जौनपुर (उत्तरप्रदेश): एक तरफ काशी के बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं जौनपुर के मालीपुर मोहल्ले में पांच मुस्लिम बहनें एक स्कूल चला रही हैं. 5 सालों से चल रहे इस स्कूल में बच्चों को उर्दू के साथ-साथ संस्कृत भी पढ़ाई जाती है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहीं यह बहनें समाज के लिए मिसाल बनी हैं.
इनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब घरों के हैं, जिनको वह पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी बांटती हैं. इन बहनों ने मुस्लिम होने के बावजूद भी 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा ली थी, जिसके बाद अब वह बच्चों को संस्कृत सिखा रही है.
बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हैं ये बहनें
शहर के मालीपुर मोहल्ले में पांच मुस्लिम बहनों ने एक स्कूल की शुरुआत की. समाज में विरोध के बावजूद भी इन बहनों ने अपने घर में ही गरीब और बेसहारा बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू किया. इस स्कूल में आज 300 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. पांचों मुस्लिम बहनें इन बच्चों को संस्कृत और उर्दू की तालीम बखूबी दे रही हैं. इन बहनों को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सम्मानित कर चुके हैं.
भाषा का नहीं होता कोई धर्म
संस्कृत पढ़ाने वाली सीमा बेगम ने बताया उन्होंने भाषा को लेकर कभी भी भेदभाव नहीं किया है. वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाती हैं और बच्चे भी बड़े शौक से संस्कृत सीखते हैं. उन्हें मुस्लिम होकर संस्कृत पढ़ाना अच्छा लगता है क्योंकि भाषा का कोई धर्म नहीं होता.
बच्चों की जाति देखना नहीं है सही
स्कूल की शिक्षिका फरहत खान का कहना है कि हम पांचों बहनें उर्दू और संस्कृत दोनों पढ़ाते हैं और एक शिक्षक के लिए बच्चों की जाति देखना बिल्कुल सही नहीं है. उनका कहना है कि हमें धर्म और भाषा में कोई भेद नहीं करना चाहिए, चाहे उर्दू हो या संस्कृत.
अच्छे से पढ़ाती हैं शिक्षिकाएं
स्कूल में पढ़ने वाली पूजा गुप्ता पांचवी कक्षा में पढ़ती हैं. वह बताती हैं कि उन्हें पढ़ाने वाली पांचों शिक्षिकाएं मुस्लिम हैं, लेकिन वह संस्कृत और उर्दू के साथ सभी विषय अच्छी तरीके से पढ़ाती हैं.
छात्रों को पसंद है संस्कृत पढ़ना
इसी स्कूल में पढ़ने वाली साहिबा बानो ने बताया कि वह दसवीं की छात्रा है, लेकिन इस स्कूल में उन्हें संस्कृत भी सिखाई जाती है. उन्हें संस्कृत पढ़ना अच्छा लगता है.