देहरादून: उत्तराखंड सरकार जल्द ही हैंप नीति पर मुहर लगाने जा रही है. पिछले लंबे समय से औद्योगिक एवं औषधीय भांग को लेकर नीति बनाने की कसरत चल रही थी, जिस पर आखिरकार काम पूरा कर लिया गया है और अब माना जा रहा है कि आने वाली कैबिनेट में इस नीति पर मंत्रिमंडल की मुहर लग सकती है.
उत्तराखंड में रोजगार से लेकर औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए औद्योगिक एवं औषधीय भांग को बेहद अहम माना गया है और शायद इसीलिए 2016 में इसके लिए पहली बार तेजी से काम किया गया. हालांकि तत्कालीन सरकार इस पर नीति नहीं बना पाई, लेकिन इसके बाद पिछली सरकार ने एक बार फिर इसकी नीति को लेकर काम करते हुए हैंप को बढ़ावा देने के प्रयास किए. हालांकि इस पर धामी सरकार ने कामयाबी पाते हुए नीति को न केवल तैयार करने का काम किया, बल्कि जल्द ही इस पर कैबिनेट की मुहर लगने की भी उम्मीद है.
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कृषि सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम कहते हैं कि काफी मशक्कत के बाद आखिरकार हैंप के लिए नीति को तैयार कर लिया गया है और उम्मीद की जा रही है कि अगली कैबिनेट में इसे मंजूरी भी दे दी जाएगी. वैसे हेम्प को लेकर पहले काफी ज्यादा विवाद भी रहा है और इससे नशाखोरी के बढ़ने की भी आशंकाएं जताई जाती रही है. इसके लिए खेती के प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन तब इसमें नशे से जुड़े तत्वों की मात्रा ज्यादा होने के चलते यह सफल नहीं हो पाया था. लिहाजा अब उत्तराखंड सरकार बाहर से इसके बीज को प्रमाणिकता के साथ लाने का काम करेगा, ताकि इसका गुणवत्ता के लिहाज से उपयोग केवल औषधि और फाइबर के रूप में तमाम उद्योगों में हो सके.
बता दें कि टाटा और बिड़ला जैसी तमाम कंपनियां भी उत्तराखंड में हैंप नीति को लेकर राह देख रही हैं. उधर इस नीति के बनते ही कई उद्योग समूह उत्तराखंड की तरफ रुख कर सकते हैं, जिसका सीधा फायदा स्थानीय लोगों को रोजगार के रूप में मिलेगा. बताते चलें कि हैंप का उपयोग उद्योगों में इसके फाइबर से कपड़ा कागज और फर्नीचर बनाने समेत दूसरे कई कामों में किया जाता है. यही नहीं कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों वाली दवाइयों में भी इसका उपयोग होता है, जिससे इसकी उपयोगिता और इसके महत्व को आसानी से समझा जा सकता है. नीति में न केवल खेती के नियमों को डिस्क्राइब किया गया है, बल्कि इसके लाइसेंस इसकी निगरानी जांच और तमाम दूसरे पहलुओं पर भी नियम तय किए गए हैं.