादक जैसे मुख्य कलाकार हाशिए पर नजर आ रहे हैं. ये कलाकार मजदूरी करने को विवश हैं. सरकार का संस्कृति विभाग व सूचना विभाग इन कलाकारों की सुध नहीं ले रहा है. ऐसे में संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज से भी जौनसार बावर के सुप्रसिद्ध लोक कलाकार नंदलाल भारती ने फोन पर बात कर कलाकारों की सुध लेने को कहा. नंदलाल ने संबंधित विभाग के भी समक्ष अपनी बात रखी. इसके बाद कलाकारों को सिर्फ 1,000 रुपये देने का आश्वासन दिया गया. जोकि ऊंट के मुंह में जीरा जैसा सबित हुआ.

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वहीं, प्रसिद्ध लोक कलाकार लोक कला मंच के अध्यक्ष नंदलाल भारती ने बताया कि कोरोना काल में मजदूरी करने को विवश हैं. करोना काल में कलाकारों के लिए सारे दरवाजे बंद हो गए. मंदिरों की घंटियां बंद हो गईं. स्वागत कार्यक्रम बंद हो गए. सरकार के संस्कृति विभाग व सूचना विभाग से जो कार्यक्रम आवंटित होते थे वह भी बंद हो गए हैं. इस कारण से वाद्य यंत्र बजाने वाले कलाकारों को मजबूरी में अन्य जगह मजदूरी करने को विवश होना पड़ रहा है.

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