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मुंबई के आरे में काटे गए 2500 पेड़, पर्यावरणविद् ने खड़े किए सवाल

मुंबई के आरे में 2500 पेड़ काटे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने फौरन इसपर रोक लगा दी है. मामले में गिरफ्तार हुए आरोपियों को लेकर महाराष्ट्र सरकार पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.

आर्य की घटना पर पर्यावरण विद ने रखे अपने विचार.
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Published : Oct 8, 2019, 11:37 AM IST

देहरादून: देहरादून: महाराष्ट्र के आरे में पेड़ कटने पर प्रदर्शन कर रहे लोगों की गिरफ्तारी के खिलाफ पूरे देश में आवाज उठ रही है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 2500 पेड़ कटने के बाद फौरन इस प्रोजेक्ट के तहत पेड़ काटने पर रोक लगा दी है.

देश के जाने-माने पर्यावरणविद और पदमश्री डॉ. अनिल जोशी ने महाराष्ट्र सरकार के ऊपर कई तरह के गंभीर सवाल खड़े किए हैं. साथ ही ईटीवी भारत के साथ बातचीत में उन्होंने बताया है कि इन पेड़ों के कटने से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि वन कटान को लेकर देशभर में एक बड़ा निर्णय लिया जाना चाहिए. सरकार अब पेड़ न काटे जाने को लेकर ऐसी योजना बनाए जिससे वनों या पारिस्थितिकी का नुकसान न हो. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि सरकार के पास पेड़ कटान को बचाने का विकल्प न हो तो ऐसे में न्यायपालिका ही सरकार को रास्ता दिखा सकती है.

आरे की घटना पर पर्यावरण विद ने रखे अपने विचार.

यह भी पढ़ें: चीनी मिलों की लेटलतीफी से बिगड़ सकता है किसानों का गणित, औने-पौने दामों पर बेच रहे गन्ना

पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि दुनिया में हर साल विकास के नाम पर एक लाख 50 हजार स्क्वायर किलोमीटर का वन काट दिया जाता है. साथ ही बताया कि मुंबई में काटे जा रहे पेड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने जो रोक लगाया है, उसका सम्मान करते हैं. यह विषय पूरे देश के लिए एक मुद्दा है. यही नहीं अगर उत्तराखंड की बात करे तो चारधाम की सड़कें हों या आने वाला मेट्रो प्रोजेक्ट, पर्यावरण को लेकर राष्ट्रीय बहस की जरूरत है.

वहीं, सभी मंत्रालयों को विकास के अंतर्गत होने वाले नुकसान की रेखा खींच देनी चाहिए. साथ ही उस विकास का ढांचा क्या हो यह सब मंत्रालय मिलकर तय करें. डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि किसी भी विकास कार्य का जितना जोर उस विकास कार्य में होता है, उससे 10 प्रतिशत ज्यादा जोर पर्यावरण को पहुंचाए गए नुकसान को वापस लाने में भी होना चाहिए. उन्होंने सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, आने वाले समय में यह एक गंभीर समस्या बनकर खड़ी हो सकती है.

यह भी पढ़ें: मानव तस्करीः साउथ अफ्रीका में फंसे मजदूर, उत्तराखंड के शख्स ने की विदेश मंत्रालय में शिकायत

देश में अभी भी 21 फीसदी वन बाकि हैं, जबकि नियमानुसार 33 फीसदी भूमि में वन होना चाहिए. यही नहीं अन्य राज्यों में वन क्षेत्र बेहद कम हैं. हालांकि, वनभूमि होने के बाद भी उसमें वन नहीं हैं, जिसमें सरकार को इसमें दखलअंदाजी करनी चाहिए.

देहरादून: देहरादून: महाराष्ट्र के आरे में पेड़ कटने पर प्रदर्शन कर रहे लोगों की गिरफ्तारी के खिलाफ पूरे देश में आवाज उठ रही है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने 2500 पेड़ कटने के बाद फौरन इस प्रोजेक्ट के तहत पेड़ काटने पर रोक लगा दी है.

देश के जाने-माने पर्यावरणविद और पदमश्री डॉ. अनिल जोशी ने महाराष्ट्र सरकार के ऊपर कई तरह के गंभीर सवाल खड़े किए हैं. साथ ही ईटीवी भारत के साथ बातचीत में उन्होंने बताया है कि इन पेड़ों के कटने से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि वन कटान को लेकर देशभर में एक बड़ा निर्णय लिया जाना चाहिए. सरकार अब पेड़ न काटे जाने को लेकर ऐसी योजना बनाए जिससे वनों या पारिस्थितिकी का नुकसान न हो. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि सरकार के पास पेड़ कटान को बचाने का विकल्प न हो तो ऐसे में न्यायपालिका ही सरकार को रास्ता दिखा सकती है.

आरे की घटना पर पर्यावरण विद ने रखे अपने विचार.

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पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि दुनिया में हर साल विकास के नाम पर एक लाख 50 हजार स्क्वायर किलोमीटर का वन काट दिया जाता है. साथ ही बताया कि मुंबई में काटे जा रहे पेड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने जो रोक लगाया है, उसका सम्मान करते हैं. यह विषय पूरे देश के लिए एक मुद्दा है. यही नहीं अगर उत्तराखंड की बात करे तो चारधाम की सड़कें हों या आने वाला मेट्रो प्रोजेक्ट, पर्यावरण को लेकर राष्ट्रीय बहस की जरूरत है.

वहीं, सभी मंत्रालयों को विकास के अंतर्गत होने वाले नुकसान की रेखा खींच देनी चाहिए. साथ ही उस विकास का ढांचा क्या हो यह सब मंत्रालय मिलकर तय करें. डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि किसी भी विकास कार्य का जितना जोर उस विकास कार्य में होता है, उससे 10 प्रतिशत ज्यादा जोर पर्यावरण को पहुंचाए गए नुकसान को वापस लाने में भी होना चाहिए. उन्होंने सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, आने वाले समय में यह एक गंभीर समस्या बनकर खड़ी हो सकती है.

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देश में अभी भी 21 फीसदी वन बाकि हैं, जबकि नियमानुसार 33 फीसदी भूमि में वन होना चाहिए. यही नहीं अन्य राज्यों में वन क्षेत्र बेहद कम हैं. हालांकि, वनभूमि होने के बाद भी उसमें वन नहीं हैं, जिसमें सरकार को इसमें दखलअंदाजी करनी चाहिए.

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महाराष्ट्र के आर्य में पेड़ कटने के बाद गिरफ्तार हुए लोगों को लेकर आज पूरे देश में आवाज उठ रही है हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2500 पेड़ कटने के बाद फॉरेन इस प्रोजेक्ट के तहत पेड़ काटने पर रोक लगा दी है। लेकिन अब सरकार के इस फरमान पर पर्यावरणविद सवाल खड़े कर रहे हैं। देश के जाने-माने पर्यावरणविद् और पदमश्री डॉ अनिल जोशी ने महाराष्ट्र सरकार के ऊपर कई तरह के गंभीर सवाल तो खड़े किए ही हैं साथ ही ईटीवी भारत के साथ बातचीत में उन्होंने बताया है कि इन पेड़ों के कटने से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचेगा।


Body:वही पर्यावरण विद्द डॉ अनिल जोशी ने बताया कि सारी दुनिया में हर साल एक लाख 50 हज़ार स्क्वायर किलोमीटर का वन काट दिया जाता है वो भी विकास के नाम पर। यही नही हालात इतने गंभीर हो चुके हैं की इसके बराबर जो वनीकरण का काम होना चाहिए वह मात्र कागजों तक ही सीमित है। और वनों का दोबारा पनपना एक चुनौती भी है। क्योकि जिस तरह से जलवायु परिवर्तन मिट्टी में नमी और पारिस्थितिकी है परिवर्तन यह सब वनों के दोबारा पनपने में बाधक हो चुके हैं। लिहाजा किसी भी तरह का वन कटान दुनिया के लिए एक बड़ा घातक होगा।

वन कटान को लेकर दुनिया में एक बड़ा निर्णय लिया जाना चाहिए। कि विकास का संतुलन तय करें। क्योकि अगर विकास के लिए पर्यावरण और पारिस्थितिकी को एक-एक करके बली चाहते रहें तो ये विकास ही दूसरे रूप में हमारे गले पड़ जायेगा। इसलिए अब वह समय आ गया है कि किसी भी योजना में, जो विकास में यह तय करें की वनों या पारिस्थितिकी का नुकसान ना हो। और अगर विकास से वनों या पारिस्थितिकी पर नुकसान होता है तो विकास में इसकी हिस्सेदारी भी होनी चाहिए।

साथ ही बताया कि मुंबई में काटे जा रहे पेड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने जो रोक लगाया है उस निर्णय का सम्मान करते है। कि जब सरकारों के पास विकल्प ना दिखता हो और वह पारिस्थितिकी और पर्यावरण के प्रति गंभीर ना हो तो ऐसे में न्यायपालिका ही है जो सरकार को रास्ता दिखा सकती है। और यह विषय पूरे देश के लिए एक मुद्दा है। यही नही अगर उत्तराखंड की बात करे तो चारधाम की सड़कें हो या आने वाले मेट्रो प्रोजेक्ट हो। इसलिए पर्यावरण को लेकर राष्ट्रीय बहस करने की जरूरत है।

सभी मंत्रालयों को बैठकर निर्णय लेना चाहिए की विकास की एक लाइन खींच दे कि इसके बाद पारिस्थितिकी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और उस विकास का ढांचा क्या हो यह सब मंत्रालय मिलकर तय करें। साथ ही किसी भी विकास कार्य का जितना जोर उस विकास कार्य में होता है उससे 10% ज्यादा जोर इस काम पर हो कि अगर उस क्षेत्र के पारिस्थितिकी को किसी कारण से छेड़ रहे हैं तो उसके वापसी की कौन सी तैयारी है। यही नहीं इसको लेकर पब्लिक को भी भागीदार बनाना चाहिए।

जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा आने वाले समय मे एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। और कहीं पर जान बच सकती है तो सिर्फ इसी बात से बच सकती है कि वनों को उनके पुनर्वासी के रास्ते तैयार करें। क्योंकि देश में अभी भी 21 फीसदी वन है, जबकि नियमानुसार 33 फीसदी भूमि में वन होना चाहिए। यही नहीं अन्य राज्यों में वन क्षेत्र बेहद कम है। क्योंकि प्रकृति के साथ बेईमानी कर रहे हैं हालांकि वनभूमि तो ले ली लेकिन उसमें वन नहीं है। जिसमें सरकारों और केंद्र सरकार को इसमें दखलअंदाजी करनी चाहिए।




Conclusion:साथ ही बताया कि मुंबई के लोगों की कही नींद टूटी है, तो वो दो कारणों से ही समझ आयी होगी क्योंकि जो मुंबई हर साल पानी से डूब जाता है। लिहाजा परिस्थितिकी और पर्यावरण को समझ गए है। और मुंबई जैसे शहर पढ़े लिखे लोगो का है और फाइनेंसियल कैपिटल है। और अगर मुंबई के लोगो के जहन में को पर्यावरण को लेकर बात आती है तो उन्हें गंभीरता के साथ एक बात और सोच लेनी चाहिए। क्योकि ये देश बहुत बड़ा है। और जो हिमालय राज्य है जहाँ वन पनपते है उसकी भी चिंता करनी चाहिए। कि आज अगर मुंबई के हिस्से में हवा, पानी, मिट्टी का रहा है वो हिमालय राज्य की देन है।

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