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उत्तराखंड में दायित्वों का गणित है खास, कार्यकर्ता लगाये बैठे आस, जानिये कैसे होता है बंटवारे का 'खेल'

एक साल पूरा हो जाने के बाद भी धामी सरकार में दायित्वों का बंटवारा नहीं हो पाया है. जिसे विपक्ष धामी सरकार का फेलियर बता रही है. वहीं, इस पर बीजेपी का कहना है कि दायित्व बंटवारे को लेकर संगठन स्तर पर एक बड़ी एक्सरसाइज की गई है. पार्टी ने हर स्तर पर विचार विमर्श कर लिया है. जल्द ही कार्यकर्ताओं को खुशखबरी मिलने वाली है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
उत्तराखंड में दायित्वों का गणित है खास
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Published : Aug 2, 2023, 5:38 PM IST

Updated : Aug 2, 2023, 9:57 PM IST

उत्तराखंड में दायित्वों का गणित है खास

देहरादून: धामी सरकार में लंबे समय से कैबिनेट विस्तार और दायित्वों के बंटवारों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं. बीजेपी नेता और कार्यकर्ता बड़ी बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं. उत्तराखंड में साल 2005 से दायित्व बंटवारे की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक चली आ रही है. दायित्व बंटवारा पार्टी कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने का एक तरीकी है. जिसे भाजपा और कांग्रेस दोनों दल बखूबी इस्तेमाल करते हैं.

पहली बार तिवारी सरकार में शुरू हुआ दायित्वों का 'खेल': उत्तराखंड में सत्ता की मलाई को मिल बांटकर उड़ाने का सटीक उदाहरण उत्तराखंड के लोक गायक नरेंद्र नेगी के नौछमी नारैणा गाने में देखने को मिलता है. लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के नौछमी नारैणा गाने को सत्ता के हालातों से सटीक बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन के बाद प्रदेश में पहली बार दायित्व को लेकर के सत्ता का नया चेहरा वर्ष 2005 में एनडी तिवारी की सरकार में देखने को मिला. कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री के रूप में एनडी तिवारी ने तकरीबन 350 लोगों को दायित्व बांटे. उस वक्त दायित्व धारियों को लाल बत्ती दी जाती थी. नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने गाने में सटीक चित्रण किया.

पढ़ें- Uttarakhand BJP: उत्तराखंड में जल्द सुलझ सकती है दायित्वों की मिस्ट्री, कांग्रेस ने कही ये बात

वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं बतौर मुख्यमंत्री रहते एनडी तिवारी ने पौड़ी में एक चूड़ी बेचने वाले को राज्य मंत्री और एक 16 साल की महिला को राज्यमंत्री का दर्जा दिया. जिसके बाद वह चर्चाओं में आ गए. सरकार के इस फैसले से सत्ताधारी पार्टी की खूब फजीहत हुई.

सरकार में सीमित और असीमित दो तरह के दायित्व देने का अधिकार: उत्तराखंड सरकार में अगर दायित्व की बात करें तो सरकार के कुछ ऐसे दायित्व हैं जो कि संवैधानिक पदों के हैं. जिसमें सूचना आयोग, महिला आयोग, बाल सुरक्षा आयोग सहित कई पद ऐसे हैं जो कि संवैधानिक पद हैं. वहीं, इसी तरह से मंडी परिषद,बदरी केदार मंदिर समिति सहित कुछ ऐसे बोर्ड हैं जो कि संवैधानिक हैं. इन पदों पर पदेन व्यक्ति का एक निश्चित कार्यकाल होता है. यह एक निश्चित बाइलॉज के तहत बनाए जाते हैं. इन पदों को कभी खाली नहीं रखा जा सकता है. सरकार जाने के बाद भी यह पद अपने कार्यकाल तक बने रहते हैं. इसके अलावा सरकार के कई विभागों और योजनाओं में इस तरह की समितियां होती हैं, जहां पर सरकार अपनी मनमर्जी के लोगों को दायित्व दे सकती है. इनकी कुछ सीमित संख्या भी नहीं होती है. सरकार में गोपन विभाग के एक अधिकारी द्वारा अनौपचारिक बातचीत में बताया गया कि यह सरकार के ऊपर होता है कि वह अपने कितने कार्यकर्ताओं को खुश करना चाहती है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
बीजेपी प्रदेश कार्य समिति की बैठक

पढ़ें- दायित्व बंटवारे को लेकर यशपाल आर्य ने सरकार को घेरा, कहा- जनता पर पड़ेगा अतिरिक्त बोझ

दायित्व की कसौटी पर खरे उतरने के लिए क्या है जरूरी: वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2005 में ND तिवारी की सरकार के आने के बाद शुरू हुआ सत्ता की मलाई के बंटवारे का खेल बदस्तूर उसके बाद आई हर सरकार में जारी रहा. दायित्व को दिए जाने को लेकर भी संगठन में एक कड़ी एक्सरसाइज की जाती है. जिस तरह से संगठनों का विस्तार हो रहा है, सत्ताधारी पार्टी के लिए दायित्व बंटवारे का काम भी उतना ही मुश्किल होता जा रहा है. दायित्व बंटवारा तय किए जाने के समय कई सारे फैक्टर पर ध्यान दिया जाता है. वरिष्ठता इसमें सबसे पहला मानक होता है. अनुशासन और पार्टी के प्रति समर्पण पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
बीजेपी कार्यकर्ताओं को दायित्व बंटवारे का इंतजार

पढ़ें- धामी सरकार में दायित्व पाने का इंतजार कर रहे कार्यकर्ता, क्या अधूरी रहेगी इच्छा?

भाजपा के दायित्व बंटवारे के पैटर्न पर अगर नजर दौड़ाए तो भारतीय जनता पार्टी अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को कैबिनेट, मंत्री स्तर के दायित्व देती है. इससे थोड़ा सा कम अनुभवी यानी सेकेंड लाइन के नेताओं को राज्यमंत्री स्तर का दायित्व दिया जाता है. वहीं, इसके अलावा पार्टी में निचले स्तर पर बेहतरीन कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को भी नाराज नहीं किया जाता है. उन्होंने विभागों के अलग-अलग बोर्ड और तमाम समितियों में एडजस्ट किया जाता है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
एक साल बीत जाने के बाद भी धामी सरकार में नहीं हुआ दायित्व बंटवारा

पढ़ें- चुनावी रणनीति बनाने में जुटी पार्टियां, बूथ स्तर पर बीजेपी-कांग्रेस का फोकस

वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं कि सरकार के ऊपर चुनाव जीतने के बाद अपने कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का काफी प्रेशर होता है. केंद्र में पहुंच रखने वाले नेताओं का भी प्रेशर होता है. हर किसी को सरकार में लेना संभव नहीं होता है. जिसके लिए कार्यकर्ताओं की दायित्व देकर एडजस्ट किया जाता है.

पढ़ें- पन्ना प्रमुखों से होगा बूथ सशक्तिकरण, बीजेपी ने शुरू की लोकसभा चुनाव की तैयारियां

धामी सरकार में दायित्व न बंटने पर विपक्ष का व्यंग: उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी लगातार अपने संगठन का विस्तार कर रही है. दूसरे दलों से कई बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी में सदस्यता ले रहे हैं. ऐसे में किस कार्यकर्ता को दायित्व दिया जाए और किसको नहीं, यह पार्टी के लिए बड़ा सर दर्द वाला काम बना हुआ है. यही वजह है कि उत्तराखंड में मौजूद वर्तमान धामी सरकार के 1 साल पूरे होने के बावजूद भी दायित्व का बंटवारा नहीं हो पाया है. इस पर प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी कहते हैं दायित्व बंटवारे को लेकर संगठन स्तर पर एक बड़ी एक्सरसाइज की गई है. पार्टी ने हर स्तर पर विचार विमर्श कर लिया है. जल्द ही कार्यकर्ताओं को खुशखबरी मिलने वाली है. वहीं, दूसरी तरफ विपक्ष ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा भाजपा कार्यकर्ताओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है. कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह ने कहा भाजपा ने एक अंगूर का गुच्छा पार्टी कार्यकर्ताओं के सर के ऊपर लटकाया हुआ है. हर कार्यकर्ता को लगता है कि कभी तो अंगूर उसके मुंह में आकर गिरेगा, मगर भाजपा नहीं चाहती है कि कार्यकर्ताओं को इसका कोई फायदा मिले. जिसके कारण वह दायित्व का बंटवारा नहीं करना चाहती है.

उत्तराखंड में दायित्वों का गणित है खास

देहरादून: धामी सरकार में लंबे समय से कैबिनेट विस्तार और दायित्वों के बंटवारों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं. बीजेपी नेता और कार्यकर्ता बड़ी बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं. उत्तराखंड में साल 2005 से दायित्व बंटवारे की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक चली आ रही है. दायित्व बंटवारा पार्टी कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने का एक तरीकी है. जिसे भाजपा और कांग्रेस दोनों दल बखूबी इस्तेमाल करते हैं.

पहली बार तिवारी सरकार में शुरू हुआ दायित्वों का 'खेल': उत्तराखंड में सत्ता की मलाई को मिल बांटकर उड़ाने का सटीक उदाहरण उत्तराखंड के लोक गायक नरेंद्र नेगी के नौछमी नारैणा गाने में देखने को मिलता है. लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के नौछमी नारैणा गाने को सत्ता के हालातों से सटीक बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन के बाद प्रदेश में पहली बार दायित्व को लेकर के सत्ता का नया चेहरा वर्ष 2005 में एनडी तिवारी की सरकार में देखने को मिला. कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री के रूप में एनडी तिवारी ने तकरीबन 350 लोगों को दायित्व बांटे. उस वक्त दायित्व धारियों को लाल बत्ती दी जाती थी. नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने गाने में सटीक चित्रण किया.

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वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं बतौर मुख्यमंत्री रहते एनडी तिवारी ने पौड़ी में एक चूड़ी बेचने वाले को राज्य मंत्री और एक 16 साल की महिला को राज्यमंत्री का दर्जा दिया. जिसके बाद वह चर्चाओं में आ गए. सरकार के इस फैसले से सत्ताधारी पार्टी की खूब फजीहत हुई.

सरकार में सीमित और असीमित दो तरह के दायित्व देने का अधिकार: उत्तराखंड सरकार में अगर दायित्व की बात करें तो सरकार के कुछ ऐसे दायित्व हैं जो कि संवैधानिक पदों के हैं. जिसमें सूचना आयोग, महिला आयोग, बाल सुरक्षा आयोग सहित कई पद ऐसे हैं जो कि संवैधानिक पद हैं. वहीं, इसी तरह से मंडी परिषद,बदरी केदार मंदिर समिति सहित कुछ ऐसे बोर्ड हैं जो कि संवैधानिक हैं. इन पदों पर पदेन व्यक्ति का एक निश्चित कार्यकाल होता है. यह एक निश्चित बाइलॉज के तहत बनाए जाते हैं. इन पदों को कभी खाली नहीं रखा जा सकता है. सरकार जाने के बाद भी यह पद अपने कार्यकाल तक बने रहते हैं. इसके अलावा सरकार के कई विभागों और योजनाओं में इस तरह की समितियां होती हैं, जहां पर सरकार अपनी मनमर्जी के लोगों को दायित्व दे सकती है. इनकी कुछ सीमित संख्या भी नहीं होती है. सरकार में गोपन विभाग के एक अधिकारी द्वारा अनौपचारिक बातचीत में बताया गया कि यह सरकार के ऊपर होता है कि वह अपने कितने कार्यकर्ताओं को खुश करना चाहती है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
बीजेपी प्रदेश कार्य समिति की बैठक

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दायित्व की कसौटी पर खरे उतरने के लिए क्या है जरूरी: वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2005 में ND तिवारी की सरकार के आने के बाद शुरू हुआ सत्ता की मलाई के बंटवारे का खेल बदस्तूर उसके बाद आई हर सरकार में जारी रहा. दायित्व को दिए जाने को लेकर भी संगठन में एक कड़ी एक्सरसाइज की जाती है. जिस तरह से संगठनों का विस्तार हो रहा है, सत्ताधारी पार्टी के लिए दायित्व बंटवारे का काम भी उतना ही मुश्किल होता जा रहा है. दायित्व बंटवारा तय किए जाने के समय कई सारे फैक्टर पर ध्यान दिया जाता है. वरिष्ठता इसमें सबसे पहला मानक होता है. अनुशासन और पार्टी के प्रति समर्पण पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
बीजेपी कार्यकर्ताओं को दायित्व बंटवारे का इंतजार

पढ़ें- धामी सरकार में दायित्व पाने का इंतजार कर रहे कार्यकर्ता, क्या अधूरी रहेगी इच्छा?

भाजपा के दायित्व बंटवारे के पैटर्न पर अगर नजर दौड़ाए तो भारतीय जनता पार्टी अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को कैबिनेट, मंत्री स्तर के दायित्व देती है. इससे थोड़ा सा कम अनुभवी यानी सेकेंड लाइन के नेताओं को राज्यमंत्री स्तर का दायित्व दिया जाता है. वहीं, इसके अलावा पार्टी में निचले स्तर पर बेहतरीन कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को भी नाराज नहीं किया जाता है. उन्होंने विभागों के अलग-अलग बोर्ड और तमाम समितियों में एडजस्ट किया जाता है.

History sharing responsibility in Uttarakhand
एक साल बीत जाने के बाद भी धामी सरकार में नहीं हुआ दायित्व बंटवारा

पढ़ें- चुनावी रणनीति बनाने में जुटी पार्टियां, बूथ स्तर पर बीजेपी-कांग्रेस का फोकस

वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा बताते हैं कि सरकार के ऊपर चुनाव जीतने के बाद अपने कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का काफी प्रेशर होता है. केंद्र में पहुंच रखने वाले नेताओं का भी प्रेशर होता है. हर किसी को सरकार में लेना संभव नहीं होता है. जिसके लिए कार्यकर्ताओं की दायित्व देकर एडजस्ट किया जाता है.

पढ़ें- पन्ना प्रमुखों से होगा बूथ सशक्तिकरण, बीजेपी ने शुरू की लोकसभा चुनाव की तैयारियां

धामी सरकार में दायित्व न बंटने पर विपक्ष का व्यंग: उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी लगातार अपने संगठन का विस्तार कर रही है. दूसरे दलों से कई बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी में सदस्यता ले रहे हैं. ऐसे में किस कार्यकर्ता को दायित्व दिया जाए और किसको नहीं, यह पार्टी के लिए बड़ा सर दर्द वाला काम बना हुआ है. यही वजह है कि उत्तराखंड में मौजूद वर्तमान धामी सरकार के 1 साल पूरे होने के बावजूद भी दायित्व का बंटवारा नहीं हो पाया है. इस पर प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी कहते हैं दायित्व बंटवारे को लेकर संगठन स्तर पर एक बड़ी एक्सरसाइज की गई है. पार्टी ने हर स्तर पर विचार विमर्श कर लिया है. जल्द ही कार्यकर्ताओं को खुशखबरी मिलने वाली है. वहीं, दूसरी तरफ विपक्ष ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा भाजपा कार्यकर्ताओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है. कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह ने कहा भाजपा ने एक अंगूर का गुच्छा पार्टी कार्यकर्ताओं के सर के ऊपर लटकाया हुआ है. हर कार्यकर्ता को लगता है कि कभी तो अंगूर उसके मुंह में आकर गिरेगा, मगर भाजपा नहीं चाहती है कि कार्यकर्ताओं को इसका कोई फायदा मिले. जिसके कारण वह दायित्व का बंटवारा नहीं करना चाहती है.

Last Updated : Aug 2, 2023, 9:57 PM IST
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