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...यहां एक ही छत के नीचे दी जाती है संस्कृत और उर्दू की तालीम

जौनपुर में पांच मुस्लिम बहनें गरीब बच्चों को उर्दू और संस्कृत की शिक्षा दे रही हैं. इन शिक्षिकाओं का कहना है कि शिक्षा का कोई धर्म नहीं होता.

संस्कृत पढ़ाती हैं ये मुस्लिम बहनें.
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Published : Nov 23, 2019, 8:05 AM IST

जौनपुर (उत्तरप्रदेश): एक तरफ काशी के बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं जौनपुर के मालीपुर मोहल्ले में पांच मुस्लिम बहनें एक स्कूल चला रही हैं. 5 सालों से चल रहे इस स्कूल में बच्चों को उर्दू के साथ-साथ संस्कृत भी पढ़ाई जाती है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहीं यह बहनें समाज के लिए मिसाल बनी हैं.

संस्कृत पढ़ाती हैं ये मुस्लिम बहनें.

इनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब घरों के हैं, जिनको वह पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी बांटती हैं. इन बहनों ने मुस्लिम होने के बावजूद भी 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा ली थी, जिसके बाद अब वह बच्चों को संस्कृत सिखा रही है.

बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हैं ये बहनें
शहर के मालीपुर मोहल्ले में पांच मुस्लिम बहनों ने एक स्कूल की शुरुआत की. समाज में विरोध के बावजूद भी इन बहनों ने अपने घर में ही गरीब और बेसहारा बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू किया. इस स्कूल में आज 300 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. पांचों मुस्लिम बहनें इन बच्चों को संस्कृत और उर्दू की तालीम बखूबी दे रही हैं. इन बहनों को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सम्मानित कर चुके हैं.

भाषा का नहीं होता कोई धर्म
संस्कृत पढ़ाने वाली सीमा बेगम ने बताया उन्होंने भाषा को लेकर कभी भी भेदभाव नहीं किया है. वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाती हैं और बच्चे भी बड़े शौक से संस्कृत सीखते हैं. उन्हें मुस्लिम होकर संस्कृत पढ़ाना अच्छा लगता है क्योंकि भाषा का कोई धर्म नहीं होता.

बच्चों की जाति देखना नहीं है सही
स्कूल की शिक्षिका फरहत खान का कहना है कि हम पांचों बहनें उर्दू और संस्कृत दोनों पढ़ाते हैं और एक शिक्षक के लिए बच्चों की जाति देखना बिल्कुल सही नहीं है. उनका कहना है कि हमें धर्म और भाषा में कोई भेद नहीं करना चाहिए, चाहे उर्दू हो या संस्कृत.

अच्छे से पढ़ाती हैं शिक्षिकाएं
स्कूल में पढ़ने वाली पूजा गुप्ता पांचवी कक्षा में पढ़ती हैं. वह बताती हैं कि उन्हें पढ़ाने वाली पांचों शिक्षिकाएं मुस्लिम हैं, लेकिन वह संस्कृत और उर्दू के साथ सभी विषय अच्छी तरीके से पढ़ाती हैं.

छात्रों को पसंद है संस्कृत पढ़ना
इसी स्कूल में पढ़ने वाली साहिबा बानो ने बताया कि वह दसवीं की छात्रा है, लेकिन इस स्कूल में उन्हें संस्कृत भी सिखाई जाती है. उन्हें संस्कृत पढ़ना अच्छा लगता है.

जौनपुर (उत्तरप्रदेश): एक तरफ काशी के बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं जौनपुर के मालीपुर मोहल्ले में पांच मुस्लिम बहनें एक स्कूल चला रही हैं. 5 सालों से चल रहे इस स्कूल में बच्चों को उर्दू के साथ-साथ संस्कृत भी पढ़ाई जाती है. बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहीं यह बहनें समाज के लिए मिसाल बनी हैं.

संस्कृत पढ़ाती हैं ये मुस्लिम बहनें.

इनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब घरों के हैं, जिनको वह पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी बांटती हैं. इन बहनों ने मुस्लिम होने के बावजूद भी 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा ली थी, जिसके बाद अब वह बच्चों को संस्कृत सिखा रही है.

बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हैं ये बहनें
शहर के मालीपुर मोहल्ले में पांच मुस्लिम बहनों ने एक स्कूल की शुरुआत की. समाज में विरोध के बावजूद भी इन बहनों ने अपने घर में ही गरीब और बेसहारा बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू किया. इस स्कूल में आज 300 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. पांचों मुस्लिम बहनें इन बच्चों को संस्कृत और उर्दू की तालीम बखूबी दे रही हैं. इन बहनों को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सम्मानित कर चुके हैं.

भाषा का नहीं होता कोई धर्म
संस्कृत पढ़ाने वाली सीमा बेगम ने बताया उन्होंने भाषा को लेकर कभी भी भेदभाव नहीं किया है. वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाती हैं और बच्चे भी बड़े शौक से संस्कृत सीखते हैं. उन्हें मुस्लिम होकर संस्कृत पढ़ाना अच्छा लगता है क्योंकि भाषा का कोई धर्म नहीं होता.

बच्चों की जाति देखना नहीं है सही
स्कूल की शिक्षिका फरहत खान का कहना है कि हम पांचों बहनें उर्दू और संस्कृत दोनों पढ़ाते हैं और एक शिक्षक के लिए बच्चों की जाति देखना बिल्कुल सही नहीं है. उनका कहना है कि हमें धर्म और भाषा में कोई भेद नहीं करना चाहिए, चाहे उर्दू हो या संस्कृत.

अच्छे से पढ़ाती हैं शिक्षिकाएं
स्कूल में पढ़ने वाली पूजा गुप्ता पांचवी कक्षा में पढ़ती हैं. वह बताती हैं कि उन्हें पढ़ाने वाली पांचों शिक्षिकाएं मुस्लिम हैं, लेकिन वह संस्कृत और उर्दू के साथ सभी विषय अच्छी तरीके से पढ़ाती हैं.

छात्रों को पसंद है संस्कृत पढ़ना
इसी स्कूल में पढ़ने वाली साहिबा बानो ने बताया कि वह दसवीं की छात्रा है, लेकिन इस स्कूल में उन्हें संस्कृत भी सिखाई जाती है. उन्हें संस्कृत पढ़ना अच्छा लगता है.

Intro:जौनपुर।। काशी के बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है वही जौनपुर के मालीपुर मोहल्ले में 5 मुस्लिम बहने एक स्कूल चला रही हैं । यहां मुस्लिम बच्चों के साथ हिंदू बच्चे भी मुफ्त में शिक्षा पाते हैं। पिछले 5 सालों से चल रहे इस स्कूल में बच्चों को उर्दू के साथ संस्कृत भी पढ़ाई जाती है। इस स्कूल में जितना अच्छा उर्दू सिखाया जाता है वही मुस्लिम शिक्षिकाओं के द्वारा संस्कृत भी पढ़ाया जाता है। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए यह बहने आज समाज के लिए मिसाल बनी हुई है। इनके स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब घरों के हैं जिनको वह पढ़ाई के साथ साथ संस्कार भी बांटती हैं । इन बहनों ने मुस्लिम होने के बावजूद भी 12वीं तक संस्कृत की शिक्षा ली थी जिसके बाद अब वह बच्चों को संस्कृत सीखा रही है।


Body:वीओ।। शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले जौनपुर में आज भी गंगा जमुनी संस्कृति देखने को मिलती है। शहर के मालीपुर मोहल्ले में 5 मुस्लिम बहनें ने एक स्कूल की शुरुआत की है। समाज में विरोध के बावजूद भी इन बहनों ने अपने घर में ही गरीब और बेसहारा बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू किया । इस स्कूल में आज 300 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं जिनमें से ज्यादातर बच्चे मुस्लिम है। वही पांचों मुस्लिम बहने सभी विषयों की अच्छी शिक्षा बच्चों को दे रही हैं । इन बच्चों को संस्कृत भी पढ़ाई जाती है तो उसके साथ उर्दू भी पढ़ाई जाती है। यहां हिंदू बच्चे जहां उर्दू सीख रहे हैं तो वहां मुस्लिम छात्र भी संस्कृत पढ़ रहे हैं। इन बहनों को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सम्मानित कर चुके है।

संस्कृत पढ़ाने वाली सीमा बेगम ने बताया उन्होंने भाषा को लेकर कभी भी भेद भाव नहीं किया है। वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाती हैं और उनके बच्चे भी बड़े शौक से संस्कृत सीखते हैं। उन्हें मुस्लिम होकर संस्कृत पढ़ाना अच्छा लगता है क्योंकि भाषा का कोई धर्म नहीं होता।

बाइट-सीमा बेगम- शिक्षिका


Conclusion:जौनपुर की इन मुस्लिम बहनों को न तो राम से कोई आपत्ति है नहीं रहीम से , वह दोनों को मानती हैं । इसीलिए संस्कृत में बच्चों को सीमा बेगम राम का रूप भी पढ़ाती है।


स्कूल में बच्चों को फरहद बेगम उर्दू पढ़ाती है लेकिन उन्हें भी संस्कृत पढ़ाना अच्छा लगता है। वह कहती हैं जिस तरीके से डॉक्टर फिरोज खान का विरोध संस्कृत शिक्षक के नाते हो रहा है वह गलत है क्योंकि भाषा को धर्म की जंजीरों से नहीं जकड़ा जा सकता है । उनके स्कूल में बच्चे मुस्लिम होने के बावजूद भी संस्कृत पढ़ते हैं वही हिंदू बच्चे उर्दू भी पढ़ते हैं।

बाइट-फरहत खान- शिक्षिका

स्कूल में पढ़ने वाली पूजा गुप्ता पांचवी कक्षा में पढ़ती है। वह बताती हैं कि उन्हें पढ़ाने वाली पांचो शिक्षिकाये मुस्लिम है लेकिन वह संस्कृत और उर्दू के साथ सभी विषय अच्छी तरीके से पढ़ाती है।

बाइट- पूजा गुप्ता -छात्रा


इसी स्कूल में पढ़ने वाली साहिबा बानो ने बताया कि वह दसवीं की छात्रा है लेकिन इस स्कूल में उन्हें संस्कृत भी सिखाई जाती है। उन्हें संस्कृत पढ़ना अच्छा लगता है।

बाइट-साहिबा बानो - मुस्लिम छात्रा


पीटीसी

Dharmendra singh
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