देहरादून: रक्षाबंधन के पर्व के साथ ही देश में त्योहारी सीजन की शुरुआत हो चुकी है. आगामी 22 अगस्त को देशभर में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा. इस बार अन्य त्योहारों की तरह गणेश चतुर्थी के पर्व पर भी कोरोना संकट का असर साफ देखा जा सकता है.
बता दें, हर साल की तरह इस साल भी राजधानी के चकराता रोड के किनारे गणपति बप्पा की 1 फीट से लेकर 12 फीट तक कि मूर्तियों की बाजार सज गई है. आकार के आधार पर ये मूर्तियां 200 रुपये से शुरू होकर 3 हजार रुपये तक में बेची जा रही हैं. बीते सालों की तुलना में इस साल कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच ग्राहकों की संख्या में भारी कमी है.
स्थानीय मूर्ति कारोबारियों ने ईटीवी भारत से अपना दर्द साझा किया. कारोबारियों ने बताया कि कोरोना संकट की वजह से इस साल मूर्तियों की बिक्री कम हो रही है. हालांकि, गणेश चतुर्थी पर उन्हें उम्मीद है कि वो अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कुछ कमा सकेंगे. मूर्ति कारोबारियों ने बताया कि एक तो कोरोना और मानसून की मार तो वहीं दूसरी तरफ पुलिसकर्मी उन्हें सड़क किनारे मूर्तियां बेचने से रोक रहे हैं. ऐसे में वो यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर वह इन मूर्तियों को कैसे और कहां जा कर बेचें ?
वहीं, कोरोना काल में इस बार गणेश चतुर्थी के भव्य कार्यक्रमों पर भी पूर्ण प्रतिबंध है, जिसकी वजह से गणेश चतुर्थी का पर्व धूमधाम से मनाने वाले विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग खासे मायूस हैं. राजधानी देहरादून के धमावाला बाजार में पिछले 13 साल से गणेश उत्सव का आयोजन कर रहे श्रीगणेश उत्सव मंडल के उपाध्यक्ष संतोष माणे ने बताया कि कोरोना के खतरे के बीच ऐसा पहली बार हो रहा है, जब शासन-प्रशासन की ओर से गणेश उत्सव पर भव्य कार्यक्रमों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है.
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संतोष माणे ने कहा कि कोरोना के खतरे को समझते हुए वो चाहते हैं कि जिला प्रशासन उन्हें गणेश चतुर्थी पर महज 3 दिन के लिए सादगी के साथ बप्पा की मूर्ति स्थापित करने की इजाजत दे. इसके लिए उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट को पत्र भी लिखा है. ऐसे में अगर सिटी मजिस्ट्रेट की ओर से इजाजत दी जाती है तभी वह बप्पा की मूर्ति स्थापित कर सकेंगे.