मसूरी: जौनपुर विकासखंड के ठक्कर कुदाऊं गांव में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक दुबड़ी त्योहार शुक्रवार देर रात धूमधाम के साथ मनाया गया. इस दौरान ग्रामीण पारम्परिक वेशभूषा और वाद्ययंत्र ढोल, दमाऊं के साथ नजर आए. साथ ही ग्रामीणों ने लोकगीतों पर जमकर नृत्य किया. ग्रामीणों ने इस त्योहार को मनाते हुए अगले साल भी अच्छी फसल की कामना की.
सामजिक कार्यकर्ता संजय गुसाईं ने बताया कि यमुनाघाटी और जौनपुर क्षेत्र अपनी अनूठी संस्कृति और रीति-रिवाजों के लिए पूरे प्रदेश में जाना जाता है. भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला दुबड़ी त्योहार भी जौनपुर का पौराणिक त्योहार है. इसी त्योहार के पश्चात ही अन्य सभी त्योहारों का आगमन होता है.
मान्यता है कि जौनपुर के कुछ ही गांव में दुबड़ी का त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि दुबड़ी के त्योहार के दिन जिस गांव में कन्या का जन्म होता है वहां भी दुबड़ी का त्योहार मनाने की परम्परा शुरू हो जाती है.
दुबड़ी के त्योहार को मनाने की तैयारी स्वच्छता अभियान से शुरू होती है. साथ ही दुबड़ी से एक दिन पूर्व गांव की सभी महिलाएं अपने घरों, आंगनों, पंचायती चौक और रास्तों की सामूहिक रूप से साफ सफाई करते हैं. गांव के पुरुष और बच्चे खेतों से फसलें उखाड़कर एक बड़ा गट्ठर बनाते हैं. फिर उन फसलों के गट्ठर को एक मीटर गहरे खड्ढे में दबा दिया जाता है. इसी को स्थानीय भाषा में दुबड़ी कहा जाता है.
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दुबड़ी के त्योहार के दिन स्थानीय अनाज झंगोरा और कोणी के आटे को पीसकर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती हैं. यह दुबड़ी त्योहार का विशेष पकवान होता है, जिसे खांड (चीनी का बूरा) और शुद्ध घी के साथ प्रसाद के रूप में खाया जाता है. सभी लोग एक दूसरे को ककड़ी और मक्का भेंट करते हैं.
दुबड़ी त्योहार के दिन खेतों में लगी फसलों को उखाड़कर हवा में उछाला जाता है. साथ ही कामना की जाती है कि अगले वर्ष भी अच्छी फसल हो. पूरी रात नाच गाने के साथ अगले दिन सुबह मेहमानों की पौणाई ( सत्कार) किया जाता है.