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पलायन आयोग की रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा, पौड़ी और अल्मोड़ा छोड़कर जा रहे लोग

प्रदेश के पौड़ी और अल्मोड़ा में पलायन लगातार जारी है. पलायन रोकने के लिए सरकार तमाम दावे करती है, लेकिन पलायन आयोग की रिपोर्ट इन दावों की पोल खोल रही है.

पलायन आयोग की रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा.
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Published : Jun 23, 2019, 8:43 PM IST

देहरादून: प्रदेश की खूबसूरत वादियां एक ओर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. वहीं, यहां के बाशिंदे रोजगार की तलाश में इन वादियों से मुंह फेरकर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. सरकार प्रदेश में पलायन रोकने के तमाम दावे करती है, लेकिन आज भी पलायन बड़ी समस्या बनी हुई है. पलायन रोकने के लिए 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया गया. साथ ही वर्ष 2018 में पलायन आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार के समक्ष रखी. पलायन आयोग की पहली रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2011 में पूरे प्रदेश में 1034 गांव खाली हुए थे, जबकि 2018 में ये आंकड़ा 1734 पर पहुंच गया.

पलायन आयोग की रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा.

राज्य के लगभग साढ़े 3 लाख से ज्यादा घर आज वीरानी का दंश झेल रहे हैं. पौड़ी में ही 300 से ज्यादा गांव खाली पड़े हुए हैं. पहाड़ में पलायन का मुख्य कारण रोजगार है, क्योंकि प्रदेश में खेती के अलावा रोजगार का कोई मुख्य साधन नहीं है. उत्तराखंड के जिन गांव में आज कोई नहीं बचा, उनको भूतिया गांव कहा जाने लगा है. इस बार पलायन आयोग ने सरकार के समक्ष पलायन को रोकने के लिए कुछ सुझाव और सिफारिश रखी है. उत्तराखंड पलायन आयोग ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट के अनुसार, अल्मोड़ा जिले से अब तक 70 हजार लोग पलायन कर चुके हैं.

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भिकियासैंण-चौखुटिया और स्याल्दे ब्लॉक में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है. वहीं, महेश्वरी की 646 पंचायतों में 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 73 फीसदी परिवारों की मासिक आय 5 हजार से कम बताई गई है. साथ ही पलायन का कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना सामने आया है. वहीं, पलायन करने वाले 42.2 फीसदी युवा में वो शामिल हैं, जिनकी उम्र 26 से 35 साल के बीच है.
पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि 2 दिन पहले सीएम ने सालाना होने वाली पलायन आयोग की बैठक ली. बैठक में पलायन आयोग ने 4 रिपोर्ट पेश की है. साथ ही आयोग जिलेवार तरीके से सरकार को सुझाव दे रहा है.

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पलायन आयोग के अनुसार, इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों से पलायन अधिक हुआ है. पौड़ी में कुछ विकासखंड ऐसे हैं, जहां से सबसे अधिक पलायन हुआ है.

देहरादून: प्रदेश की खूबसूरत वादियां एक ओर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. वहीं, यहां के बाशिंदे रोजगार की तलाश में इन वादियों से मुंह फेरकर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. सरकार प्रदेश में पलायन रोकने के तमाम दावे करती है, लेकिन आज भी पलायन बड़ी समस्या बनी हुई है. पलायन रोकने के लिए 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया गया. साथ ही वर्ष 2018 में पलायन आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार के समक्ष रखी. पलायन आयोग की पहली रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2011 में पूरे प्रदेश में 1034 गांव खाली हुए थे, जबकि 2018 में ये आंकड़ा 1734 पर पहुंच गया.

पलायन आयोग की रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा.

राज्य के लगभग साढ़े 3 लाख से ज्यादा घर आज वीरानी का दंश झेल रहे हैं. पौड़ी में ही 300 से ज्यादा गांव खाली पड़े हुए हैं. पहाड़ में पलायन का मुख्य कारण रोजगार है, क्योंकि प्रदेश में खेती के अलावा रोजगार का कोई मुख्य साधन नहीं है. उत्तराखंड के जिन गांव में आज कोई नहीं बचा, उनको भूतिया गांव कहा जाने लगा है. इस बार पलायन आयोग ने सरकार के समक्ष पलायन को रोकने के लिए कुछ सुझाव और सिफारिश रखी है. उत्तराखंड पलायन आयोग ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट के अनुसार, अल्मोड़ा जिले से अब तक 70 हजार लोग पलायन कर चुके हैं.

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भिकियासैंण-चौखुटिया और स्याल्दे ब्लॉक में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है. वहीं, महेश्वरी की 646 पंचायतों में 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 73 फीसदी परिवारों की मासिक आय 5 हजार से कम बताई गई है. साथ ही पलायन का कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव होना सामने आया है. वहीं, पलायन करने वाले 42.2 फीसदी युवा में वो शामिल हैं, जिनकी उम्र 26 से 35 साल के बीच है.
पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि 2 दिन पहले सीएम ने सालाना होने वाली पलायन आयोग की बैठक ली. बैठक में पलायन आयोग ने 4 रिपोर्ट पेश की है. साथ ही आयोग जिलेवार तरीके से सरकार को सुझाव दे रहा है.

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पलायन आयोग के अनुसार, इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों से पलायन अधिक हुआ है. पौड़ी में कुछ विकासखंड ऐसे हैं, जहां से सबसे अधिक पलायन हुआ है.

Intro:उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या बन चुकी है जब से उत्तराखंड अपने अस्तित्व में आया तब से उत्तराखंड में पलायन लगातार बढ़ रहा है। सरकार आई गई पर पलायन ज्यों का त्यों है आलम यह है कि उत्तराखंड के अधिकतर गांव खाली होकर खंडहर बन चुकी है।वर्तमान राज्य ने वर्ष 2017 में पलायन रोकने के लिए 17 सितंबर को पलायन आयोग का गठन किया था।और वर्ष 2018 में पलायन आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट सरकार के समक्ष रखी जिसके बाद पलायन आयोग की दूसरी रिपोर्ट सरकार के सामने रखी है जिसमें सुझाव दिए गए हैं।वर्ष 2018 में प्लेन आयोग की पहली रिपोर्ट की आखिरी चुकाने वाली थी जो पलायन पर सरकारों की नीतियों को कटघरे में खड़ा करती है। पलायन आयोग की पहली रिपोर्ट में बताया गया कि 2011 उत्तराखंड में 1034 गांव खाली थे।जो 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके थे।


Body:उत्तराखंड राज्य के लगभग साढे तीन लाख से ज्यादा घरों में कोई नहीं रहता अकेले पौड़ी में 300 से ज्यादा गांव खाली पड़े हैं। पहाड़ में पलायन का मुख्य कारण रोजगार रोजगार के नाम पर उत्तराखंड के पहाड़ों पर कुछ भी नहीं है जिसके कारण युवा बड़े शहर की ओर रुख कर रहे हैं और पहाड़ के गांव भूतिया हो रहे हैं। उत्तराखंड की जिन गांव में कोई नहीं रहता उनको भूतिया गांव कहा जाता है।इस बार पलायन आयोग ने सरकार के समक्ष पलायन को रोकने के लिए कुछ सुझाव और सिफारिश रखी है। और उत्तराखंड पलायन आयोग ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने रिपोर्ट पेश की उसके मुताबिक अल्मोड़ा जिले में 70 हजार लोगों ने पलायन कर चुकी है।
भिकियासैंण- चौखुटिया और स्याल्दे ब्लॉक में सबसे ज्यादा प्लेन हुआ है महेश्वरी की 646 पंचायतों में 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं।पलायन आयोग की रिपोर्ट में 73 फीसदी परिवारों की मासिक आय 5 हज़ार से कम बताई गई है। वही पलायन आयोग के मुताबिक मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन हो रहा है।पर किसी भी राज्य की ताकत जिसे माना जाता है वह है युवा और उत्तराखंड में पलायन करने वालों 42.2 फीसदी युवा है,जिनकी उम्र 26 से 35 साल है।


Conclusion:पलायन आयोग के अध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि 2 दिन पहले सीएम ने पलायन आयोग की बैठक ली थी।क्योंकि साल में एक बार पलायन आयोग की बैठक आयोजित की जाती है।बैठक में पलायन आयोग ने 4 रिपोर्ट पेश की है।पहली रिपोर्ट में पिछले साल दी गई रिपोर्ट में कई पलायन की स्थिति क्या है।उसके बाद जिलेवार हम सरकार को सुझाव दे रहे है कि पौड़ी जिले में पलायन रोकने के सुझाव दिए है और दो दिन पहले दी गई रिपोर्ट में अल्मोड़ा जिले में पलायन को कम करने के लिए क्या सुझाव दिए गए है की किन विकासखण्डों में कृषि बढ़ सकती है,कहा पर होम स्टे चल रहे है होम स्टे को मजबूत किया जाए।और हमारे सुझाव देने के बाद अब शासन को काम करना है।पलायन आयोग की मानें तो इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिले में पलायन अधिक हुआ है।ओर पौड़ी में कुछ विकासखंड ऐसे है जहाँ पलायन अधिक है वही अल्मोड़ा में भी कुछ विकास खंड है जहाँ पलायन हुआ है।और जहाँ पलायन हुआ है वहाँ पर सरकार को सुझाव दिया जा रहा है कि इन विकासखण्डों पर फोकस करनी की आवश्यकता है।

बाइट-एसएस नेगी(अध्यक्ष, पलायन आयोग)
बहरहाल उत्तराखंड में पलायन की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। ना पहाड़ों में रोजगार है और ना उपजाऊ जमीन।वहीं सरकारें एक दूसरे को कोसने से फुर्सत हो तो कोई पहाड़ के लिए सोचे। फिलहाल पहाड़ पर पहाड़ जैसा ही जीवन लोग जीने को मजबूर है युवा अपनी रोजी-रोटी की तलाश में बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं।गांव पर गांव खाली होते जा रहे हैं और उत्तराखंड में पहाड़ लगातार खाली हो रहे।लेकिन पलायन रोकने की तमाम कोशिशें सिर्फ नाकाम दिखाई दे रही है।

बाइट ओर विसुल मेल किये है।मेल से उठाने की कृपा करें।
धन्यवाद।
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