देहरादूनः उत्तराखंड में वित्तीय प्रबंधन पर सरकारें विफल होती रही हैं. बजट खर्च में उदासीनता से लेकर नए वित्तीय रिसोर्सेज तैयार करने तक में सरकार का सिस्टम फेल दिखाई दिया है. हालत यह है कि अब विभागों की तरफ से समय पर यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट तक सबमिट करने में लापरवाही बरती जा रही है. नतीजतन केंद्रीय बजट या अनुदान राज्य को मिलने पर इसका असर हो रहा है.
उत्तराखंड में योजनाओं के बजट को अंतिम समय में खर्च किए जाने की परंपरा राज्य के विकास के लिए एक बड़ी चिंता बन गई है. यह स्थिति न केवल शासन स्तर पर खर्च होने वाले बजट की है, बल्कि विधायकों को मिलने वाली विधायक निधि के हालात भी ऐसे ही हैं. यही कारण है कि उत्तराखंड का 4 हजार करोड़ से शुरू हुआ उधार आज 75 हजार करोड़ पहुंच चुका है. बड़ी बात यह है कि 2005 से 2020 तक 42 हजार करोड़ की धनराशि का हिसाब तक नहीं दिया जा सका है.
सीएजी रिपोर्ट में खुलासाः बजट पर सीएजी (Comptroller and Auditor General of India) की रिपोर्ट बताती है कि सरकार अनुपूरक बजट लाती है. लेकिन इस बजट से अधिक पैसा खर्च नहीं हो पाता है. सीएजी रिपोर्ट ने पाया गया कि 2020-21 में राज्य सरकार ने 53,526 करोड़ का बजट पेश किया. इसके बाद 4063 करोड़ का अनुपूरक बजट भी लाया गया. यानी कुल 57,590 करोड़ रुपए के इस बजट में सरकार केवल 52 हजार करोड़ ही खर्च कर पाई. अर्थात सरकार 5590 करोड़ का बजट खर्च ही नहीं कर पाई.
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विधानसभा सत्र के दौरान पेश की गई कैग रिपोर्टः जून 2022 में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में पेश हुई कैग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के 20 विभागों में कुल बजट का 69 फीसदी से ज्यादा खर्च केवल मार्च के महीने में किया गया है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि उत्तराखंड की सरकार ने 2020-21 में 20 मुख्य विभागों में 50 प्रतिशत से अधिक बजट केवल वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में खर्च किया.
शासन को यूसी सबमिट नहीं कर रहे विभागः इस बजट को लेकर सरकार का खराब प्रबंधन भी कहा जा सकता है. इसी तरह कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में करीब 1600 करोड़ रुपए सरकार खर्च नहीं कर पाई. बजट पर सरकारी उदासीनता यहीं तक सीमित नहीं है. हालत यह है कि शासन के बार-बार निर्देशित करने के बाद भी विभाग यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट सीएजी शासन को सबमिट नहीं कर रहे हैं.
मंत्री अग्रवाल के विभाग ने नहीं दिया हिसाबः पंचायती राज और शहरी निकाय विभाग करीब 1373.97 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं दे पाया है. हालांकि, इस मामले में शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल कहते हैं कि विभिन्न कारणों के चलते देरी हुई है. लेकिन उनकी तरफ से निर्देशित कर दिया गया है कि जल्दी यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जमा करने की प्रक्रिया को पूरा किया जाए.
पंचायती राज और शहरी निकायों में खर्च का हिसाब देने को लेकर यह मामला सामान्य नहीं है. क्योंकि शासन स्तर पर कई बार निर्देश करने के बाद भी इस पर अधिकारी गंभीरता नहीं दिखाते हुए नजर आए. शायद यही कारण है कि अपर मुख्य सचिव वित्त आनंद वर्धन को आखिरकार संबंधित सचिवों को पत्र लिखना पड़ा. अब आंकड़ों में जानिए सालाना यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट का हिसाब...
- राज्य और केंद्र वित्त आयोग की सिफारिश पर दिए गए बजट खर्च का देना होता है हिसाब.
- राज्य में 1373.97 करोड़ के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट शहरी निकायों और पंचायती राज को देने हैं.
- शहरी निकाय में 352.24 करोड़ बजट खर्च का देना है रिकॉर्ड.
- पंचायती राज में 1021.73 करोड़ के बजट का देना है यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट.
- 2019-20 के 10 कामों के 69 करोड़, 2020-21 के 231 कामों का 812.53 करोड़, 2021-22 के 41 कामों का 488.89 करोड़ का देना है यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट.
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बजट लैप्स होने का खतराः ऐसा नहीं है कि यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट में देरी और बजट खर्च को लेकर लापरवाही से राज्य का नुकसान नहीं होता है. इसका सीधा असर केंद्र से मिलने वाले बजट पर पड़ता है. साथ ही बजट के लैप्स होने का खतरा भी बना रहता है.
8550 करोड़ का अनुदान रुकाः ताजा मामला देखें तो पंचायती राज और शहरी निकायों में केंद्र से मिलने वाले अनुदान पर इन्हीं लापरवाही के चलते ब्रेक लग गया है. दरअसल केंद्र की तरफ से कुल 7950 शहरी निकाय और पंचायती राज के लिए 600 करोड़ से ज्यादा का अनुदान दिया जाना था. लेकिन पूर्व में मिले बजट की ऑडिट रिपोर्ट और यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट रिपोर्ट ना दिए जाने के कारण फिलहाल इस बजट को केंद्र की तरफ से नहीं दिया गया है.
इसके तहत शहरी निकाय को 217 करोड़ और पंचायती राज को 440 करोड़ का अनुदान दिया जाना था. लेकिन औपचारिकताएं पूरी ना होने के कारण फिलहाल राज्य को कोई अनुदान नहीं मिल पाया है.
अधिकारियों की कमी से काम में देरीः वैसे बता दें कि विभागों की तरफ से विभिन्न कार्यों की यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट समय से दिए जाने का प्रावधान है, ताकि विभिन्न कार्य में पारदर्शिता बनी रहे. उधर निदेशक पंचायती राज बंशीधर तिवारी बताते हैं कि विभाग में ग्राम विकास अधिकारियों की भारी कमी है और केवल 50% अधिकारियों के साथ ही विभाग में काम किया जा रहा है. लिहाजा इसके कारण यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट के सबमिट किए जाने में देरी हुई है.