देहरादून: प्रदेश की खूबसूरत वादियां एक ओर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. वहीं, यहां के बाशिंदे रोजगार की तलाश में इन वादियों से मुंह फेरकर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. सरकार प्रदेश में पलायन रोकने के तमाम दावे करती है, लेकिन आज भी पलायन बड़ी समस्या बनी हुई है. पलायन रोकने के लिए 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया गया. साथ ही वर्ष 2018 में पलायन आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार के समक्ष रखी. पलायन आयोग की पहली रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2011 में पूरे प्रदेश में 1034 गांव खाली हुए थे, जबकि 2018 में ये आंकड़ा 1734 पर पहुंच गया.
राज्य के लगभग साढ़े 3 लाख से ज्यादा घर आज वीरानी का दंश झेल रहे हैं. पौड़ी में ही 300 से ज्यादा गांव खाली पड़े हुए हैं. पहाड़ में पलायन का मुख्य कारण रोजगार है, क्योंकि प्रदेश में खेती के अलावा रोजगार का कोई मुख्य साधन नहीं है. उत्तराखंड के जिन गांव में आज कोई नहीं बचा, उनको भूतिया गांव कहा जाने लगा है. इस बार पलायन आयोग ने सरकार के समक्ष पलायन को रोकने के लिए कुछ सुझाव और सिफारिश रखी है. उत्तराखंड पलायन आयोग ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट के अनुसार, अल्मोड़ा जिले से अब तक 70 हजार लोग पलायन कर चुके हैं.
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भिकियासैंण-चौखुटिया और स्याल्दे ब्लॉक में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है. वहीं, महेश्वरी की 646 पंचायतों में 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 73 फीसदी परिवारों की मासिक आय 5 हजार से कम बताई गई है. साथ ही पलायन का कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना सामने आया है. वहीं, पलायन करने वाले 42.2 फीसदी युवा में वो शामिल हैं, जिनकी उम्र 26 से 35 साल के बीच है.
पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि 2 दिन पहले सीएम ने सालाना होने वाली पलायन आयोग की बैठक ली. बैठक में पलायन आयोग ने 4 रिपोर्ट पेश की है. साथ ही आयोग जिलेवार तरीके से सरकार को सुझाव दे रहा है.
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पलायन आयोग के अनुसार, इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों से पलायन अधिक हुआ है. पौड़ी में कुछ विकासखंड ऐसे हैं, जहां से सबसे अधिक पलायन हुआ है.