नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच)-74 के चौड़ीकरण के कथित मुआवजा घोटाले के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21.96 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क की है. धन शोधन रोकथाम कानून के तहत यह कार्रवाई की गई है. ईडी ने मगंलवार को इसकी जानकारी दी.
ईडी ने बताया कि संपत्ति कुर्क करने का अंतरिम आदेश धन शोधन अधिनियम रोकथाम (पीएमएलए) के तहत जारी किया गया है. कुर्क की गई संपत्ति विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारियों, भूमि मालिकों, किसानों और बिचौलियों की है.
पढ़ें- पूर्व CM खंडूड़ी और बहुगुणा को बचाने के लिए सरकार ला सकती है विधेयक
इन संपत्तियों में कृषि, औद्योगिक भूमि, व्यावसायिक भूमि और उत्तराखंड के देहरादून व उधम सिंह नगर जिलों के अलावा यूपी के रामपुर जिले की इमारतें शामिल हैं. ईडी ने बताया कि 11 बैंक खातों में जमा राशि और म्यूचुअल फंड भी जब्त किये गए हैं.
ईडी के मुताबिक उत्तराखंड पुलिस ने राजस्व अधिकारी दिनेश प्रताप सिंह, किसान और बिचौलिये के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी और आरोप पत्र दायर किया था. जिसके आधार पर निदेशालय ने कार्रवाई की.
भूमि अधिग्रहण करने के दौरान दिनेश प्रताप और अनिल शुक्ला मुख्य अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे. उन्होंने अन्य नौकरशाहों, किसानों और बिचौलियो के साथ मिलकर कृषि भूमि का मुआवजा गैर कृषि भूमि दर पर देकर सरकारी धन की हेराफेरी की. ईडी के मुताबिक गैर कृषि भूमि की दर कृषि भूमि से काफी ज्यादा होती है. इससे सरकार को 215.11 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है.
पढ़ें- ऋषिकेश: आउटसोर्सिंग कंपनी पर लगा घोटाले का आरोप, नगर आयुक्त ने की जांच शुरू
क्या है एनएच-74 घोटाला?
उत्तराखंड में पूर्व की हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में उधम सिंह नगर जिले में एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण में बांटी गई मुआवजे की राशि में 300 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. राष्ट्रीय राजमार्ग 74 उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के पास स्थित नगीना से शुरू होकर उत्तराखंड के काशीपुर इलाके में खत्म होता है. इसकी कुल लंबाई 333 किलोमीटर है. एनएच-74 भूमि मुआवजा घोटाले में कृषि योग्य भूमि को अकृषि भूमि में दिखाकर जसपुर, काशीपुर, सितारगंज और बाजपुर के कई किसानों ने अधिकारियों के भीलीभगत से दस से लेकर 20 गुना तक अधिक मुआवजा ले लिया था.
इस मामले में वर्तमान बीजेपी सरकार ने एसआईटी जांच के आदेश भी दिए थे. जांच के बाद एसआईटी ने कई किसानों को गिरफ्तार किया था. इस मामले में दो आईपीएस अधिकारियों को भी निलंबित किया गया था. हालांकि बाद में दोनों को बहाल कर दिया गया था.