देहरादून: चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों को आम जनता की याद आने लगती है. चुनाव के वक्त ये नेता उन गलियों का भी रुख करना शुरू कर देते हैं, जहां चुनाव से पहले कभी वो कदम रखना तक जरूरी नहीं समझते. हम बात कर रहे हैं मलिन बस्तियों की, जहां रहने वाले लोग एक ऐसी जिंदगी जी रहे हैं जो जिंदगी कहने लायक नहीं है.
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बता दें कि एक सर्वे के अनुसार प्रदेश भर में 582 मलिन बस्तियां है. जिसमें लगभग 15 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. ऐसे में यह बस्तियां राजनेताओं के लिए किसी बड़े वोट बैंक से कम नहीं है. यही कारण है कि चुनाव नजदीक आते ही राजनेता इन बस्तियों का रुख करना शुरू कर देते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद इन बस्तियों की ओर झांकने तक की जहमत नहीं उठाते. यह हम नहीं कह रहे हैं यह कहना है मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का.
सूबे की राजधानी देहरादून में भी कई मलिन बस्तियां हैं. ईटीवी भारत की टीम जब देहरादून की कुछ मलिन बस्तियों का जायजा लेने पहुंची तो यहां स्थिति बद से बदतर मिली. बिंदाल और रिस्पना नदी किनारे बसी मलिन बस्तियों में लोग कूड़े के ढेर के बीच रहते नज़र आये. देहरादून की अन्य मलिन बस्तियों को हाल भी कुछ ऐसा है, जहां न तो पीने को स्वच्छ पानी और न ही घर को रोशन के लिए बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं.
इन बस्तीवासियों का कहना है कि एक सामान्य नागरिक की तरह उनके पास आधार कार्ड, पहचान पत्र सब कुछ है, फिर भी उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है. पांच साल बाद बस्ती के इन गरीबों लोगों को भी अपना गुस्सा दिखाने का मौका मिला है. इस बार उन्होंने निर्णय किया है कि उनके घरों तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची तो वह वोट नहीं देंगे और चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे.
हमेशा सत्ता और विपक्ष की राजनीति का शिकार होते इन लोगों को क्या इस बार मूलभूत सुविधाएं मिल पाएंगी ये तो आने वक्त ही बताएगा, लेकिन चुनाव बहिष्कार का एलान करके उन्होंने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश जरूर की है.