देहरादूनः भारत का किसान पहले से ही परेशानी और विकट समस्याओं से जूझ रहा था. लेकिन अब कोरोना काल के दौरान किसानों पर दोहरी और तिहरी मार पड़ती दिखाई दे रही है. आलम ये है कि इस मार से बचाने के लिए न तो भारत सरकार के पास कोई प्लान है और न ही राज्य सरकारों के पास. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सामान्य दिनों में जो किसान अपनी खेती से चंद रुपए का फायदा भी नहीं कर पा रहा था. अब वही किसान कोरोना काल में देशवासियों को खाना तो खिला रहा है, लेकिन अपने घरों के हालात को सुधारने में एक कौड़ी भी जमा नहीं कर पा रहा है. बाजारों में बिक रही सस्ती सब्जियों की क्या है हकीकत? जानते हैं इस रिपोर्ट में.
इन दिनों काश्तकार अपने बुरे दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि सब्जियों के अच्छे दाम न मिल पाने की वजह से काश्तकारों के सामने आर्थिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है. इसके साथ ही अब काश्तकारों को न सिर्फ भविष्य की चिंता सता रही है, बल्कि वर्तमान समय में खेतों में काम करने वाले मजदूरों को भी मेहनताना देना पड़ रहा है. ऐसे में अब काश्तकार राज्य सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, ताकि राज्य सरकार उनकी मदद करें, जिससे कि उनकी देनदारी कम हो सके.
बाजार में बिकने वाली सब्जियों की कीमत आढ़ती निर्धारित करता है. लेकिन इन सब्जियों को जब काश्तकारों से लाया जाता है तो उस दौरान बाजार में मिलने वाली सब्जियों के रेट का मात्र 10% ही काश्तकारों को मिल पाता है. यानी दिन-रात मेहनत कर खेतों में सब्जियां उगाने वाले काश्तकारों से कम दामों पर खरीद ली जाती है और उन्हें फिर आढ़तियों द्वारा अच्छे दाम पर बाजार में बेचा जाता है. वहीं, काश्तकारों का कहना है कि सीजनल सब्जियों में लौकी, कद्दू, भिंडी, खीरा आदि सब्जियां खेतों में बोई गई हैं. लेकिन बाजारों में इन सब्जियों की खरीद मात्र 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से ही मिल रही है.
लॉकडाउन में बिगड़े हालात
ईटीवी भारत से बातचीत में काश्तकारों ने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही हुआ है, क्योंकि खेतों में फसल खड़ी थी, लेकिन न ही उस समय पर कटाई हो सकती थी और न ही वे उन्हें मंडियों तक ले जा पाए. जिसके चलते उन्हें लॉकडाउन के दौरान भारी नुकसान हुआ है. हालांकि लॉकडाउन के दौरान थोड़ी राहत इस बात की मिली कि खेतों से सब्जियों की कटाई कर मंडियों तक पहुंचाया गया, लेकिन सब्जियों के दाम कम मिलने के चलते उनका खर्चा भी नहीं निकल पाया.
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ओले की मार से बर्बाद हुए काश्तकार
काश्तकारों ने बताया कि इस लॉकडाउन के दौरान यूं तो पहले से ही आर्थिक संकट चरम पर था. वहीं, दूसरी ओर ओलों की मार ने उन्हें बर्बादी के कगार पर ला दिया. अब फिर से खीरा, लौकी, भिंडी आदि सब्जियों की फसल लगाई गई है. लेकिन अब इन फसलों को खरीदने वाला कोई नहीं है. अगर इन्हें मंडी में ले जाकर बेच भी रहे हैं तो उसके न के बराबर ही दाम मिल पा रहे हैं.
काश्तकारों के साथ मजदूरों की स्थिति भी खराब
काश्तकारों के खेतों में काम करने वाली महिलाओं ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि इस बार फसलों को काफी नुकसान हुआ है. ऐसे में जब काश्तकार को ही पैसा नहीं मिल पाएगा तो वह खेतों में काम करने वाले मजदूरों को पैसे कैसे देंगे? हालांकि इस बार जहां एक ओर लॉकडाउन के चलते खेतों में सब्जियां बर्बाद हो गईं. वहीं, अब सब्जियों की सही कीमत बाजारों में नहीं मिल पा रही है.
कोरोना संकट काल में हर वर्ग चिंतित भी है और परेशान भी. देश के नागरिकों का पेट भरने वाला किसान आज खुद भूखा है. उसे सरकार से उम्मीद है कि वह उसकी सुध लेंगे और कुछ राहत देंगे.