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ग्राउंड रिपोर्टः चमचमाती राजधानी में अंधेरी जिंदगी, मलिन बस्तियां बिगाड़ न दे नेताओं का खेल - चुनावी खबर

एक सर्वे के अनुसार प्रदेश भर में 582 मलिन बस्तियां है. जिसमें लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं.

चुनाव बहिष्कार का एलान किया
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Published : Mar 13, 2019, 9:07 PM IST

Updated : Mar 13, 2019, 11:02 PM IST

देहरादून: चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों को आम जनता की याद आने लगती है. चुनाव के वक्त ये नेता उन गलियों का भी रुख करना शुरू कर देते हैं, जहां चुनाव से पहले कभी वो कदम रखना तक जरूरी नहीं समझते. हम बात कर रहे हैं मलिन बस्तियों की, जहां रहने वाले लोग एक ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जो जिंदगी कहने लायक नहीं है.

चुनाव बहिष्कार का एलान किया

पढ़ें-चैंपियन के प्रवासी वाले बयान पर निशंक का पलटवार, खुद को बताया उत्तराखंड का बेटा

बता दें कि एक सर्वे के अनुसार प्रदेश भर में 582 मलिन बस्तियां है. जिसमें लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. ऐसे में यह बस्तियां राजनेताओं के लिए किसी बड़े वोट बैंक से कम नहीं है. यही कारण है कि चुनाव नजदीक आते ही राजनेता इन बस्तियों का रुख करना शुरू कर देते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद इन बस्तियों की ओर झांकने तक की जहमत नहीं उठाते. यह हम नहीं कह रहे हैं यह कहना है मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का.

सूबे की राजधानी देहरादून में भी कई मलिन बस्तियां हैं. ईटीवी भारत की टीम जब देहरादून की कुछ मलिन बस्तियों का जायजा लेने पहुंची तो यहां स्थिति बद से बदतर मिली. बिंदाल और रिस्पना नदी किनारे बसी मलिन बस्तियों में लोग कूड़े के ढेर के बीच रहते नज़र आये. देहरादून की अन्य मलिन बस्तियों को हाल भी कुछ ऐसा है, जहां न तो पीने को स्वच्छ पानी और न ही घर को रोशन के लिए बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं.

इन बस्तीवासियों का कहना है कि एक सामान्य नागरिक की तरह उनके पास आधार कार्ड, पहचान पत्र सब कुछ है, फिर भी उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है. पांच साल बाद बस्ती के इन गरीबों लोगों को भी अपना गुस्सा दिखाने का मौका मिला है. इस बार उन्होंने निर्णय किया है कि उनके घरों तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची तो वह वोट नहीं देंगे और चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे.

हमेशा सत्ता और विपक्ष की राजनीति का शिकार होते इन लोगों को क्या इस बार मूलभूत सुविधाएं मिल पाएंगी ये तो आने वक्त ही बताएगा, लेकिन चुनाव बहिष्कार का एलान करके उन्होंने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश जरूर की है.

देहरादून: चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों को आम जनता की याद आने लगती है. चुनाव के वक्त ये नेता उन गलियों का भी रुख करना शुरू कर देते हैं, जहां चुनाव से पहले कभी वो कदम रखना तक जरूरी नहीं समझते. हम बात कर रहे हैं मलिन बस्तियों की, जहां रहने वाले लोग एक ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जो जिंदगी कहने लायक नहीं है.

चुनाव बहिष्कार का एलान किया

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बता दें कि एक सर्वे के अनुसार प्रदेश भर में 582 मलिन बस्तियां है. जिसमें लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. ऐसे में यह बस्तियां राजनेताओं के लिए किसी बड़े वोट बैंक से कम नहीं है. यही कारण है कि चुनाव नजदीक आते ही राजनेता इन बस्तियों का रुख करना शुरू कर देते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद इन बस्तियों की ओर झांकने तक की जहमत नहीं उठाते. यह हम नहीं कह रहे हैं यह कहना है मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का.

सूबे की राजधानी देहरादून में भी कई मलिन बस्तियां हैं. ईटीवी भारत की टीम जब देहरादून की कुछ मलिन बस्तियों का जायजा लेने पहुंची तो यहां स्थिति बद से बदतर मिली. बिंदाल और रिस्पना नदी किनारे बसी मलिन बस्तियों में लोग कूड़े के ढेर के बीच रहते नज़र आये. देहरादून की अन्य मलिन बस्तियों को हाल भी कुछ ऐसा है, जहां न तो पीने को स्वच्छ पानी और न ही घर को रोशन के लिए बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं.

इन बस्तीवासियों का कहना है कि एक सामान्य नागरिक की तरह उनके पास आधार कार्ड, पहचान पत्र सब कुछ है, फिर भी उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है. पांच साल बाद बस्ती के इन गरीबों लोगों को भी अपना गुस्सा दिखाने का मौका मिला है. इस बार उन्होंने निर्णय किया है कि उनके घरों तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची तो वह वोट नहीं देंगे और चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे.

हमेशा सत्ता और विपक्ष की राजनीति का शिकार होते इन लोगों को क्या इस बार मूलभूत सुविधाएं मिल पाएंगी ये तो आने वक्त ही बताएगा, लेकिन चुनाव बहिष्कार का एलान करके उन्होंने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश जरूर की है.

Intro:देहरादून- चुनाव का समय नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों को आम जनता की याद आने लगती है । ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता उन गलियों का भी रुख करना शुरू कर देते हैं जहां चुनाव से पहले कभी वो कदम रखना तक जरूरी नहीं समझते । यहां हम बात कर रहे हैं प्रदेश की मलिन बस्तियों की जहां रहने वाले लोग एक ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जो जिंदगी कहने लायक नहीं है।


Body:बता दें कि एक सर्वे के अनुसार प्रदेश भर में 582 मलिन बस्तियां है जिसमें लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। ऐसे में यह बस्तियां राजनेताओं के लिए किसी बड़े वोट बैंक से कम नहीं है यही कारण है कि चुनाव नजदीक आते ही राजनेता इन बस्तियों का रुख करना शुरू कर देते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद इन बस्तियों की ओर झांकने तक की जहमत नही उठाते । यह हम नहीं कह रहे हैं यह कहना है मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का।

सूबे की राजधानी देहरादून में भी कई मलिन बस्तियां मौजूद है। ईटीवी भारत की टीम जब देहरादून की कुछ मलिन बस्तियों का जायजा लेने पहुंची तो यहां स्थिति बद से बदतर थी । बिंदाल और रिस्पना नदी किनारे बसी मलिन बस्तियों में जहां लोग कूड़े के ढेर के बीच रहते नज़र आये । वहीं राजधानी के अन्य इलाकों की कुछ बस्तियां हमे ऐसी भी मिली जहां अब तक बिजली पानी जैसी मूल-भूत सुविधाएं नहीं पहुँच पाई है। ऐसे में इन बस्तियों में रहने वाले गरीब लोगों में राजनेताओं के खिलाफ खासा रोष है इन बस्ती वासियों का साफ शब्दों में कहना है कि एक सामान्य नागरिक की तरह उनके पास आधार कार्ड, पहचान पत्र सब कुछ है । लेकिन इसके बावजूद उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है । राजनेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ही उनकी याद आती है ।इसके बाद कोई भी नेता उनकी सुध लेने तक नहीं आता । ऐसे में यदि इस बार के आम चुनाव में नेता उनके घरों तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंचाते तो वह वोट नही देंगे और चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे।

बाइट- बस्तीवासी
बाइट- राजकुमार कांग्रेस पूर्व विधायक


Conclusion:बरहाल एक तरफ इन मलिन बस्तियों में रहने वाली जनता बद से बदतर जिंदगी बिताने को मजबूर है। तो वहीं दूसरी तरफ यह मलिन बस्तियां राजनेताओं के लिए किसी बड़े वोट बैंक से कम नहीं है। बात चाहे सत्ताधारी दल बीजेपी की करें या विपक्षी दल कांग्रेस की सभी दलों के नेताओं को चुनाव के समय इन बस्तियों की याद जरूर आती है । यहां तक कि इन बस्तियों को मालिकाना हक देने तक का आश्वासन दिया जाता है लेकिन चुनाव संपन्न होने के बाद ही इन बस्तियों और बस्तीवासियों की याद किसी को नही आती । यदि इस बातों में सत्यता नहीं होती तो यह तस्वीरें आप के सामने नहीं होती जो हम अपने कैमरे के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

Last Updated : Mar 13, 2019, 11:02 PM IST
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