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63 साल से रिसर्च में नए आयाम गढ़ रहा IIP देहरादून, निदेशक अंजन रे से खास बातचीत सुनिए

63 सालों के सफर में CSIR-IIP ने संसाधनों के संवर्धन को नया आयाम दिया है. तमाम नए शोध और तकनीकों को लेकर ये संस्थान दुनियाभर में जाना जाता है. आज भी संस्थान में कई महत्वपूर्ण शोध चल रहे हैं. हमने IIP देहरादून के निदेशक अंजन रे से खास बातचीत की.

exclusive conversation with anjan Ray director dehradun iip
IIP देहरादून के निदेशक अंजन राय
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Published : Apr 15, 2022, 12:45 PM IST

Updated : Apr 15, 2022, 1:28 PM IST

देहरादून: उत्तराखण्ड देवभूमि, वीरभूमि, संस्कृति, आध्यात्म के साथ ही संस्थानों की भूमि भी है. उत्तराखंड में कई ऐसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान हैं जिनका हर कोई लोहा मानता है. देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान भी ऐसे ही संस्थानों में से एक है. 63 साल पूरे कर चुका ये संस्थान नये-नये प्रयोगों, नवाचार और अविष्कारों के लिए जाना जाता है. साथ में ही देश में प्राकृतिक संसाधनों के संवर्धन की दिशा में भी CSIR-IIP देहरादून ने कई अभूतपूर्व योगदान दिए हैं. इसके अलावा ये संस्थान नैसर्गिक सुंदरता और बायो डाइवर्सिटी का केंद्र भी है. आईआईपी देहरादून में शोध कार्य निरंतर जारी रहते हैं. इन्हीं शोध कार्यों और कैंपस की कूलनेस को लेकर ईटीवी भारत ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पेट्रोलियम के निदेशक अंजन रे से खास बातचीत की.

IIP की विकास में अहम भूमिका: ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए केंद्रीय संस्थान CSIR के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम के निदेशक डॉक्टर अंजन रे ने कहा कि इन 63 सालों में देश की प्रगति और एवं प्राकृतिक संसाधनों को उत्कृष्ट बनाने में इस तरह की प्रयोगशालाओं की एक बड़ी भूमिका रही है. उन्होंने देहरादून आईआईपी में चल रहे तमाम शोधों को प्रदर्शनी के माध्यम से हमारे साथ साझा किया. जिसमें कई ऐसे नए इन्वेंशन किए जा रहे हैं जो आने वाले हमारे भविष्य को सुरक्षित करेंगे.

IIP देहरादून के निदेशक अंजन रे

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गांवों के लिए बायोमास चूल्हा, शहरों के लिए PNG बर्नर: देहरादून आईआईपी के निदेशक डॉ अंजन रे ने बायो गैस चूल्हे के बारे में हमें बताया. जिसमें कम ईंधन में ज्यादा ऊर्जा का उत्सर्जन होता है. इसका उपयोग गांव-गांव में किया जा सकता है. जिससे कम कार्बन उत्सर्जन और कम प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के जरिए ज्यादा लाभ लिया जा सकता है. वहीं, इसके अलावा शहरी इलाकों में उपयोग किए जाने वाले डोमेस्टिक पीएनजी (पाइप्ड नेचुरल गैस ) बर्नर को लेकर भी निदेशक अंजन रे ने जानकारी दी. जिसमें खाना बनाते हुए गैस की 15 से 25 फीसदी खपत को काफी कम किया जा सकता है.

इम्प्रूव गुड़ भट्ठी में धुंआ कम और गुड़ की मिठास ज्यादा: ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने आईआईपी देहरादून में किए जा रहे तमाम अन्य शोधों के बारे में और जानकारी भी दी. डॉक्टर अंजन रे ने बताया कि हाल ही में आईआईपी लैब में एक नया शोध किया है. जिसमें गुड़ बनाने की भट्ठी को अपडेट किया गया है. इंप्रूव्ड गुड़ भट्ठी के रूप में ऐसी भट्ठी का निर्माण किया गया है, जिसमें कम से कम कार्बन का उत्सर्जन होता है. इससे पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित करने में काफी लाभ मिलता है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में 16 जगह इन इम्प्रूव गुड़ भट्ठियों को लगाया जा चुका है.

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रसोई के खराब तेल से बन रहा डीजल: वहीं, इसके अलावा उन्होंने बायोडीजल को लेकर भी जानकारी दी. इसमें खाना बनाने वाले और प्राकृतिक ऑयल से बनने वाले डीजल को कैसे प्रोसेस किया जाता है वो शामिल रहा. उन्होंने बताया कैसे हम घरों और इंडस्ट्री में वेस्ट जाने वाले तेल को एक बार फिर से इस्तेमाल करके बायोडीजल बना सकते हैं. उन्होंने कहा यह सब प्रक्रिया कहीं ना कहीं हमारे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती है. इसके अलावा उन्होंने एक नए शोध जिसमें की ड्राई आइस बनाने की प्रक्रिया को भी साझा किया के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया इस प्रक्रिया के जरिए हम सब्जियों और जरूरत के तमाम खाद्य पदार्थ को तापमान के अनुकूल वातावरण दे सकते हैं.

पढ़ें- Uttarakhand Weather Report: प्रदेश के इन पांच जनपदों में झमाझम बारिश के आसार

IIP देहरादून कैंपस के नैसर्गिक बायो डाइवर्सिटी का राज: बता दें देहरादून आईआईपी कैंपस एक ऐसा कैंपस है जहां पर अद्भुत नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलता है. इस कैंपस में जंगली पशु-पक्षी मोर, हिरण इत्यादि आसानी से देखे जा सकते हैं. ये भी आईआईपी के अथक प्रयासों के बाद संभव हुआ है. इसके लिए निदेशक अंजन राय ने बताया कि आईआईपी देहरादून के कैंपस को पूरी तरह से प्राकृतिक माहौल देने के लिए इस पूरे क्षेत्र में एक भी मोबाइल टावर नहीं लगाया गया है. ये ही वजह है कि केवल आईआईपी देहरादून कैंपस में तितलियों की 10 से ज्यादा ऐसी प्रजातियां है जो कि दुर्लभ हैं. उन्होंने बताया वह केवल अपने शोध के जरिए ही नहीं अपने जीवन में भी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का गुण स्थापित करने में इन 63 सालों में कामयाब हुए हैं, जो आगे भी जारी रहेगा.

देहरादून: उत्तराखण्ड देवभूमि, वीरभूमि, संस्कृति, आध्यात्म के साथ ही संस्थानों की भूमि भी है. उत्तराखंड में कई ऐसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान हैं जिनका हर कोई लोहा मानता है. देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान भी ऐसे ही संस्थानों में से एक है. 63 साल पूरे कर चुका ये संस्थान नये-नये प्रयोगों, नवाचार और अविष्कारों के लिए जाना जाता है. साथ में ही देश में प्राकृतिक संसाधनों के संवर्धन की दिशा में भी CSIR-IIP देहरादून ने कई अभूतपूर्व योगदान दिए हैं. इसके अलावा ये संस्थान नैसर्गिक सुंदरता और बायो डाइवर्सिटी का केंद्र भी है. आईआईपी देहरादून में शोध कार्य निरंतर जारी रहते हैं. इन्हीं शोध कार्यों और कैंपस की कूलनेस को लेकर ईटीवी भारत ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पेट्रोलियम के निदेशक अंजन रे से खास बातचीत की.

IIP की विकास में अहम भूमिका: ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए केंद्रीय संस्थान CSIR के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम के निदेशक डॉक्टर अंजन रे ने कहा कि इन 63 सालों में देश की प्रगति और एवं प्राकृतिक संसाधनों को उत्कृष्ट बनाने में इस तरह की प्रयोगशालाओं की एक बड़ी भूमिका रही है. उन्होंने देहरादून आईआईपी में चल रहे तमाम शोधों को प्रदर्शनी के माध्यम से हमारे साथ साझा किया. जिसमें कई ऐसे नए इन्वेंशन किए जा रहे हैं जो आने वाले हमारे भविष्य को सुरक्षित करेंगे.

IIP देहरादून के निदेशक अंजन रे

पढ़ें- CM धामी का साफ संदेश- घोटालों की हर हाल में होगी जांच, हरीश धामी को लेकर भी दिया जवाब
गांवों के लिए बायोमास चूल्हा, शहरों के लिए PNG बर्नर: देहरादून आईआईपी के निदेशक डॉ अंजन रे ने बायो गैस चूल्हे के बारे में हमें बताया. जिसमें कम ईंधन में ज्यादा ऊर्जा का उत्सर्जन होता है. इसका उपयोग गांव-गांव में किया जा सकता है. जिससे कम कार्बन उत्सर्जन और कम प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के जरिए ज्यादा लाभ लिया जा सकता है. वहीं, इसके अलावा शहरी इलाकों में उपयोग किए जाने वाले डोमेस्टिक पीएनजी (पाइप्ड नेचुरल गैस ) बर्नर को लेकर भी निदेशक अंजन रे ने जानकारी दी. जिसमें खाना बनाते हुए गैस की 15 से 25 फीसदी खपत को काफी कम किया जा सकता है.

इम्प्रूव गुड़ भट्ठी में धुंआ कम और गुड़ की मिठास ज्यादा: ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने आईआईपी देहरादून में किए जा रहे तमाम अन्य शोधों के बारे में और जानकारी भी दी. डॉक्टर अंजन रे ने बताया कि हाल ही में आईआईपी लैब में एक नया शोध किया है. जिसमें गुड़ बनाने की भट्ठी को अपडेट किया गया है. इंप्रूव्ड गुड़ भट्ठी के रूप में ऐसी भट्ठी का निर्माण किया गया है, जिसमें कम से कम कार्बन का उत्सर्जन होता है. इससे पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित करने में काफी लाभ मिलता है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में 16 जगह इन इम्प्रूव गुड़ भट्ठियों को लगाया जा चुका है.

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रसोई के खराब तेल से बन रहा डीजल: वहीं, इसके अलावा उन्होंने बायोडीजल को लेकर भी जानकारी दी. इसमें खाना बनाने वाले और प्राकृतिक ऑयल से बनने वाले डीजल को कैसे प्रोसेस किया जाता है वो शामिल रहा. उन्होंने बताया कैसे हम घरों और इंडस्ट्री में वेस्ट जाने वाले तेल को एक बार फिर से इस्तेमाल करके बायोडीजल बना सकते हैं. उन्होंने कहा यह सब प्रक्रिया कहीं ना कहीं हमारे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती है. इसके अलावा उन्होंने एक नए शोध जिसमें की ड्राई आइस बनाने की प्रक्रिया को भी साझा किया के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया इस प्रक्रिया के जरिए हम सब्जियों और जरूरत के तमाम खाद्य पदार्थ को तापमान के अनुकूल वातावरण दे सकते हैं.

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IIP देहरादून कैंपस के नैसर्गिक बायो डाइवर्सिटी का राज: बता दें देहरादून आईआईपी कैंपस एक ऐसा कैंपस है जहां पर अद्भुत नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलता है. इस कैंपस में जंगली पशु-पक्षी मोर, हिरण इत्यादि आसानी से देखे जा सकते हैं. ये भी आईआईपी के अथक प्रयासों के बाद संभव हुआ है. इसके लिए निदेशक अंजन राय ने बताया कि आईआईपी देहरादून के कैंपस को पूरी तरह से प्राकृतिक माहौल देने के लिए इस पूरे क्षेत्र में एक भी मोबाइल टावर नहीं लगाया गया है. ये ही वजह है कि केवल आईआईपी देहरादून कैंपस में तितलियों की 10 से ज्यादा ऐसी प्रजातियां है जो कि दुर्लभ हैं. उन्होंने बताया वह केवल अपने शोध के जरिए ही नहीं अपने जीवन में भी प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का गुण स्थापित करने में इन 63 सालों में कामयाब हुए हैं, जो आगे भी जारी रहेगा.

Last Updated : Apr 15, 2022, 1:28 PM IST
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