देहरादून: राजधानी देहरादून में आयोजित लिटरेचर फेस्टिवल (Literature Festival) के चौथे संस्करण कार्यक्रम के दूसरे दिन उत्तराखंड डीजीपी अशोक कुमार द्वारा लिखी गई पुस्तक 'खाकी में इंसान' को लोगों ने खूब पसंद किया. जनता के प्रति पुलिस के कारनामें को उजागर करती इस पुस्तक को खरीदने में युवाओं और छात्र-छात्राओं में इस कदर होड़ लगी रही कि कार्यक्रम स्थल के बाहर लगाए गए बुक स्टॉल में 3 बार भारी डिमांड के चलते यह पुस्तक आउट ऑफ स्टॉक हो गई. उधर डीजीपी अशोक कुमार द्वारा अपने सेवाकाल के शुरूआती समय में पुलिस के रवैये को लेकर 2010 में लिखी इस पुस्तक के वास्तविक किस्सों को जनता से सामने रखा.
डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि 'खाकी में इंसान' एक ऐसी पुस्तक है जिसको पढ़कर पिछले 10-12 सालों में बेसिक पुलिस का स्तर जनता के प्रति सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है. यही कारण है कि इस बुक की चर्चा अलग-अलग कार्यक्रमों में सालों से हो रही है. लिटरेचर फेस्टिवल कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपनी बुक और 30 साल पुलिस सेवा के बारे में लोगों को बताया. उन्होंने कहा कि एक आईपीएस ऑफिसर को पुलिस से जुड़े नकारात्मक विषयों को खत्म करके जनता के प्रति विश्वास और समर्पित पुलिस बनने की जिम्मेदारी सबसे बड़ा राष्ट्रसेवा दायित्व है.
लिटरेचर फेस्टिवल कार्यक्रम में 'खाकी में इंसान' पुस्तक पर अपने वास्तविक अनुभव को साझा करते हुए डीजीपी अशोक कुमार से छात्र-छात्राओं के अलावा हर वर्ग के लोगों ने पुलिस और कानून से जुड़े कई सवाल भी पूछे. जिसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस की नकारात्मक छवि ब्रिटिश शासन काल के समय से जनता के मन में जो बनी हुई थी. उस छवि पर कोविड महामारी के दौरान जनता के प्रति सेवाभाव से बदलाव आया है. लॉकडाउन में उत्तराखंड पुलिस के 'मिशन हौसला' अभियान के अंतर्गत जनता को खाद्य सामग्री व मेडिकल व्यवस्था से लेकर रोजमर्रा की आवश्यकता को पुलिस ने हर दरवाजे तक पहुंचाया. इससे पुलिस के प्रति दशकों पुरानी नकारात्मक छवि में सुधार हुआ. ऐसे में उनको उम्मीद है कि आगे भी 'खाकी में इंसान' वाली सकारात्मक पुलिस नए भारत निर्माण में अपना अहम योगदान देगी.
पुलिस तंत्र में राजनीतिक हस्तक्षेपः लिटरेचर फेस्टिवल कार्यक्रम के दूसरे दिन डीजीपी अशोक कुमार ने पुस्तक खरीदने वाले युवाओं को अपने हस्ताक्षर कर देश के प्रति समर्पित भावना और सरकारी सिस्टम में रहकर कैसे जनता के प्रति सेवाभाव से कार्य किया जा सकता है इसके लिए प्रेरित किया. डीजीपी कुमार ने कहा कि कई बार इस तरह के सवाल उठते हैं कि पुलिस तंत्र पर राजनीतिक हस्तक्षेप होता है. ऐसे में इस विषय को ऐसे समझा जाए कि देश के सिस्टम में राजनीति भी एक बड़ा हिस्सा है. इसके चलते कुछ मामलों में उनका इंटरफेयर स्वभाविक है. लेकिन इसके बावजूद पुलिस का कार्य निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कानून के दायरे में ही होना चाहिए.
'खाकी में इंसान' पर वेब सीरीज: डीजीपी कुमार ने कहा कि 'खाकी में इंसान' पुस्तक को लेकर कई बार इस पर फिक्शन और वेब सीरीज की डिमांड हो चुकी है. हालांकि, अभी इस पर इंतजार करना ही बेहतर होगा. क्योंकि संभवत: आगे इस पुस्तक के और भी सीरीज सामने आएंगे. तभी इसके फिक्शन मेकिंग के बारे में कुछ कहा जा सकता है. हालांकि, यह बात भी सच है कि पुलिस के कई किस्से, कहानी इन दिनों वेब सीरीज जैसे फिक्शन मेकिंग के रूप में सामने आ रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः बीजेपी नेताओं के लिए जागा हरदा का प्रेम, सियासी मुलाकातों के आखिर क्या हैं मायने ?
पत्नी के प्रयास से प्रकाशित हुई 'खाकी में इंसान': आम जनता के प्रति पुलिस के रवैये को उजागर करने और उसमें कैसे सकारात्मक सुधार किया जा सकता है, इसको लेकर 3 भाषाओं में प्रकाशित 'खाकी में इंसान' पुस्तक के प्रकाशन को लेकर भी लिटरेचर फेस्टिवल में नया तथ्य सामने आया. डीजीपी अशोक कुमार के द्वारा लिखी गई इस पुस्तक में उनकी पत्नी अलकनंदा अशोक की बड़ी भूमिका भी सामने आई. डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि 1991 में जब वह एसीपी के पदभार में यूपी इलाहाबाद तैनात थे. तब से वह थाने और जिले स्तर पर होने वाली पुलिस के किस्से एक डायरी में लिखते थे. इतना ही नहीं इन अनुभवों को वह अपनी पत्नी अलकनंदा अशोक के साथ समय मिलने पर साझा भी करते थे.
ऐसे में अलकनंदा द्वारा पति अशोक कुमार को इस बात के लिए प्रेरित किया कि उनके यह अनुभव वाले किस्से एक किताब के रूप में समेट कर क्यों न समाज के सामने लाना चाहिए. ताकि एक सिस्टम में रहकर जनता के प्रति पुलिस की जवाबदेही और उसमें कैसे सुधार बेहतर हो सकता है, इसका संदेश समाज में जाए. बस इसी बात से प्रेरित होकर डीजीपी अशोक कुमार ने वर्ष 2010 'खाकी में इंसान' पुस्तक का प्रकाशन किया, जो चर्चा का विषय बना हुआ है.