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देहरादून से कुछ किलोमीटर दूर बसे इस गांव में पेयजल संकट, मटमैला पानी पीने को मजबूर ग्रामीण - polluted water

राजधानी देहरादून से मात्र 30 किलोमीटर दूर टिहरी जनपद के कोक्लियाल गांव में जाकर पेयजल की स्थिति को जानने की कोशिश की. तो हालत सरकारी दावों के बिल्कुल उलट मिले.

मटमैला पानी पीने को मजबूर ग्रामीण.
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Published : Jun 28, 2019, 2:25 PM IST

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां सालभर पानी की समस्या बनी रहती है. अलबत्ता जहां पेयजल और जल संस्थान की योजनाएं मौजूद है वहां भी दूषित पानी सप्लाई हो रहा है. वहीं, विभाग के उदासीन रवैये से लोग दूषित पानी पीने को मजबूर है. दूषित पानी पीने से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है.

लोग दूषित पानी पीने को मजबूर.

ईटीवी भारत संवाददाता ने जब राजधानी देहरादून से मात्र 30 किलोमीटर दूर टिहरी जनपद के कोक्लियाल गांव में जाकर पेयजल की स्थिति को जानने की कोशिश की. तो हालत सरकारी दावों के बिल्कुल उलट मिले. इस गांव में जो पेयजल की स्थिति है वो बेहद चौंकाने वाली है. कुछ हिस्से में पुरानी पेयजल लाइन तो मिली लेकिन उनमें पीने का पानी नहीं है. यहां तक की क्षेत्र में लगे हैंडपंप से मटमैला पानी निकल रहा है. शुद्ध पेयजल की आपूर्ति न होने के चलते लोग हैंडपंप के दूषित पानी को पीने को मजबूर हैं.

जब इस बारे में होटल चलाने वाले स्थानीय दुकानदार से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे इसी पानी उपयोग करते हैं और आसपास के लोग इसी हैंडपंप का पानी पीते हैं. ये कोक्लियाल गांव की स्थिति ही नहीं, प्रदेश के कई इलाकों में कमोवेश ऐसी स्थिति देखने को मिलती है.विभाग के उदासीन रवैये के कारण लोगों को साफ पीने का पानी मयस्सर नहीं हो पा रहा है.

यही वजह है कि नीती आयोग ने भी हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में ये चिंता जाहिर की है. नीती आयोग ने साफ कहा है कि 2030 तक जिन राज्यों में पीने लायक पानी नहीं बचेगा. उनमें उत्तराखंड राज्य भी शामिल है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि विभाग कब अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लेगा और लोगों को शुद्ध पेय उपलब्ध कराएगा.

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां सालभर पानी की समस्या बनी रहती है. अलबत्ता जहां पेयजल और जल संस्थान की योजनाएं मौजूद है वहां भी दूषित पानी सप्लाई हो रहा है. वहीं, विभाग के उदासीन रवैये से लोग दूषित पानी पीने को मजबूर है. दूषित पानी पीने से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है.

लोग दूषित पानी पीने को मजबूर.

ईटीवी भारत संवाददाता ने जब राजधानी देहरादून से मात्र 30 किलोमीटर दूर टिहरी जनपद के कोक्लियाल गांव में जाकर पेयजल की स्थिति को जानने की कोशिश की. तो हालत सरकारी दावों के बिल्कुल उलट मिले. इस गांव में जो पेयजल की स्थिति है वो बेहद चौंकाने वाली है. कुछ हिस्से में पुरानी पेयजल लाइन तो मिली लेकिन उनमें पीने का पानी नहीं है. यहां तक की क्षेत्र में लगे हैंडपंप से मटमैला पानी निकल रहा है. शुद्ध पेयजल की आपूर्ति न होने के चलते लोग हैंडपंप के दूषित पानी को पीने को मजबूर हैं.

जब इस बारे में होटल चलाने वाले स्थानीय दुकानदार से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे इसी पानी उपयोग करते हैं और आसपास के लोग इसी हैंडपंप का पानी पीते हैं. ये कोक्लियाल गांव की स्थिति ही नहीं, प्रदेश के कई इलाकों में कमोवेश ऐसी स्थिति देखने को मिलती है.विभाग के उदासीन रवैये के कारण लोगों को साफ पीने का पानी मयस्सर नहीं हो पा रहा है.

यही वजह है कि नीती आयोग ने भी हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में ये चिंता जाहिर की है. नीती आयोग ने साफ कहा है कि 2030 तक जिन राज्यों में पीने लायक पानी नहीं बचेगा. उनमें उत्तराखंड राज्य भी शामिल है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि विभाग कब अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लेगा और लोगों को शुद्ध पेय उपलब्ध कराएगा.

Intro:एंकर- उत्तराखंड में खराब पेयजल की स्थीती का जिक्र निती आयोग अपनी रिपोर्ट में भी हो चुका है और इसी चिंता की तक्सीद हमारी रियलिटी चैक की ये रिपोर्ट भी बखूबी कर रही है। मामला उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थीत टीहरी जनपद के एक पहाड़ी गांव का है जहां से तमाम तरह के स्रोत जलधार बन कर मैदानी क्षेत्रो में लोगो की प्यास बुझाते हैं लेकिन पहाड़ो पर बसे होने की वजह से यहां पेयजल के नाम पर लोग दुषित पानी को पीने के लिए मजबूर है।Body:
वीओ- उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से माल देवता होते हुए धनोल्टी वाली रोड़ पर एसे कई गांव है जहां पर हरियाली और जंगलों की भरपूर मात्रा है और यहां से सैकड़ो नदी नाले बहकर मैदानी ईलाकों की तरफ आते हैं लेकिन यहां पर बसे तमाम गांवो में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था ना होने के चलते दूषित पानी पीने के लिए मजबूर है। एसा ही एक गांव है कोक्लियाल गांव जहां गांव के कुछ हिस्से में तो पुरानी पेयजल लाइन है लेकिन कई घर और इलाकें एसे हैं जहां शुद्ध पेयजल लाइन की कोई व्यवस्था नही है। हमने जब यहां पर पानी की व्यवस्था को देखा तो लोग हैंडपंप से निकल रहे मिट्टी युक्त गंदे दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर है। संड़क पर मौजूद एक ढांबे में जब हमने इस तरह के गंदे पानी को देखा तो हमने उनसे इस बारे में सवाल किया जिस पर उन्होने कहा कि उनके साथ साथ उनकी इस ढाबे में आने वाला हर वक्ती जो कुछ भी खाता पीता है वो इसी तरह के गंदे पानी को पीने के लिए मजबूर है।

इस तरह से ना जाने कितने गांव एसे है जो इसी तरह से दूषित पानी पीकर अपने स्वास्थ्य को ताक पर रखने के लिए मजबूर है और यही वजह है कि नीती आयोग की हाल ही में आयी रिपोर्ट में ये चिंता जाहिर की गई है। नीती आयोग ने साफ कहा है कि 2030 तक जीन राज्यों में पीने लायक पानी नही बचेगा उनमें उत्तराखंड राज्य भी शामिल है। उत्तराखंड एसा राज्य है जहां से गंगा-यमुना जैसी देश की बड़ी नदियां निकल कर उत्तरप्रदेश सहित उत्तर भारत के तमाम राज्यों का गला सींचती है लेकिन उसी राज्य के उन अंचलो में जहां प्रकृति का संरक्षण होता है वहां से सैकड़ो जल धाराए निकल कर गंगां-यमुना जैसी बड़ी नदियों को जन्म देती है वहां इस तरह के हालात होना अपने आप में एक बड़ी बात है लेकिन इसके बावजूद भी सरकरा इस पर क्या कर है ये भी बड़ा सवाल है।

वाल्क थ्रौ दुषित पानीConclusion:
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