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जीवनदायिनी गंगा भी नहीं बुझा पा रही देवभूमि की प्यास, ग्रामीण आबादी के भी सूखे हलक

गर्मी की तपिश बढ़ने के साथ ही सूबे में पेयजल संकट गहराता जा रहा है. उत्तराखंड के कुल 92 छोटे बड़े नगरों में से केवल 17 शहरों में पानी की आपूर्ति ठीक-ठाक है. बाकी 75 शहरों में पेयजल की स्थिति भयावह है.

मीलों पैदल चलकर पानी ढोती महिलाएं.
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Published : Apr 27, 2019, 3:07 PM IST

Updated : Apr 27, 2019, 3:23 PM IST

देहरादून: गर्मी शुरू होते ही देश के कई हिस्सों में पानी की किल्लत होने लगती है. ऐसे में पानी की कमी से उत्तराखंड भी अछूता नहीं है. प्रदेश के कई क्षेत्रों में पानी की कमी ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा देती है. वहीं, गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री सहित उत्तराखंड में मौजूद करीब 16 हजार से ज्यादा छोटी-मोटी बयासतें पानी की समस्या झेल रही है.

मीलों पैदल चलकर पानी ढोती महिलाएं.

पेयजल की कमी से लोग रहते हैं परेशान

गर्मी की तपिश बढ़ने के साथ ही सूबे में पेयजल संकट गहराता जा रहा है. उत्तराखंड के कुल 92 छोटे बड़े नगरों में से केवल 17 शहरों में पानी की आपूर्ति ठीक-ठाक है. बाकी 75 शहरों में पेयजल की स्थिति भयावह है. प्रदेश में तापमान भी लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों के साथ ही पर्वतीय अंचलों में भी पानी की कमी होने लगी है. आने वाले कुछ दिनों में हालात और भी बदतर हो सकते हैं.

उत्तराखंड से कई नदियां निकलती है. बावजूद इसके गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री क्षेत्र में पानी की समस्या बनी रहती है. कमोवेश ऐसी स्थितियां सभी जगह हैं, जहां प्रदेश की नदियां घाटी में बहती हैं तो पहाड़ी इलाकों में पेयजल की समस्या बनी रहती है लेकिन जिस विभाग के पास पेयजल आपूर्ति का जिम्मा है वे भी समय रहते कुछ नहीं करता.

16 हजार गांवों में पेयजल का संकट

उत्तराखंड की पेयजल व्यवस्था पर अगर नजर दौड़ाएं तो उत्तराखंड में 39311 बसायतें चिन्हित हैं, जिसमें 16 हजार से ज्यादा ऐसी बसायतें हैं जहां पेयजल संकट बना हुआ है. उत्तराखंड पेयजल निगम के अनुसार, देवभूमि में 16,843 बस्तियां और कई ऐसे गांव हैं जहां राज्य गठन के बाद से ही पानी के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनी है. इन जगहों पर प्राकृतिक स्रोत ही लोगों की प्यास बुझाते हैं.


वहीं, पेयजल विभाग द्वारा 22,453 स्थानों पर प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी उपलब्ध करवाने का दावा किया जा रहा है. हालांकि, शहरी इलाकों में जहां जल संस्थान और पेयजल निगम मानकों के मुताबिक पेयजल उपलब्ध करवाने का दावा करता है. लेकिन वहां भी दिनों-दिन बढ़ती आबादी के कारण पेयजल आपूर्ति करना चुनौती बना हुआ है.

ये है पेयजल आपूर्ति की तस्वीर

  • उत्तराखंड में मौजूद कुल बस्तियां- 39,311
  • इतनी बस्तियां में है पेयजल का संकट- 16,843
  • विभाग के अनुसार इन बस्तियों में हो रही पानी की आपूर्ति- 22,453

इन जगहों में कुछ कम है समस्या

उत्तराखंड में पेयलज निगम के अनुसार, राज्य में मौजूद कुल 92 छोटे बड़े नगरों में से केवल 17 नगरों में पेयजल की व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है. जिनमें देहरादून, विकासनगर, डोईवाला, ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार, झबरेड़ा, सतपुली, श्रीनगर, भीमताल, रामनगर, नैनीताल, गुलरभोज, शक्तिनगर, कपकोट, जौंक, कुछ ऐसे छोटे बड़े नगर हैं जहां पानी के लिए लोगों को ज्यादा जूझना नहीं पड़ता. वही, 75 छोटे-बड़े नगरों में लोगों को गर्मियों में टैंकर, घोड़े-खच्चर या मीलों पैदल चलकर पानी ढोना पड़ता है.

इन क्षेत्रों में बढ़ जाती है समस्या

गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री के अलावा केदारनाथ, गैरसैंण, पौड़ी, अल्मोड़ा, मसूरी, रानीखेत, पुरोला, सेलाकुई, अगस्त्यमुनि, तिलवाड़ा, ऊखीमठ, नानकमत्ता, रुद्रपुर, बेरीनाग, गंगोलीहाट, गजा, लंबगांव, ढालवाला, मंगलौर, शिवालिकनगर, पिरान कलियर, भगवानपुर, नौगांव, चिन्यालीसौड़, बड़कोट, चंपावत, बनबसा, लोहाघाट, टनकपुर, थराली, पोखरी, नंदप्रयाग, भिकियासैंण, द्वाराहाट, कालाढूंगी कुछ एसे शहर है जहां पेयजल को लेकर लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ये समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है.

पेयजल टैंकरों की है भारी कमी

उत्तराखंड जल संस्थान के पास पूरे राज्य में 70 पानी के टैंकर उपलब्ध हैं, जहां पानी की ज्यादा समस्या बनी रहती है, वहां टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जाती है. लेकिन 13 जिलों में 70 टैंकर काफी नहीं हैं. जिसकी तस्दीक लाइन में लगे लोगों से हो जाती है. जिन्हें घंटों इंतजार करने के बावजूद भी पानी नहीं मिलता. वहीं, मैदानी क्षेत्रों में 75 ऐसे शहर हैं जहां पानी की परेशानी है. जिसमें 17 शहर ही ऐसे हैं जहां पानी की समस्या कम है.

इन राज्यों से सीखने की जरूरत

  • गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में नल से शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए डब्ल्यूएएसएमओ यानि 'राज्य जल व स्वच्छता संगठन' की स्थापना की गई है. जिसमें 3.5 करोड़ ग्रामीण आबादी को पेयजल उपलब्ध करवाया जाता है.
  • मध्य प्रदेश साल 2006 में मध्य प्रदेश के एक जिले में तालाबों को पुनर्स्थापित करने की मुहिम एक अधिकारी द्वारा शुरु की गई जिसके तहत पूरे राज्य में तकरीबन 8 हजार तालाब बनाए गए. जिससे 40 हजार हेक्टयर भूमि में पानी की किल्लत की भरपाई की गई.
  • आंध्र प्रदेश में हर क्षेत्र में मौजूद जल की सूचनाओं को एकीकृत कर एक पोर्टल के माध्यम से जन जागरुकता फैलाई गई है. 'ऑनलाइन डैशबोर्ड' योजना से वर्षा जल, ग्राउंड वाटर, जमीन की नमी, चेक डैम और तालाबों में मौजूद पानी की रियल टाइम मॉनिटरिंग की जाती है. जिससे लोगों में पानी के संचयन के प्रति जागरुकता और सरकारी मशीनरी में सक्रियता आई है.

देहरादून: गर्मी शुरू होते ही देश के कई हिस्सों में पानी की किल्लत होने लगती है. ऐसे में पानी की कमी से उत्तराखंड भी अछूता नहीं है. प्रदेश के कई क्षेत्रों में पानी की कमी ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा देती है. वहीं, गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री सहित उत्तराखंड में मौजूद करीब 16 हजार से ज्यादा छोटी-मोटी बयासतें पानी की समस्या झेल रही है.

मीलों पैदल चलकर पानी ढोती महिलाएं.

पेयजल की कमी से लोग रहते हैं परेशान

गर्मी की तपिश बढ़ने के साथ ही सूबे में पेयजल संकट गहराता जा रहा है. उत्तराखंड के कुल 92 छोटे बड़े नगरों में से केवल 17 शहरों में पानी की आपूर्ति ठीक-ठाक है. बाकी 75 शहरों में पेयजल की स्थिति भयावह है. प्रदेश में तापमान भी लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों के साथ ही पर्वतीय अंचलों में भी पानी की कमी होने लगी है. आने वाले कुछ दिनों में हालात और भी बदतर हो सकते हैं.

उत्तराखंड से कई नदियां निकलती है. बावजूद इसके गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री क्षेत्र में पानी की समस्या बनी रहती है. कमोवेश ऐसी स्थितियां सभी जगह हैं, जहां प्रदेश की नदियां घाटी में बहती हैं तो पहाड़ी इलाकों में पेयजल की समस्या बनी रहती है लेकिन जिस विभाग के पास पेयजल आपूर्ति का जिम्मा है वे भी समय रहते कुछ नहीं करता.

16 हजार गांवों में पेयजल का संकट

उत्तराखंड की पेयजल व्यवस्था पर अगर नजर दौड़ाएं तो उत्तराखंड में 39311 बसायतें चिन्हित हैं, जिसमें 16 हजार से ज्यादा ऐसी बसायतें हैं जहां पेयजल संकट बना हुआ है. उत्तराखंड पेयजल निगम के अनुसार, देवभूमि में 16,843 बस्तियां और कई ऐसे गांव हैं जहां राज्य गठन के बाद से ही पानी के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनी है. इन जगहों पर प्राकृतिक स्रोत ही लोगों की प्यास बुझाते हैं.


वहीं, पेयजल विभाग द्वारा 22,453 स्थानों पर प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी उपलब्ध करवाने का दावा किया जा रहा है. हालांकि, शहरी इलाकों में जहां जल संस्थान और पेयजल निगम मानकों के मुताबिक पेयजल उपलब्ध करवाने का दावा करता है. लेकिन वहां भी दिनों-दिन बढ़ती आबादी के कारण पेयजल आपूर्ति करना चुनौती बना हुआ है.

ये है पेयजल आपूर्ति की तस्वीर

  • उत्तराखंड में मौजूद कुल बस्तियां- 39,311
  • इतनी बस्तियां में है पेयजल का संकट- 16,843
  • विभाग के अनुसार इन बस्तियों में हो रही पानी की आपूर्ति- 22,453

इन जगहों में कुछ कम है समस्या

उत्तराखंड में पेयलज निगम के अनुसार, राज्य में मौजूद कुल 92 छोटे बड़े नगरों में से केवल 17 नगरों में पेयजल की व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही है. जिनमें देहरादून, विकासनगर, डोईवाला, ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार, झबरेड़ा, सतपुली, श्रीनगर, भीमताल, रामनगर, नैनीताल, गुलरभोज, शक्तिनगर, कपकोट, जौंक, कुछ ऐसे छोटे बड़े नगर हैं जहां पानी के लिए लोगों को ज्यादा जूझना नहीं पड़ता. वही, 75 छोटे-बड़े नगरों में लोगों को गर्मियों में टैंकर, घोड़े-खच्चर या मीलों पैदल चलकर पानी ढोना पड़ता है.

इन क्षेत्रों में बढ़ जाती है समस्या

गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री के अलावा केदारनाथ, गैरसैंण, पौड़ी, अल्मोड़ा, मसूरी, रानीखेत, पुरोला, सेलाकुई, अगस्त्यमुनि, तिलवाड़ा, ऊखीमठ, नानकमत्ता, रुद्रपुर, बेरीनाग, गंगोलीहाट, गजा, लंबगांव, ढालवाला, मंगलौर, शिवालिकनगर, पिरान कलियर, भगवानपुर, नौगांव, चिन्यालीसौड़, बड़कोट, चंपावत, बनबसा, लोहाघाट, टनकपुर, थराली, पोखरी, नंदप्रयाग, भिकियासैंण, द्वाराहाट, कालाढूंगी कुछ एसे शहर है जहां पेयजल को लेकर लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ये समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है.

पेयजल टैंकरों की है भारी कमी

उत्तराखंड जल संस्थान के पास पूरे राज्य में 70 पानी के टैंकर उपलब्ध हैं, जहां पानी की ज्यादा समस्या बनी रहती है, वहां टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जाती है. लेकिन 13 जिलों में 70 टैंकर काफी नहीं हैं. जिसकी तस्दीक लाइन में लगे लोगों से हो जाती है. जिन्हें घंटों इंतजार करने के बावजूद भी पानी नहीं मिलता. वहीं, मैदानी क्षेत्रों में 75 ऐसे शहर हैं जहां पानी की परेशानी है. जिसमें 17 शहर ही ऐसे हैं जहां पानी की समस्या कम है.

इन राज्यों से सीखने की जरूरत

  • गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में नल से शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए डब्ल्यूएएसएमओ यानि 'राज्य जल व स्वच्छता संगठन' की स्थापना की गई है. जिसमें 3.5 करोड़ ग्रामीण आबादी को पेयजल उपलब्ध करवाया जाता है.
  • मध्य प्रदेश साल 2006 में मध्य प्रदेश के एक जिले में तालाबों को पुनर्स्थापित करने की मुहिम एक अधिकारी द्वारा शुरु की गई जिसके तहत पूरे राज्य में तकरीबन 8 हजार तालाब बनाए गए. जिससे 40 हजार हेक्टयर भूमि में पानी की किल्लत की भरपाई की गई.
  • आंध्र प्रदेश में हर क्षेत्र में मौजूद जल की सूचनाओं को एकीकृत कर एक पोर्टल के माध्यम से जन जागरुकता फैलाई गई है. 'ऑनलाइन डैशबोर्ड' योजना से वर्षा जल, ग्राउंड वाटर, जमीन की नमी, चेक डैम और तालाबों में मौजूद पानी की रियल टाइम मॉनिटरिंग की जाती है. जिससे लोगों में पानी के संचयन के प्रति जागरुकता और सरकारी मशीनरी में सक्रियता आई है.
Intro:कई राज्यों का गला सींचने वाली देवभूमि का गला सूखा

Note- स्क्रिप्ट Mail से भेजी गई है। विसुअल और बाइट Mojo से भेजी गई है।


Body:कई राज्यों का गला सींचने वाली देवभूमि का गला सूखा


Conclusion:
Last Updated : Apr 27, 2019, 3:23 PM IST
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