देहरादून: उत्तराखंड में डॉप्लर वेदर रडार को लेकर लंबे समय से चली आ रही मांग अब पूरी होने जा रही है. उम्मीद है कि प्रदेश को इस साल के अंत तक 2 डॉप्लर रडार मिल जाएंगे. बता दें कि साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड में डॉप्लर रडार लगाए जाने की मांग उठती रही है. लेकिन, लेटलतीफी के चलते अब तक डॉप्लर रडार प्रदेश में नहीं लगाए जा सके हैं.
मौसम विभाग निदेशक विक्रम सिंह के अनुसार, प्रदेश में फिलहाल तीन रडार लगाए जाने हैं. जिसमें पहला रडार मुक्तेश्वर में लगाया जाएगा, दूसरे रडार के लिए सुरकंडा को चिन्हित किया गया है जबकि तीसरा रडार लैंसडाउन में लगाया जाना प्रस्तावित है.
मौसम विभाग निदेशक विक्रम सिंह ने दावा किया कि नवंबर अंत या दिसंबर प्रथम सप्ताह तक प्रदेश को 2 डॉप्लर वेदर रडार मिल जाएंगे. लैंसडाउन में डॉप्लर रडार के लिए जगह चिन्हित करने का भी काम शुरू कर दिया गया है. इस तरह से वेस्टर्न हिमालय रीजन में लगने वाले 10 रडार में से तीन रडार जल्द उत्तराखंड में लगा दिए जाएंगे जबकि बाकी रडार हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में लगाए जाने प्रस्तावित हैं.
क्या है डॉप्लर वेदर रडार?
डॉप्लर वेदर रडार मौसम की गतिविधियों को रिकॉर्ड करने से जुड़ा है. ये रडार सूक्ष्म तरंगों को भी भापकर मौसमी बदलाव की भविष्यवाणी करता है. इस रडार के जरिए 400 किलोमीटर तक की मौसमी गतिविधियों को जाना जा सकता है जबकि ये रडार करीब 4 घंटे पहले ही मौसम की सटीक जानकारी देने में सक्षम है. मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज लंबे समय से डॉप्लर वेदर रडार लगाने को लेकर प्रयासरत है. खास बात ये है कि उत्तराखंड को अब तक दिल्ली या पटियाला पर मौसम की जानकारी को लेकर निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन अब डॉप्लर वेदर रडार लगने के बाद सीधे उत्तराखंड मौसम विभाग मौसम की सटीक जानकारी कई घंटे पहले लोगों को दे सकेगा.
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आखिर क्यों है उत्तराखंड में डॉप्लर रडार की जरूरत?
साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद सबसे ज्यादा डॉप्लर वेदर रडार की मांग उठनी शुरू हुई. उत्तराखंड में लगातार प्राकृतिक आपदाओं और मौसमी बदलाव को देखते हुए डॉप्लर रडार बेहद महत्वपूर्ण है. इसके जरिए बादल फटने और तेज बारिश जैसी घटनाओं से पहले ही सटीक जानकारी प्रदेश को मिलने लगेगी.