देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत किसी से छुपी नहीं है. आए दिन उत्तराखंड का स्वास्थ्य महकमा अपनी लापरवारी के चलते चर्चा में रहता है. हां यह बात अलग है कि बिना बात के वाहवाही लूटना भी इसी विभाग को आता है. उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमा कभी मुख्यमंत्रियों के पास रहा तो कभी अलग से मंत्री तैनात किए गए. पुष्कर सिंह धामी से पहले स्वास्थ्य महकमा त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास था और अब पुष्कर सिंह धामी सरकार में यह मंत्रालय धन सिंह रावत देख रहे हैं.
स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत अपनी योजनाओं को लेकर चर्चा में रहते हैं, जो होने वाली हैं या जिनका ब्लू प्रिंट तैयार किया जा रहा है. लेकिन मौजूदा समय में राज्य में स्वास्थ्य महकमा किस गति से काम कर रहा है और क्या हालत हैं? इस पर शायद ही कोई चर्चा कर रहा हूं, अगर ऐसा होता तो एक मामले के बाद दोबारा इस तरह के मामले सामने नहीं आते. वह भी उस जिले से जिस जिले से खुद धन सिंह रावत विधायक हैं. डॉक्टरों के गत्ता बांधने की घटना की गंभीरता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि उस महिला के हाथ का ऑपरेशन करना पड़ा है.
पहले छात्रा के हाथ में बांधा था गत्ता: उत्तराखंड में आज से लगभग 6 महीने पहले पौड़ी जिले में ही एक छात्रा के हाथ की हड्डी टूट जाने के बाद डॉक्टरों ने छात्रा के हाथ को गत्ते से बांध दिया था, तब यह कहा गया था कि जिस जगह ऐसा हुआ है, वहां पर अस्पताल में उपकरणों की कमी है. राज्य में इस खबर को लेकर खूब हल्ला हुआ और स्वास्थ्य महकमे की खूब किरकिरी भी हुई. स्वास्थ्य निदेशक से लेकर खुद मंत्री भी सवालों के घेरे में आ गए थे.
मामला पौड़ी जिले के रिखणीखाल सरकारी अस्पताल का था. फोटो के वायरल होने के बाद चारों तरफ इस बात की चर्चा होने लगी कि आखिरकार वह कौन डॉक्टर है, जो जुगाड़ के सहारे इस तरह से दर्द से कराह रही बिटिया के हाथ का इलाज कर रहा है. बाद में इस मामले में जांच के आदेश दे दिए गए थे और उम्मीद जताई जा रही थी कि एक घटना होने के बाद शायद इस तरह की तस्वीरें उत्तराखंड को नहीं देखने के लिए मिलेगी. लेकिन 6 महीने बाद ही पौड़ी जिले से ही इसी तरह की एक और घटना की पुनरावृति हो गई. वह बात अलग है कि अब तक पुराने मामले की जांच कहां तक पहुंची. क्या हुआ सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने क्या एक्शन लिया, किसी को नहीं मालूम. लेकिन महकमे की कलाई एक बार फिर खुल गई.
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11 दिसंबर को फिर डाक्टरों ने बांध दिया गत्ता: इस बार भी पौड़ी में घास काटने गई महिला जब दुर्घटना का शिकार हो गई, तब 11 दिसंबर को पौड़ी के पाबो में डॉक्टरों ने इस महिला के हाथ पर गत्ता बांध दिया. बताया जा रहा है कि क्षेत्र में हड्डी रोग विशेषज्ञ नहीं हैं. हालांकि, पहाड़ों में हड्डी रोग तो छोड़िए किसी भी इलाज के डॉक्टरों की भारी कमी है. महिला के परिजनों को जैसे ही यह खबर लगी कि डॉक्टर मरीज को पौड़ी रेफर कर सकते हैं.
ऐसे में विमला देवी के पति राकेश ने पौड़ी ना ले जाकर उसे सीधे राजधानी देहरादून ले जाना ही उचित समझा, जहां एक प्राइवेट अस्पताल में विमला देवी का हाथ का ऑपरेशन हुआ है. महिला के परिजनों का कहना है कि हमें पहले ही इस बात की जानकारी हो गई थी कि यहां पर डॉक्टर उनके हाथ का इलाज नहीं कर पाएंगे. ऐसे में हमने बिना देरी किए उन्हें देहरादून के एक अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां पर उनका ऑपरेशन होने के बाद अब वह स्वास्थ्य लाभ ले रही है. विमला देवी की घटना के बाद एक बार फिर से स्वास्थ्य महकमे की पोल खुल गई है.
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मंत्री ने दिए फिर से जांच के आदेश: एक बार फिर से स्वास्थ्य मंत्री अपने बयानों को दोबारा रिपीट कर रहे हैं. इस पूरी घटना के बाद एक बार फिर से स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत मीडिया से बातचीत करते हुए कहते हैं कि जिस जगह यह मामला हुआ है. वहां पर अस्पताल पीपीपी मोड पर चल रहा है. लेकिन अभी तक उस अस्पताल में 25 हजार लोगों का इलाज ही हुआ है. हालांकि एक बार फिर से इस पूरे मामले की जांच के आदेश भी मंत्री धन सिंह रावत ने कर दिए हैं.
आज भी कंधे बन रहे हैं पहाड़ों पर एम्बुलेंस: उत्तराखंड में यह कोई पहला मामला नहीं है, जब मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर या फिर अव्यवस्थाओं के चलते इतनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. चाहे राजधानी देहरादून के विकासनगर में पहाड़ी क्षेत्र का मामला हो, जहां पर बीते दिनों कंधे पर रखकर मरीज को कई किलोमीटर दूर लेकर आना पड़ा हो, या फिर पिथौरागढ़ में भी इसी तरह की घटनाएं हो उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग को लेकर बयानबाजी तो खूब होती है. लेकिन काम कितना हो रहा है. आए दिन हो रही घटनाएं सभी सवालों के जवाब दे रही हैं.
22 साल बाद भी डॉक्टरों के पद खाली: एक आंकड़े से भी उत्तराखंड में स्वास्थ व्यवस्था का आकलन किया जा सकता है. मौजूदा समय में प्रदेश में साधारण चिकित्सकों के लगभग 2 से अधिक पद और विशेषज्ञ चिकित्सकों के 650 पद खाली पड़े हैं. हालाकि, सरकार लगातार ये बात कह रही है कि उनकी तरफ से चिकित्सकों के पदों पर संविदा से तैनाती की जा रही है.
प्रदेश में इस समय 733 चिकित्सा इकाइयां स्थापित हैं. इनमें 13 जिला चिकित्सालय, 21 उप जिला चिकित्सालय 80 सामुदायिक केंद्र, 526 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र टाइप ए, 52 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र टाइप बी और 41 अन्य चिकित्सा इकाइयां कार्य कर रही हैं. इसके साथ ही उत्तराखंड में चिकित्सकों के 2735 पद सृजित हैं. इसके सापेक्ष प्रदेश में 2000 चिकित्सक उपलब्ध है. इनमें से भी 800 चिकित्सक सरकार के लगातार तीन साल से किए गए प्रयासों के बाद मिले हैं. (Uttarakhand Health Department) (Uttarakhand Health Department deed) (Health system of Uttarakhand)